रुई सा नरम चाय सा गरम / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 26 फरवरी 2013
चौबीस फरवरी को सुभाष घई ने अपनी फिल्म 'कांची' की शूटिंग शुरू की और उन्हें शुभकामना देने उनके अनेक पुराने साथी जैसे अनिल कपूर, तोलू बजाज, जैकी श्रॉफ इत्यादि आए। गीतांकन से काम शुरू किया गया। नायिका मिष्टी, नायक कार्तिक और समानांतर भूमिका करने वाली नई तारिका। संगीत इस्माइल दरबार का है और गीत लिखे हैं इरशाद कामिल ने। रोमांटिक गीत के बोल हैं - 'रुई से नरम और चाय से गरम।' सुभाष घई ने पूना फिल्म संस्थान से अभिनय का प्रशिक्षण लिया और कुछ फिल्मों में छोटी भूमिकाएं भी अभिनीत कीं, परंतु शीघ्र ही उन्होंने लेखन और निर्देशन की ओर ध्यान दिया। उन्होंने अपनी पटकथा 'कालीचरण' कुछ इस अंदाज में निर्माता सिप्पी को सुनाई कि उन्होंने निर्देशन भी उन्हें सौंपा। इस फिल्म की सफलता ने सुभाई घई के लिए नए रास्ते खोल दिए। धर्मेंद्र अभिनीत 'क्रोधी' और दिलीप कुमार अभिनीत 'विधाता' के बाद उन्होंने अपनी निर्माण कंपनी मुक्ता की स्थापना की और ऋषि कपूर, टीना मुनीम अभिनीत 'कर्ज' बनाई। पुनर्जन्म पर आधारित प्रेमकथा में खतरा यह था कि पारंपरिक बुनावट के विपरीत इसमें नए जन्म में नई शक्ल के साथ नायक पैदा हुआ।
सुभाई घई ने देव आनंद की 'स्वामी' में चौथे खलनायक की भूमिका करने वाले जैकी श्रॉफ को नायक लिया और मनोज कुमार की असफल 'पेंटर बाबू' की नायिका मीनाक्षी शेषाद्रि को लेकर सफल 'हीरो' बनाई। सुभाष घई ने अमिताभ बच्चन के साथ महत्वाकांक्षी 'देवा' की कुछ दिन शूटिंग करने के बाद फिल्म को रद्द कर दिया। उन दोनों के बीच क्या अनबन हुई, कोई नहीं जानता परंतु फिल्म में अट्ठाइस लाख, जो उन दिनों बहुत बड़ी रकम थी, के नुकसान के साथ सुभाष घई ने अनिल कपूर, जैकी श्रॉफ एवं गुमनामी के अंधेरे में डूबी माधुरी दीक्षित के साथ सुपरहिट 'राम लखन' केवल 9 माह में बनाकर प्रदर्शित कर दी। दिलीप कुमार और राज कुमार के साथ नई तारिका मनीषा कोइराला को लेकर 'सौदागर' तथा संजय दत्त, माधुरी के साथ खलनायक बनाई।
सफलता के शिखर पर सुभार्ष घई ने अपनी कंपनी के शेयर प्रस्तुत किए और मुक्ता को कॉर्पोरेट कंपनी में बदल दिया। उन दिनों उनकी स्थिति यह थी कि घोषणा के साथ ही फिल्म बिक जाती थी और उन्हें शेयर बाजार से रकम एकत्रित करने की आवश्यकता नहीं थी, परंतु उनका सपना था एक फिल्म प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना का, जिसमें करोड़ों रुपए की पूंजी लगती है। यह संभव है कि वे पूना फिल्म संस्थान के प्रति अपना आदर इस तरह अभिव्यक्त करना चाहते थे। दुर्भाग्यवश वही संस्थान अदालती आदेश से उन्हें रिक्त करना होगा। निशाना तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख थे और आहत सुभाष घई हो गए- राजनीति कहां-कहां, कैसे-कैसे खेल रचती है। बहरहाल विगत कुछ वर्षों से उनकी फिल्में सफल नहीं हो रही हैं और उद्योग में लोग कहते हैं कि सुभाष घई अपनी ब्रांड वेल्यू खो चुके हैं। इस नई फिल्म द्वारा सुभाष घई स्वयं को पुनमार्जित कर रहे हैं और मनोरंजन जगत के बदलते दौर में अपना स्थान पुन: जमाना चाहते हैं। ज्ञातव्य है कि विगत वर्ष वे हृदय की शल्य चिकित्सा करा चुके हैं और आज फिर चुस्त-दुरुस्त तथा प्रसन्न नजर आ रहे हैं। यह सचमुच उनके भीतर का इस्पात ही है कि महत्वाकांक्षी स्वप्न ध्वस्त होने के साये में भी वे प्रसन्नचित्त हैं। उन्हें यकीन है कि सफल सार्थक मनोरंजन ही सभी सवालों का जवाब है।
जब एक फिल्मकार बदलते दौर में नई फिल्म को एक चुनौती की तरह मानता है, तब क्या वह अपनी विगत की सफलताओं के तौर-तरीकों से मुक्त होकर काम करता है? क्या विगत में उसकी फिल्मों पर बजाई गई तालयों की गूंज उसके आज की प्रतिध्वनि बन जाती हैं? क्या सुभाष घई अपनी नायिका मिष्टी को प्रस्तुत करते समय मीनाक्षी, माधुरी, मनीषा या ऐश्वर्या राय की अदाओं को भुला पाएंगे और अगर दोहराएं तो मिष्टी के साथ न्याय नहीं हो पाएगा। सुभाष घई के निकटतम सहयोगी गीतकार आनंद बक्षी थे और लक्ष्मी-प्यारे का संगीत उनकी फिल्मों में महत्वपूर्ण स्थान रखता था।
इस्माइल और इरशाद उनसे जुदा हैं, परंतु क्या मिक्सी सुभाष की होने के कारण ये भी वैसा ही पीसेंगे? इमली से खट्टा, गुड़ से मीठा, धागा ये कच्चा, वादा ये पक्का(ताल) ही 'रुई सा नरम' और चाय से गरम में गूंज रहा है। इंगमर बर्गमैन की फिल्मों में पानी से घिरी सूखी जमीन पर पात्र के खड़े रहने का दृश्य दोहराया गया है। राज कपूर ने अपनी १९४९ की 'बरसात' के कथा सूत्र को नेता-उद्योगपति गठबंधन और गंगा प्रदूषण से जोड़कर १९८५ में 'राम तेरी गंगा मैली' बनाई। सृजन के सभी क्षेत्रों में कलाकार बार-बार एक ही विचार पर लौटता है और यह उसकी ऊर्जा भी है और सीमा भी। यह संभव है कि मुक्ता कंपनी के कर्णधार सुभाष घई अपनी सारी पुरानी निर्देशकीय अदाओं से मुक्त होकर स्वयं को सर्वथा नए रूप में प्रस्तुत करें और यही स्वतंत्रता उन्हें अनेक समस्याओं से मुक्त कराएगी।
