रूप की बेड़ी / शम्भु पी सिंह
"तेरे तो बड़े ठाट-बाट हैं। अच्छा घर पकड़ा है तुमने। लगता है मालिक की कृपा कुछ ज्यादा ही है तुमपर।" पड़ोसिन चन्द्रकला कामिनी के सौंदर्य पर कमेंट कर रही थी।
"अरे नहीं! मेरे मालिक ऐसे नहीं हैं जो तुम सोच रही हो। मालकिन ही मेरा बहुत खयाल रखती हैं। घर के सदस्य जैसा ही मेरे साथ व्यवहार होता है। हाँ काम की जहाँ तक बात है तो जिस काम के लिए मुझे रखा गया है, वह तो आखिर मुझे ही करना होगा न। चन्द्रकला एक बात सुन, आज के बाद मालिक को लेकर मुझसे कोई बात की न तो मैं तुम्हारा सारा पोल पट्टी खोल दूंगी। ये जो छम्मकछल्लो बनी फिरती हो न, सब मुझे पता है। बड़ी चली सती सावित्री बनने। जब देखो कुछ भी बोलती रहती है। अपनी इज्जत प्रतिष्ठा को ताक पर रख समझती है, सब ऐसे ही हैं।" कामिनी के बदले तेवर से झोपड़ पट्टी के आसपास खड़ी महिलाएँ धीरे से खिसक गई। चन्द्रकला को भी समझ में आ गया कि उसकी बातें कामिनी को अच्छी नहीं लगी। कामिनी चन्द्रकला को जवाब नहीं देना चाहती थी, लेकिन रोज-रोज दस महिलाओं के बीच में मालिक के बारे में उसका कुछ से कुछ बोलना उसे अच्छा नहीं लगता था। भला बबुआन टोला वाले सुनेंगे तो मालिक की भी तो बदनामी होगी।
कामिनी गाँव के दक्षिण-पूर्वी कोने पर बसे पासवान समाज के बीस-पच्चीस घरों की बस्ती में अपने भाई-भौजाई के साथ रहती है। उसके मां-बाप गुजर चुके हैं। इस छोटी से बस्ती में रहने वाले अधिकांश खेतों में या बस्ती वालों के घरों में काम कर अपना पेट पालते हैं। इनका यह काम अपने बाप दादा के जमाने से ही चल रहा है। बगल में ही कुछ दूरी पर सवर्णों का टोला है। जहाँ सौ से अधिक घर है। जिसमें बाबुआनो की संख्या अधिक है। कुछ ब्राह्मण और दस घर कायस्थों का भी है। इनमें से अधिकांश की निर्भरता खेती और बच्चों की नौकरी पर है। अब कुछ व्यापार में भी लग गए हैं।
बाबुआनो में एक घर सोमेश्वर सिंह का भी है। गाँव के ही उच्च विद्यालय में प्रधानाध्यापक हैं। जबकि छोटा भाई राजेश्वर खेती गृहस्थी का काम काज संभालते हैं। दोनों भाई साथ-साथ हैं। दोनों के बच्चों ने बाहर रहकर ही पढ़ाई कर रहे हैं। हालांकि अच्छी खासी खेती भी है। जिसका सारा दारोमदार राजेश्वर पर ही है। हालांकि बड़े भाई सोमेश्वर को बिना पूछे वह कोई निर्णय नहीं करते। सोमेश्वर को एक बेटी अनामिका और बेटा गुंजन है। अनामिका ने एम ए की पढ़ाई पूरी कर बैंक में पी ओ के पद पर एक साल पहले योगदान दिया है। गुंजन इंटर के बाद मेडिकल की तैयारी में लगा है। आज सोमेश्वर सिंह की बेटी अनामिका की शादी है। शादी की सारी तैयारियाँ हो चुकी है।
कामिनी सोमेश्वर-सोमेश्वर सिंह के घर माँ के साथ बचपन से आती रही है। माँ के गुजर जाने के बाद घर के साफ-सफाई की जिम्मेदारी कामिनी के कंधे पर ही आ गई है। कामिनी के लिए इस घर में आना तो एक रूटीन की तरह है, लेकिन आज घर में शादी का माहौल है तो कामिनी भी अपनी हैसियत के अनुसार तैयार हो कर मालिक के घर जाने को निकली ही थी कि चन्द्रकला से उसकी बहस हो गई। चन्द्रकला को जो सुनाना था, सुना दिया। कामिनी की एक झिड़की से उसकी बोलती बंद हो गई। हालांकि शादी-विवाह के मौके पर कामिनी मालकिन के व्यवहार से थोड़ा असहज महसूस करती है। अनामिका के रिंग सेरेमनी के दिन भी मालकिन ने उसे सुबह ही बुला लिया था। आयोजन भी अच्छा था। लेकिन पता नहीं लड़के की माँ ने कामिनी के बारे में पूछताछ की तो मालकिन को अच्छा नहीं लगा था। क्योंकि उन्होंने कामिनी की सुंदरता की तारीफ की थी। यह सही भी है कि जो भी कामिनी को देखता है, देखता ही रह जाता है। रिंग सेरेमनी के दिन भी हर मेहमान की नजर एक बार कामिनी पर अटक ही जाती थी। कामिनी को बुरा तब लगा जब मालकिन ने उसे वहाँ से जाने को कहा। शायद कामिनी की उपस्थिति से अनामिका की तुलना हो जा रही थी। इसमें उसका क्या दोष। अनामिका तो सज-संवर कर बैठी थी, जबकि कामिनी ने तो रोज की तरह ही अपने को तैयार किया था। हालांकि आज उस दिन वाली स्थिति नहीं होगी। आज तो उनकी शादी है। आज तो गहमा-गहमी अधिक रहेगी। कौन किसे देखने को बैठा है। उस दिन तो कुछ ही मेहमान थे और देखने-दिखाने वाली बात थी। फिर भी पता नहीं मालिक के घर बढ़ते हुए आज उसके पांव कांप रहे थे। सोचते हुए अभी वह दरवाजे तक पहुँची भी नहीं थी कि मालकिन की आवाज उसके कानों से टकराई।
"अरे मुई! आज तो थोड़ा पहले आ जाती। कितना काम है आज। पूरे घर की सफाई होनी है, कब करेगी। ?"
"कर लेंगे मालकिन। अभी तो काफी समय है।" कामिनी के पास दूसरा कोई उत्तर था भी नहीं।
कामिनी पूरे दिन साफ-सफाई से लेकर चाय, नास्ता और सभी को खाने खिलाने में व्यस्त रही। कब शाम हो गई उसे पता ही नहीं चला। बारात आने का समय हो गया था। घर की सभी महिलाएँ साज-शृंगार में व्यस्त थी। अनामिका तो ब्यूटी पार्लर गई थी। कामिनी का भी मन कर रहा था कि आधे घण्टे की भी छुट्टी मिल जाती तो बारात आने से पहले स्नान कर नया सलवार-सूट पहन लेती। लेकिन मालकिन की व्यस्तता देख उसकी हिम्मत ही नहीं हो रही थी कुछ कहने की।
बारात दरवाजे पर आ गई। गांव-घर के पुरूष जहाँ बारात की खातिरदारी में व्यस्त हो गए, वहीं महिलाएँ शादी के रस्मों-रिवाज में। कामिनी के हिस्से तो गन्दगी ही थी। कहाँ किसने जूठी थाली छोड़ दी, कौन-सा बर्तन गन्दा है, किधर बच्चों की धमा चौकड़ी के कारण गन्दगी फैली हुई है, सबकी सफाई उसी को करनी थी। कभी मालकिन किसी काम के लिए पुकार लेती, तो कभी मालिक को चाय की तलब हो जाती। सबकी फरमाइश पूरी करने का काम इसी का था। शादी के रश्मों के बारे में तो कुछ पता ही नहीं चला। अचानक मालकिन की आवाज कानों से टकराई-
"कामिनी मंडप पर चली जाओ, कन्या निरीक्षण में अनामिका को दिखाना है। चिंता न करो लड़के वाले तुम्हें पैसा भी देंगे।"
"मालकिन बारात में आए लोगों के सामने जाऊंगी, थोड़ा तैयार तो हो लेती। क्या कहेंगे लोग कि नौकरानी का लोग ख्याल भी नहीं रखते हैं।" कामिनी ने निशाना दूर का लगाया था कि शायद खुद की बेइज्जती के नाम पर ही सही, कुछ देर घर जाने की इजाजत दे दे। लेकिन अनामिका की माँ पर इसका उल्टा ही असर हुआ।
"अरे मुई! तुम तो ऐसे ही बला की खूबसूरत हो। सज-संवर कर जाओगी तो बाबुआनो की बेटियाँ भी तेरे सामने फीकी पड़ जाएगी। बारात में आए लड़कों पर डोरे डालनी है क्या?" उसकी मालकिन भी आज मजाक के मूड में थी।
"क्या माई! आप भी कुछ से कुछ बोलती हैं। मैं क्यों किसी पर डोरे डालने लगी। बाबुआनो में एक से एक सुंदर लड़कियाँ हैं। मुझे तो किसी पासवान के घर ही जाना है।"
"आज तो अनामिका को विदा कर लो। तुम्हारी डोली भी जल्द ही सजाते हैं। अभी हाथ-पांव धो कर मंडप पर जाओ।"
"जी मालकिन जा रही हूँ।" कामिनी जल्दी-जल्दी हाथ-पांव धो कर मंडप पर चली गई।
बाहर के दालान के आंगन में बारातियों का हुजूम था। मंडप पर कामिनी अनामिका के पीछे खड़ी हो गई। दो लड़के अनामिका के सामने चादर खींचे खड़े थे, ताकि लड़की दिखाने की रश्म से पहले अनामिका न दिखे।
दुल्हा के पिता और बड़े भाई मंडप पर रश्म अदायगी के लिए आ गए। पंडित के मंत्रोच्चार के बीच कन्या निरीक्षण से सम्बंधित प्रक्रिया अपनाई जा रही थी। चादर से दुल्हन का हाथ बाहर निकलवाया गया। लड़के के पिता जी पंडित जी के निर्देशानुसार पूजन सामग्री दुल्हन के हाथ रख रहे थे। मंडप के आसपास बारातियों के साथ सरातियों का भी झुंड मौजूद था। लड़की के पीछे गाँव की महिलाएँ मंगल गीत गा रही थी। मंडप के पास दुल्हा की मित्रमंडली भी चुहलबाजी में व्यस्त थे। कन्या निरीक्षण की बारी आई। चादर पकड़े लड़कों ने चादर हटा ली। सारे बारातीगण दुल्हन देखने बेताब दिख रहे थे। एक दूसरे के कंधे के सहारे उचक-उचक कर झांकने का प्रयास कर रहे थे। अब बारी कामिनी की थी, दुल्हन का घूंघट उठाने की। बारातियों के आग्रह के बावजूद बिना कुछ दिए वह ना में सर हिला रही थी। आखिरकार लड़के के पिता ने पांच सौ रुपए आगे बढ़ाया। कामिनी ने धीरे से लड़की के चेहरे से घूंघट हटाया। पांच मिनट बाद पुनः घूंघट से चेहरे को ढक दिया। कन्या निरीक्षण का रस्म पूरा हो चुका था। धीरे-धीरे बाराती आपस में बात करते हुए आंगन से बाहर सरकने लगे। मंडप के पास खड़े दुल्हा के सभी दोस्त भी बाहर जाने को कदम बढ़ाने लगे। उन्हीं दोस्तों में से किसी एक ने सुनाने के अंदाज में धीरे से अपने दोस्तों से कहा-"यार दुल्हन से अच्छी तो उसकी नौकरानी ही है। क्या सुंदरता पाई है उसने।"
मंडप के पास खड़े हर व्यक्ति के कानों तक यह बात पहुँची। कन्या सहित कन्या के साथ बैठे उसके होने वाले पति, गाँव के अन्य लोगों के अलावे कन्या के पिता और खुद कामिनी ने भी सुना था। कुछ देर के लिए तो मंडप के आसपास सन्नाटा-सा छा गया। कामिनी कन्या को आगे की रस्म अदायगी के लिए मंडप से उठाकर अंदर कमरे में ले जाने लगी। अनामिका के पापा अंदर के बरामदे पर खड़े अनामिका की माँ से बातें कर रहे थे। उनकी नाराजगी इस बात को लेकर थी कि रिंग सेरेमनी में भी लड़के की माँ ने कन्या के सामने ही कामिनी के सुंदरता की तारीफ की थी, तब भी किसी को अच्छा नहीं लगा था। फिर आज क्यों कामिनी को मंडप पर कन्या निरीक्षण के लिए घूंघट हटाने को भेजा गया था। लोगों को तुलना करने का मौका मिल जाता है। उन्होंने तो अपनी पत्नी से यहाँ तक कह दिया कि अभी उसे कह दो घर जाने को। लड़की विदा हो जाएगी तब आए। पीछे से अनामिका के साथ कामिनी भी बरामदे तक आ चुकी थी। सोमेश्वर सिंह की सारी बातें उसने भी सुनी। किसी तरह अपने-आपको संभाला। जबाव देना तो उसके वश की बात नहीं थी। अनामिका को कमरे में अन्य सहेलियों के साथ बिठा, वह वापस जाने लगी। अनामिका ने उसका हाथ पकड़ा। अपने पिता की बातें उसने भी सुनी थी। अनामिका के हाथ पकड़ते ही कामिनी अपने-आपको रोक नहीं पाई। उसकी आंखों से अश्रुधारा बह निकली।
"मेरी क्या गलती है दीदी। मुझे तो मालकिन ने ही भेजा था। मैं तो वही करती हूँ जो घर के लोग कहते हैं, लेकिन बिना गलती के भी मुझे ही सुनना पड़ता है। मैं इस चेहरे का क्या करूं। ऊपर वाले ने जैसा बनाया है, वैसी हूँ। बार-बार मुझे ताना क्यों दिया जाता है। अभी आपने भी सुना न मालिक मुझे घर जाने को कह रहे थे। कैसे आपको छोड़कर चली जाऊँ। बचपन से आजतक हर सुख-दुख में इसी परिवार के साथ जीना सीखा है। मेरे चेहरे पर कालिख लगा दीजिए, ताकि मेरा चेहरा आपके लिए कोई बाधा न बने, लेकिन मुझे ऐसे मौके पर घर से मत निकालिए।" न चाहते हुए भी कामिनी अपनी सिसकी रोक नहीं पाई।
"तुम कहीं नहीं जाएगी। मैं जैसी हूँ वैसी ही लोगों को स्वीकारना होगा। मेरे लिए तुम कल भी बाधा नहीं थी और आज भी नहीं हो। जिसको जो सोचना है, सोचे। तुम मुझसे सुंदर हो, तो मेरे लिए यह भी गर्व की बात है। तुम इस घर की नौकरानी नहीं हो, मेरी बचपन की सहेली हो। अभी मेरी शादी नहीं हुई है। अगर लड़के वाले पुनर्विचार करना चाहें, तो वे स्वतंत्र हैं। मंडप के पास किए गए कमेंट को सिर्फ मैंने नहीं, मेरे होने वाले पति ने भी सुना है। किसी में हिम्मत है तो आगे आकर तेरा हाथ मांगे। इसी मंडप पर तुम्हारी शादी मैं करा दूंगी।" अनामिका सिर्फ कामिनी को नहीं पूरे घर को सुना रही थी। अनामिका की बातों से कामिनी सारी बातें भूल उसके गले से लिपट गई।
"मेरा यही रूप मेरी लिए बेड़ी बन चुकी है दीदी। मन तो करता है अपने चेहरे को जला दूं। जहाँ जाती हूँ, वहीं ताना सुनना पड़ता है। मेरे टोले में मेरी जात के लोग मुझे मेरे पिता की औलाद नहीं मानते। लोगों को लगता है एक पासवान की औलाद इतनी सुंदर कैसे हो सकती है। अब किसका जना हूँ, मुझे क्या पता। मेरी मरी माँ को भी लोग गाली देते हैं। मेरी शादी होने में भी मेरा यही रूप बाधक है। जो भी मुझे शादी के लिए देखने आता है, वह इसलिए लौट जाता है कि मैं ज्यादा दिन अपनी जात वालों के घर नहीं रहूंगी। बताओ दीदी मैं क्या करूं।" धीरे से अनामिका ने उसे अपने से अलग किया। तब तक अनामिका की माँ भी आ चुकी थी।
"तुम्हारी कोई गलती नहीं है कामिनी। तुम बिन मां-बाप की बेटी नहीं हो। अपने समाज से कह दो, तुम्हारे मां-बाप मरे नहीं हैं। तुम हमारी बेटी हो। अपने भाई और भौजाई को अपनी जिम्मेदारी से मुक्त कर दो। तुम्हारी शादी की जिम्मेदारी मेरी है। जिसको जो बोलना है बोले। मैं तुम्हारे साथ हूँ। तुम्हें कहीं नहजाना है। तुम साए की तरह अनामिका के साथ रहो।" अनामिका के माँ की बातों को सुन कमरे के अंदर और कमरे के बाहर मौजूद सभी महिलाएँ ताली बजाने लगी। कामिनी गालों पर ढलके आंसुओं के साथ हंसने को मजबूर थी। तब तक अनामिका के पापा सोमेश्वर सिंह भी आ गए थे।
"मुझसे गलती हो गई बेटी। माफ करना।"
कामिनी उनके पैरों से लिपट गई। सोमेश्वर सिंह ने उसे अपने हाथों उठाया और गले से लगा लिया।