रीमा लागू : सिनेमा में आधुनिक मां / जयप्रकाश चौकसे

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रीमा लागू : सिनेमा में आधुनिक मां
प्रकाशन तिथि :19 मई 2017


आप किसी भी शहर, कस्बे या महानगर की सड़कों से गुजरें तो आपको अनेक भवनों के नाम इस तरह के मिलेंगे- मातृकृपा, मातृछाया, मां का आशीर्वाद इत्यादि। मां जीवन का केंद्र रहा है। भारतीय सिनेमा में भी मां के पात्र में निरुपा राय, ललिता पंवार, अचला सचवेद, कामिनी कौशल इत्यादि ने प्रभावोत्पादक अभिनय किया है। दिलीप कुमार, राजकपूर और देवआनंद अभिनीत फिल्मों में प्राय: निरुपा राय ने मां की भूमिका अभिनीत की है। मनोज कुमार की फिल्मों में कामिनी कौशल मां की भूमिका में रही हैं। मनोज कुमार हमेशा दिलीप कुमार से प्रभावित रहे और स्वयं को अभिनय संसार में उनका उत्तराधिकारी समझते रहे। शायद इसीलिए उन्होंने दिलीप की नायिका रही कामिनी को 'शहीद' में मां की भूमिका में प्रस्तुत किया। दिलीप और कामिनी का रिश्ता इतना गहरा था कि आज अपनी स्मरण शक्ति के भागते हिरण के दौर में उनके सामने अपनी पहली प्रेमिका कामिनी कौशल को इलाज प्रक्रिया के रूप में सामने लाने से कुछ लाभ हो सकता है।

सलमान खान के सितारा बनते ही रीमा लागू ने उनकी मां की भूमिका अभिनीत की। हमारे फिल्मकार सफल छवियां देखकर भूमिकाएं लिखते हैं। वे मौलिक लेखन के बाद कलाकार का चयन नहीं करते। इस कारण चारित्रिक ढ़ांचों में कलाकार को कैद कर दिया जाता है। इफ्तिखार खान साहब ने तीन सौ से अधिक फिल्मों में पुलिस इन्सपेक्टर की भूमिका अभिनीत की। नतीजा यह था कि जब उनकी कार किसी चौराहे से गुजरती तो ट्रैफिक कॉन्सटेबल उन्हें सलाम करता था। नाना पलसीकर ने हमेशा गरीब व्यक्ति का पात्र अभिनीत किया तो जब उन्हें पति की भूमिका में 'प्रेम पर्वत' फिल्म मिली तो खय्याम के मधुर गीतों से सजी फिल्म असफल हो गई। इफ्तिखार साहब का कहना था कि इस कदर टायप-कास्ट होने का यह लाभ मिला कि ताउम्र काम मिलता गया और परिवार का गुजर-बसर मुमकिन हुआ। कई बार कितनी गैर सिनेमेटिक बात होती है कि संघर्षरत सलीम खान को ताहिर साहब ने इसलिए एक भूमिका के लिए चुना कि उनकी गुजश्ता फिल्म में वैसी ही भूमिका के लिए सलीम खान का सूट बनवाया था जिसके भरपूर दोहन के लिए उन्हें फिर उस जैसी भूमिका के लिए लिया गया गोयाकि 'इन्सान कपड़े नहीं पहनते वरन् कपड़े इन्सान को पहनते हैं।' यह संवाद फिल्म 'श्री 420' का है।

रीमा लागू मां की भूमिका में कैद कर दी गईं, उनकी प्रतिमा का भरपूर दोहन नहीं हो पाया और वे अनअभिव्यक्त कविता की तरह रह गईं। अरुणा राजे की 'रिहाई' में उन्हें अलग भूमिका मिली और उन्होंने कमाल कर दिया। मां की भूमिका में जबरन ठूंसी गईं कलाकार ने 'रिहाई' में डिज़ायर को विश्वसनीयता से प्रस्तुत किया। इसी तरह फरीदा जलाल और नंदा को भी टाइप-कास्ट किया गया। यह चोपड़ा निर्देशित 'इत्तेफाक' के पहले ही दृश्य में सीढ़ियों से उतरती नंदा ने इस तरह का भाव अभिव्यक्त किया मानो वह कत्ल करके आ रही है और फिल्म में उनका चरित्र चित्रण ऐसा ही था। फिल्म दर फिल्म दुखियारी छोटी बहन अभिनीत करते-करते उनके भीतर की मुकम्मल औरत इस तरह एक ही शॉट में पूरी तरह अभिव्यक्त हुई। संस्कार के नाम पर औरत का औरतपन इसी तरह बेड़ियों में जकड़ा गया है। इसी तरह की बात कभी-कभी विकृति बनकर उभरती है। बाबूराम इशारा की फिल्म 'लोग क्या कहेंगे' में शबाना आजमी अभिनीत पात्र एक अन्य पुरुष से प्रेम करती है और अपने कम उम्र के पुत्र द्वारा देखे जाने पर उसकी हत्या कर देती है। हमेशा कुछ नया व चौंका देने की चाहत से किए गए काम इस तरह विकृति में बदल जाते हैं। रीमा लागू ने मां की छवि का आधुनिकीकरण किया और संतान के मित्र के रूप में प्रस्तुत हुईं। वे जोधाबाई के पुत्र सलीम को आशीर्वाद और पति अकबर की जीत की कामना के द्वंद्व में फंसी पात्र नहीं रहीं। इस आधुनिक छवि की मां ने पुत्र की प्रेम-कथा की सफलता की कामना की। इसी तथ्य को अर्थशास्त्र की भाषा में इन्टरप्रीट करें तो पति की पेन्शन पर पुत्र की कमाई भारी पड़ती है। रीमा लागू के व्यक्तित्व में इस तरह की आधुनिक मां विश्वसनीय लगती थी। उन्होंने मां की सिनेमाई छवि को निरुपा राय अभिनीत छवि के लिज़लिज़ेपन से बचाया गोयाकि गुलशन नंदाई अति-भावुकता की चाशनी मां की तितली को जकड़ती नहीं। लीला चिटनिस दुबली पतली महिला थीं, अत: वे गरीब पुत्र की मां की तरह परदे पर प्रस्तुत होती थीं, परन्तु रीा लागू की देह की मांसलता उन्हें अमीर परिवार की मां जिसके पुत्र सलमान खान जैसे हों, के रूप में दर्शक को यकीन दिला देती है। बहरहाल रीमा लागू ने मराठी भाषी फिल्मों और नाटकों में अपनी बहुमुखी प्रतिभा का परिचय दिया। हिन्दुस्तानी समाज और सिनेमा में मां की छवि निदा फाज़ली इस तरह बयां करते हैं- 'बेसन की सोंधी रोटी पर खट्‌टी चटनी जैसी मां याद आती है चौका, बासन, चिमटा, फुकनी जैसी मां बीबी, बेटी, बहिन, पड़ोसन थोड़ी-थोड़ी सी सबमें मां बांट के अपना चेहरा, माथा, आंखें, जाने कहां गई फटे पुराने एक एलबम में चंचल लड़की जैसी मां।'