रीति-रिवाज / त्रिलोक सिंह ठकुरेला
जगतपुरा के पंडित गजानंद के दो बेटे शहर में सरकारी सेवा में थे. परिवार में सबकी सलाह से घर में हैंडपंप लगाने का निर्णय लिया गया.कुए से पानी भरकर लाना अब उन्हें शान के खिलाफ लगने लगा था.
पड़ौसी गाँव से रतिराम एवं चेतराम को बुलाया गया.दोनों दलित थे किन्तु आसपास के इलाके में वे दोनों ही हैंडपंप लगाना जानते थे. दोनों ने सुबह से दोपहर तक मेहनत की एवं हैंडपंप लगाकर तैयार कर दिया .हैंडपंप ने मीठा पानी देना शुरू कर दिया.
पंडित गजानंद द्वारा रतिराम और चेतराम को मेहनताने के साथ-साथ दोपहर का खाना भी दिया गया.खाना खाने के बाद रतिराम एवं चेतराम पानी पीने के लिए जब हैंडपंप की ओर बढ़े तो पंडित गजानंद ने उन्हें रोक दिया. बोले- अरे भाई ! माना तुम कोई काम जानते हो, तो क्या सारे रीति-रिवाज भुला दोगे.जरा जाति का तो ख़याल रखो.यह ब्राह्मणों का हैंडपंप है.
उन्होंने लड़के को आवाज़ दी- राजेश, इन दोनों को लोटे से पानी तो पिला.
रतिराम और चेतराम ने एक दूसरे की ओर देखा,जैसे पूछ रहे हों- यह कैसा रीति-रिवाज है.