रूथ प्रवर झाबवाला को सलाम / जयप्रकाश चौकसे

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रूथ प्रवर झाबवाला को सलाम
प्रकाशन तिथि : 09 अप्रैल 2013


सिनेमा की बॉक्स ऑफिस सफलता से फिल्मकारों का ग्रसित होना तो समझा जा सकता है, परंतु मीडिया और अवाम भी उन आंकड़ों में डूब जाए, यह कुछ अजीब लगता है। शायद यही कारण है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने रूथ प्रवर झाबवाला की ८५ वर्ष में हुई मृत्यु को अनदेखा किया। ऑस्कर को सर्वोच्च सम्मान मानने वाले लोग भी ई.एम. फास्टर के 'रूम विथ ए व्यू' और 'हार्वड्स एंड' नामक पुस्तकों पर लिखी पटकथाओं के लिए ऑस्कर प्राप्त करने वाली रूथ प्रवर झाबवाला को अनदेखा कर गए। ज्ञातव्य है कि रूथ ने झाबवाला नामक भारतीय पारसी आर्किटेक्ट से प्रेम विवाह किया था और तीन दशकों तक वे दिल्ली में रहीं। यह प्रेम कहानी लंदन में पनपी और १९५१ में उनका विवाह हुआ। इस दंपती की तीन पुत्रियां हैं। न्यूयॉर्क में मृत्यु के पूर्व अपनी बेटी से उन्होंने कहा कि उनके जीवन का सबसे बड़ा आशीर्वाद और सुख उनके पति रहे। यह बताना तो कठिन है कि उनकी अंत्येष्टि न्यूयॉर्क में पारसी विधि से संपन्न हुई या उन्हें क्रिश्चियन की तरह दफनाया गया, परंतु यह तय है कि भारत को समझने और ग्रहण करने का काम उन्होंने निष्ठा से किया तथा उनके दर्जन भर उपन्यासों की थीम हमेशा भारत ही रही। उनके उपन्यास 'हीट एंड डस्ट' पर फिल्म भी बनी तथा उसे बुकर पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया।

उनकी मृत्यु की खबर से निश्चय ही शशि कपूर की आंखें नम हो गई होंगी, क्योंकि उनकी पहली फिल्म इस्माइल मर्चेंट और आइवरी की हाउस होल्डर रूथ ने ही लिखी थी। इस्माइल मर्चेंट और जेम्स आइवरी की फिल्म कंपनी ने न केवल दो दर्जन फिल्में बनाईं वरन सत्यजीत राय की क्लासिक्स के निगेटिव के संरक्षण पर भी मेहनत की तथा धन लगाया। शशि कपूर और उनकी पत्नी जैनिफर इस फिल्म कंपनी के संरक्षक रहे और हमेशा सहायता की। रूथ ने लगभग दो दर्जन पटकथाएं लिखी हैं। वह मध्य यूरोप में जन्मी थीं और इंग्लैंड में उनकी शिक्षा हुई थी तथा भारत उनकी सृजन प्रक्रिया का केंद्र रहा। उनके पात्रों का हृदय हमेशा वेगवती संवेदनाओं से उद्वेलित रहता था और प्रेम तथा भोजन के लिए हमेशा तीव्र तड़प होती थी जैसा जैनेटवाट्स ने उनकी आदरांजलि में लिखा है और वही इस लेख की प्रेरणा भी हैं।

अगर हम मान लें कि न्यूयॉर्क में वे दफनाई गई हैं तो जमीन के उस टुकड़े में हिंदुस्तान के लिए तड़प और प्रेम भी दफन हुआ है। इस मायने में बराक ओबामा के देश का वह छोटा-सा हिस्सा हिंदुस्तान है, जिस तरह भारत में दफन कुछ अंग्रेजों के अपने मोह के कारण जमीन का वह हिस्सा इंग्लैंड है। बहादुर शाह जफर ही वे बदनसीब थे, जिसे 'दो गज जमीन मिली कुआं ए यार' में। विचार की इस कड़ी को आगे ले जाएं तो पाकिस्तान में दफन वे लोग जिन्हें ताउम्र हिंदुस्तान की याद घेरे रही, पाकिस्तान के उस हिस्से को अपने सुपुर्द-ए-खाक होने के कारण हिंदुस्तान का ही बना गए हैं। दरअसल, सारी धरती एक ही है और भौगोलिक सरहदें अपना अर्थ खो देती हैं। जीवन में हम देश से बंधे होते हैं, परंतु मृत्यु के बाद सभी एक ही धरती की शरण लेते हैं, जिसका कोई राजनीतिक नाम नहीं है।

फिल्म लेखकों की पारंपरिक छवि से बिलकुल अलग रही रूथ प्रवर झाबवाला जिन्होंने दिल्ली के अपने घर में ही बैठकर अधिकांश पटकथाएं लिखी और वे कभी स्टूडियो नहीं गईं तथा फिल्म निर्माण प्रक्रिया से उन्होंने स्वयं को दूर ही रखा। गोया कि उनके लेखन टेबल पर रची फिल्म उन्होंने संपूर्ण होने के बाद ही देखी। उन्होंने ऐसे फिल्मकारों के लिए ही लिखा, जिन्होंने पटकथा को सृजन निष्ठा के साथ ही फिल्मांकित किया। हिंदुस्तानी व्यावसायिक सिनेमा में पटकथा में निरंतर परिवर्तन किए जाते हैं और सितारों की दखलंदाजी संपादन टेबल तक जारी रहती है। यह गौरतलब है कि पटकथा लेखन का ऐसा हौव्वा फिल्मवालों ने खड़ा किया है, मानो वह कोई रॉकेट विज्ञान हो। रूथ प्रवर झाबवाला ने या सत्यजीत राय ने तो किसी संस्थान में यह शास्त्र नहीं सीखा, परंतु अमर फिल्मों का निर्माण किया। परदे पर कथा किस रूप और शृंखला में प्रस्तुत हो, यही पटकथा लेखन है अर्थात लिखने के पहले अपने मानस चक्षु से मस्तिष्क के परदे पर पूरी फिल्म को देख लें। कल्पना को निखारने का कोई स्कूल नहीं हो सकता, हां उसको संवारने का प्रशिक्षण दिया जा सकता है। बहरहाल, रूथ प्रवर झाबवाला ने अंग्रेज नजरिये से भारत को देखा अर्थात उनके अवलोकन में एक निर्मम तटस्थता रही होगी। आप प्रेम के नजरिये से देखने पर तटस्थ नहीं रह सकते और आकलन में भी त्रुटि आ सकती है। दरअसल, तर्क के परे केवल महानता के गुणगान को स्तुति कहा जा सकता है, परंत यह यथार्थ का चित्रण नहीं है। साथ ही हिकारत के पूर्वाग्रह से देखना भी दोषपूर्ण ही है। इस तरह प्रेम और नफरत दोनों से बचते हुए देखना तथा लिखना एक सुरक्षित बात हो सकती है। सच तो यह है कि अधिकांश लेखक तीव्र नफरत या अति प्रेम से ग्रस्त होते हैं। किसी भी चीज को उसकी समग्रता में देखकर ही आकलन किया जा सकता है। हर कथा में समय अपने संपूर्ण रूप में एक पात्र होता है और वही नायक भी है। लिखने वालों से ज्यादा मजबूत पूर्वाग्रह पढऩे वालों के होते हैं। तटस्थता असंभव आदर्श है। लेखक का किसी राजनीतिक आदर्श में विश्वास लेखन को धार देता है। लेखन डुप्लीकेटिंग मशीन नहीं है और न ही जस का तस रखने को सृजन कहा जा सकता है।