रुक सत्तो! / शोभना 'श्याम'
एक बेहद सर्द दिन! दोपहर के बावजूद बाहर घटाटोप अंधकार है, जो खिड़की के रास्ते शारदा के मन-मस्तिष्क में उतरता जा रहा है। हलकी बूँदा-बाँदी बाहर भी हो रही है और अंदर भी। आसमान में रह-रह कर बिजली चमक रही है और दिल में टीस। प्रवासी बच्चों के विछोह ने स्वर्गवासी पति की यादों पर भी धार रख दी है, सो वह उसके वजूद को लहूलुहान कर रही हैं। व्हाट्सप्प के उस मैसेज को आँखों ने स्कैन करके अंदर रख लिया था और दोपहर से बार-बार रिवाइंड कर के देख रही थीं कि शायद आँखों में घिरी बदली के कारण ठीक से न पढ़ा गया हो।
पंद्रह दिन पहले ही तो बड़े का फ़ोन आया था कि बच्चों की सर्दी की छुट्टियाँ हैं, सो हम आ रहे हैं आपके पास। यहाँ तो इन दिनों भारी बर्फबारी के कारण कहीं भी निकलना असम्भव हो जाता है। बच्चे घर में बंद, बोर हो जाते हैं।
सुन कर ख़ुशी से शारदा के हाथ-पैरों में पंख लग गए थे। पहले बेटे-बहु और दोनों पोतों की पसंद के खाने और नाश्तों की लिस्ट बनाई फिर स्वयं बाज़ार जा-जाकर सारा ज़रूरी सामान लाई। दुकानदार ने टोका भी—"माता जी, आप फ़ोन कर देतीं न, मैं घर भिजवा देता सारा सामान। इतनी सर्दी में क्यों जोखिम उठा रही हैं।"
"अरे बेटा! यहाँ सामान देखकर बहुत-सी भूली हुई चीजें भी याद आ जाती हैं और फिर, इतनी भी बुढ़ा नहीं गयी हूँ मैं। इतने दिन बाद घर में ढंग का खाना-पीना होगा। कोई कसर नहीं रहनी चाहिए।"
सामान से शारदा कि सारी रसोई भर गयी है और आज व्हाट्सप्प पर–"सीमा को छुट्टी नहीं मिली, ऑफिस में अर्जेंट काम है। सॉरी माँ! अभी नहीं आ पाएंगे।"
ऐसा लगा जैसे किसी ने सक्शन पम्प से बदन की सारी जान खींच ली हो। जितनी बार वह मनहूस मैसेज आँखों के सामने फ़्लैश-सा चमकता, अवसाद के बादल और घने हो जाते। मन में आया कि इतने दिनों से इकठ्ठा किया सारा सामान उठा कर फेंक दे।
आकाश में छाई घटाओं में अपनों के चेहरे ढूँढती शारदा को पता ही नहीं चला, कब दोपहर ढल गयी और कब उसकी घरेलु सहायिका सारा काम निपटा कर उसके पीछे आ खड़ी हुई। शारदा के कंधे पर धीरे-से हाथ रख बोली—"मम्मी जी, जा रही हूँ, दरवाजा लगा लो।"
"हाँ ...आती हूँ ...अरे ... रुक सत्तो! बारिश तेज हो गयी है, भीग जाएगी। चल...चाय के साथ गर्मागर्म पकौड़े बनाते हैं। दोनों बैठकर खाएंगे।"
" और सुन तू कह रही थी न तेरे बेटे का जन्मदिन आने वाला है उस दिन उसे और उसके सारे दोस्तों को यहाँ लेकर आना। उसका जन्मदिन मनाएंगे।