रुआब / मधु संधु

Gadya Kosh से
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बड़ा रुआब था उसका- घर में, गली मुहल्ले में, अस्पताल में। फार्मेसी में डिप्लोमा करने के बाद वर्षों बेकारी झेलनी पड़ी थी। इधर उधर डाक्टरों के यहाँ डेढ़ दो हजार पर बारह-बारह घंटे काम करना पड़ा था। किन्तु पिता की असमय मृत्यु ने उसे तिहरे लाभ में रखा। स्थानीय अस्पताल में अनुकम्पा नियुक्ति हो गई और वह सरकारी कर्मचारी बन गया। पिता के पी0 एफ0, ग्रेचुएटी से कार ले ली और लोग उसे कर्मचारी नहीं अधिकारी, कंपाउडर नहीं डॉक्टर समझने लगे। छत पर एक पुराना जेनरेटर और मशीन खरीदकर ऐनकों के शीशे बनाने का काम खोल लिया। दो कारीगर आने लगे और वह सरमायादार बन गया।

कार बारह-चौदह फुट चौड़ी गली में, जनरेटर छत पर और सजी-धजी पत्नी दरवाजे पर।

पता नहीं क्यों सारा मुहल्ला उससे जलने लगा। जनता कॉलोनियों के लोग वैसे भी चिढ़-चिढ़ ज़्यादा ही करते हैं। किसी को मशीनों के शोर से शिकायत थी, किसी को जेनरेटर के धुए से, किसी को कार द्वारा गली घेरने से।

बस चले तो वह गली में ही टीन की छत डाल कर कार के लिए पोर्च बना ले। जेनरेटर पड़ोसियों की खाली छत पर रखवा दे तथा दो मशीनें और लगवा मुहल्ले को जेनरेटर के काले धुए और शोर से भर इंडस्ट्रियल एरिया बना दे।