रीवा में सफेद शेर की वापसी / जयप्रकाश चौकसे

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रीवा में सफेद शेर की वापसी
प्रकाशन तिथि :15 फरवरी 2018


रीवा में श्रीमती कृष्णा राजकपूर का जन्म हुआ था और राजकपूर की बारात भी रीवा ही आई थी। कुछ समय पूर्व रीवा में कृष्णा राजकपूर के निवास स्थल पर ही मध्यप्रदेश सरकार ने एक सभागृह के निर्माण के भूमि पूजन के लिए रणधीर कपूर को निमंत्रित किया था। दो दिन पूर्व ही अपनी रीवा यात्रा में देखा कि उस सभागृह की इमारत खड़ी हो गई है परन्तु उसे पूरा करने में अभी कुछ समय और लगेगा। रीवा निवासी मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री राजेन्द्र शुक्ल अपनी निगरानी में इस कार्य को करा रहे हैं। उन्होंने इंजीनियर और ठेकेदार को बुलाकर सात दिनों में यह बताने का आदेश दिया है कि उस भवन का उद्घाटन कब किया जा सकेगा। सारांश यह है कि कृष्णा राजकपूर संकुल महज घोषणा नहीं थी, वरन् उसे पूरा भी किया जा रहा है। इस भवन को समदड़िया निर्माण कंपनी बना रही है जो अपनी गुणवत्ता के लिए जानी जाती है।

रीवा विश्वविद्यालय में खाकसार को साहित्य एवं सिनेमा विषय पर अपने विचार अभिव्यक्त करने का सुअवसर मिला। लिज़लिज़े मौसम के बावजूद यथेष्ठ संख्या में श्रोता मौजूद थे। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर केएनसी यादव, प्रोफेसर दिनेश कुशवाह एवं उनके साथियों ने सार्थक शिक्षा प्रदान करने के लिए सकारात्मक वातावरण बनाया है। साहित्य और सिनेमा अभिव्यक्ति के माध्यम हैं परन्तु जब साहित्य की रचना से प्रेरित फिल्म बनाई जाती है तब कुछ परिवर्तन अवश्य होते हैं क्योंकि हर माध्यम का अपना व्याकरण, मुहावरे और ताकत होती है। दोनों के प्रभाव में भी अंतर होता है। एक या दो पाठक साथ बैठकर किताब पढ़ते हैं परन्तु फिल्म दर्शक संख्या अधिक होती है। अतः सामूहिक अवचेतन को प्रभावित करना थोड़ा कठिन होता है। अपने घर में हर व्यक्ति प्रेमल स्वभाव का संवेदनशील मनुष्य होता है परन्तु इसी आदमी का सड़क पर व्यवहार कुछ अलग हो जाता है और संसद में यह खामोश रहता है या अपनी मेज ऐसे थपथपाता है मानो वह चाबी भरा खिलौना हो।

मनुष्य का संपूर्ण वैचारिक रेजीमेंटेशन संभव नहीं है। हर व्यक्ति अपने में एक पूरा ब्रह्मांड समेटे होता है। मनुष्य की विचार शैली में परिवर्तन होते हैं, वह निरंतर बदलता रहता है परन्तु कुछ जीवन मूल्य कभी बदलते नहीं। यह ऐसा ही है जैसे समुद्र पर लहरें लगातार हिंडोले लेती हैं परन्तु समुद्र के गर्भस्थल में कभी कोई परिवर्तन नहीं होता। मनुष्यों की तरह हर शहर का भी अपना एक अलग व्यक्तित्व होता है। इसी विषय पर गुलज़ार ने लिखा है- 'यह शहर बहुत पुराना है, हर सांस में एक कहानी, हर सांस में एक अफसाना, यह बस्ती दिल की बस्ती है, कुछ दर्द दै, कुछ रुसवाई है, यह कितनी बार उजाड़ी है, कितनी बार बसाई है। यह जिस्म है कच्ची मिट्‌टी का, भर जाए तो रिसने लगता है, बाहों में कोई थामे तो, आगोश में गिरने लगता है, दिल में बस कर देखो तो, यह शहर बहुत पुराना है'। बहरहाल रीवा में भी उपरोक्त भावना महसूस हुई।

बहरहाल रीवा में मंत्री राजेन्द्र शुक्ल ने विकास का अपना घनत्व मॉडल बनाया है जिसके तहत नए निर्माण के लिए धन के स्रोत भी खोजे जाते हैं ताकि हर कार्य के लिए सरकारी कोष पर निर्भर नहीं होना पड़े। मसलन एक जर्जर इरमात को ढहाने के बााद भूभाग का कुछ हिस्सा बेचकर उसी धन से शेष बची जमीन पर नया निर्माण हो सके। मंत्री महोदय रीवा में 'रिवर फ्रंट' को रचने की योजना भी बना रहे हैं। इस मामले को श्रीमती कृष्णा कपूर से जोड़कर एक प्रश्न पूछा गया तो खाकसार का उत्तर था कि श्रीमती कृष्णा तो राजकपूर के जीवन में एक नदी की तरह प्रवाहित रहीं जिस पर नरगिस का एक घाट था तो दूजा वैजयंतीमाला का था परन्तु नदी तो सदैव प्रवाहमान होकर यशस्वी भई।

बहरहाल मंत्री महोदय से प्रदेश में घटते हुए सिनेमाघरों की समस्या पर बातचीत हुई। उनसे निवेदन किया गया है कि वे मुख्यमंत्री महोदय को सेन्ट्रल सर्किट सिने संगठन के एक निवेदन से अवगत कराएं कि सरकार आदेश जारी करे कि सिनेमा मालिक टिकिट के मूल्य से दस रुपये अपने सिनेमा के रखरखाव के लिए ले लें। इस तरह सिनेमाघर के विकास में सरकारी कोष पर कोई दबाव नहीं बनता गोयाकि दर्शक ही अपने सिनेमाघर का संरक्षण कर रहा है। यह भी घनत्व विकास ही होगा।

बहरहाल रीवा के सफारी पार्क में सफेद रंग के शेर की वापसी हुई है। ज्ञातव्य है कि सन् 1951 में रीवा के जंगल में सफेद शेर देखा गया था। सफेद रंग के शेर विश्व में केवल रीवा के जंगल में ही देखे गए। इस शेर का नाम रखा गया मोहन और उसी की संतानें विदेश भेजी गईं। काल चक्र ऐसा घूमा कि रीवा के जंगल में सफेद शेर नहीं रहा। अत: विदेश से एक जोड़ा आयात किया गया है। यह जोड़ा अपने पूर्वजों के जन्मस्थल पर लौटा है। इसी तरह हम अपने निर्यात किए गए विचारों का भी आयात कर रहे हैं क्योंकि व्यवस्था ने विचार जन्म पर अघोषित पाबंदिया जो लगा दी थीं। बहरहाल सिनेमाघर भी सफेद शेर की तरह हैं जिन्हें बचाया जाना चाहिए ताकि आयात करने की मजबूरी न हो जाए।