रेजर के ब्लेड / दीपक मशाल
“मनीष तुम्हारे पास कोई ब्लेड पड़ा है क्या? मुझे शेव बनानी है और देखा तो ब्लेड ख़त्म हो रखे हैं। बाजार तो कल ही जा पाऊंगा” आँगन में खड़े होकर सुखलाल ने अपने ही मकान में हिस्सा बांटकर ऊपर वाले हिस्से में रह रहे बेटे को आवाज़ देकर पूछा।
आँगन के ऊपर पड़े जाल पर आकर मनीष ने कहा, “पिताजी, अब आपके तरह एक ब्लेड के ज़माने नहीं रहे। मैं चार ब्लेड वाला जिलेट का सेफ्टीरेजर इस्तेमाल करता हूँ, आप भी करके देखिये। आपकी किस्मत कि एक नया रेजर अतिरिक्त पड़ा हुआ है।”
“जो भी हो दे दे बेटा, अभी काम चलाना है”
“अच्छा दे देता हूँ आप भी क्या याद रखेंगे पिताजी, लेकिन बाज़ार जाएँ तो लौटाने के लिए याद से इसी कंपनी का रेजर लाइयेगा।”
मनीष ने ऊपर से रेजर का नया पैकेट फेंका तो वह सुखलाल के हाथ से टकरा कर आँगन के फर्श पर गिर पड़ा। वो कैच करता भी कैसे, दिमाग तो इस सवाल का जवाब खोजने में उलझ गया था कि, “क्या ब्लेड बढ़ने से खून के रिश्ते भी इतनी तेज़ी से कटते हैं?”