रूडयार्ड किपलिंग : बचपन का महाकाव्य / जयप्रकाश चौकसे

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रूडयार्ड किपलिंग : बचपन का महाकाव्य
प्रकाशन तिथि :23 अप्रैल 2016


मोगली ने सुपरसितारा शाहरुख खान को चारों खाने चित कर दिया है और लोकप्रियता के अखाड़े में 50 वर्षीय शाहरुख के लिए शाम के साये घने होते जा रहे हैं। इस संदर्भ में सबसे बड़ी बात यह है कि 1921 में वाल्ट डिज़्नी के साथ उस दौर के सितारे वाजिब मेहनताने पर काम नहीं करना चाहते थे। अत: वाल्ट डिज़्नी ने ऐसा मनोरंजन संसार रचा, जिसमें सितारे की आवश्यकता ही नहीं थी। उनकी एनिमेशन फिल्में सितारा सज्जित फिल्मों से अधिक धम कमाती हैं। वाल्ट डिज़्नी ने यह बात समझ ली कि बच्चों के लिए मनोरंजन गढ़ते ही पूरा परिवार आपका दर्शक हो जाता है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि हर उम्र के इंसान में एक शिशु बैठा होता है और वाल्ट डिज़्नी इसी अनंत शिशु से मुखातिब हैं। इस तरह बचपन में वाल्ट डिज़्नी ने महाकाव्य की संभावनाएं खोज ली और इसे उन्होंने अपनी 'विनय पत्रिका' बना लिया। अगर 'मानस' के लिए धैर्य नहीं है तो विनय पत्रिका मंे रमिए। इस तरह एनिमेशन वाल्ट डिज़्नी का 'ठुमक चलत नंदलाल बाजे पैंजनिया' हो गया और इसने तीन डग में विश्व भ्रमण कर लिया। डिज़्नी परिवार ने थीम पार्क रचे और वे आज भी इस क्षेत्र में इतने अग्रणी है कि चीन के आमंत्रण और सहयोग से उन्होंने वहां भी थीम पार्क बनाए। उनसे एक चूक यह हो गई कि भारत जैसी विशाल मंडी में उन्होंने थीम पार्क नहीं रचा, क्योंकि उनकी मार्केटिंग टीम ने रिपोर्ट दी कि भारत में पंद्रह सौ रुपए का टिकट खरीदने की क्षमता कम लोगों के पास है। इस रिपोर्ट को मनमोहन शेट्‌टी ने चुनौती की तरह लिया और 'इमेजिका' नामक थीम पार्क रचा, जिसे विशेषज्ञ िडज़्नी की गुणवत्ता के समान मानते हैं।

मोगली सिनेमाघरों की डालियों के सहारे छलांगें लगाते हुए कम समय में सौ करोड़ का व्यवसाय कर चुकी है और इस वर्ष अब तक प्रदर्शित सारी भारतीय फिल्मों से अधिक सफल मानी जा रही है। ग्रीष्म ऋतु में प्रदर्शन भी इसकी सहायता कर रहा है। 'जंगल बुक' के लेखक रूडयार्ड किपलिंग लंबे समय तक भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम करते रहे और अपने शिमला प्रवास में ही उन्होंने 'जंगल बुक' की रचना की जिस पर एकाधिक बार फिल्में बन चुकी हैं और हर बार सफल रही। इस ताज़े संस्करण में एक परिवर्तन यह किया गया है कि जानवरों के कुछ दृश्य अत्यंत डरावने बन गए हैं और सेन्सर ने बच्चों के साथ परिवार के सदस्य का आना अनिवार्य कर दिया है। संभवत: इस परिवर्तन का कारण यह है कि डरावनी फिल्मों के व्यवसाय में बच्चों का योगदान भी देखा गया है। हॉलीवुड में दर्शक रुचियों के कारण 1968 से ही सुपरहीरो, हॉरर फिल्में और विज्ञान फंतासी फिल्मों की संख्या बढ़ने लगी। सर्वाधिक कमाई वाली फिल्मों में भी इस श्रेणी की फिल्मों ने बाजी मारी है।

समय के साथ बच्चों की रुचियां बदलती हैं। आज के उम्रदराज लोगोें ने अपने बचपन में जिस तरह की किताबें पढ़ीं, फिल्में देखीं, उससे जुदा है आज के बच्चों की रुचियां। कम्प्यूटर से खेलने वाले बच्चे जल्दी वयस्क हो जाते हैं। आज बचपन परिवर्तन के रोलरकोस्टर पर है। पुराने वक्त की पगडंडियां राजमार्ग और हवाईमार्ग में बदल चुकी हैं। कानून को भी बाल अपराध के नियम बदलने चाहिए। बाजार में बिकते बच्चों के खिलौनों पर गौर करें। इन खिलौनों में हथियारों और डरावने मुखौटों की संख्या अधिक हो गई है। मासूम से तमंचे की जगह स्टेनगन ने ले ली है, तोपों के दहाने विराट हो गए हैं। बचपन से मासूमियत का लोप हो रहा है और हिंसा के बीज बोए जा रहे हैं। छुपाछाई की जगह युद्ध खेलों ने ले ली है। बचपन को पूरे जीवन की पटकथा माना जाता है तो हमें तैयार रहना चाहिए कि आज के बच्चे कल के कैसे नागरिक होंगे? वक्त अपनी बैकरी में विविध डबल रोटी, केक और पैस्ट्री बनाता है। इसी तरह हमारी पाचन क्रिया भी हर तरह के भोजन को पचाने की क्षमता रखती है। हैरतअंगेज बात यह है की पानी अग्नि को बुझा देता है परंतु मनुष्य के पेट में भूख की ज्वाला पाचक द्रव्य का निर्माण करती है अर्थात पांचों तत्व जीवन में अलग-अलग काम करते हैं और उनमें बैर भी हो सकता है परंतु मनुष्य के शरीर में इन विरोधियों में सामंजस्य बना रहता है। राजनीति में विरोधी कातिलाना होते हैं और जिस दिन वे गरीब के पेट का विचा करने लगेंगे उनमें सामंजस्य हो जाएगा। अपने पेट और उसकी अमानवीय भूख से बच सकें तो कुछ सार्थक करें। नेता का हाजमा देखिए कि उसमें स्टील व सीमेंट की इमारतें पच जाती हैं। बांध धंस जाते हैं और सड़कें निगल ली जाती हैं।

रूडयार्ड किपलिंग के सोच की सकारात्मकता देखिए कि मानव बच्चे को हिंसक जानवरों ने पाला अर्थात लेखक जानवर में मनुष्य की करुणा देख रहा है और परोक्ष इशारा यह है कि वह अपने अधीन गुलामों के साथ अमानवीय व्यवहार करता है और जानवरों के प्रति करुणा का भाव रखता है। उसके भीतर छिपा व्यापारी ही उसकी सोच का इंजन रहा है। समय का चक्र ऐसा घूमा कि कभी सूर्य न अस्त होने वाले साम्राज्य के निर्माता आज आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं और उनकी संसद में भारतीय मूल के कुछ सदस्य हैं। अत: किसी दिन उनका प्रधानमंत्री एक भारतीय अथवा अश्वेत अफ्रीकी हो सकता है।