रेड नाइट / कुँवर दिनेश
नए ज़िला न्यायाधीश ने अभी हाल ही में चार्ज सँभाला था। जज साहब खाने-पीने के शौक़ीन थे मगर नए-नए आए थे तो सीधे-सीधे किसी से कह नहीं पा रहे थे। ज़ेब से पैसा भी ख़र्च करना नहीं चाहते थे। उन्होंने अपने अधीनस्थ सब-जज को अपने चैम्बर में बुलवाया और उन्हीं से कहा कि वे एक ‘रेड नाइट’ का इन्तज़ाम करा दें, क्योंकि शाम को उनसे मिलने उनके कोई पुराने मित्र आने वाले हैं, उन्हें ट्रीट तो करना पड़ेगा।
सब-जज ने हामी भरी और चल दिए हुक़्म की तामील करने। उन्होंने भी सोचा साहब को तलब लगी है, मगर वह भी क्यों अपनी ज़ेब से ख़र्च उठाएँ। उन्होंने सदर थाना प्रभारी को बुलवाया और उसे बड़े जज साहब का आदेश बताते हुए दो रेड नाइट का इन्तज़ाम करने को कह दिया।
अब थानेदार साहब भी जजों के मज़े के लिए कहाँ अपनी ज़ेब को ढीला करने वाले थे। उन्होंने भी अपने अधीनस्थ एक हवलदार को बुलवाया और उससे कहा कि बड़े जज साहब के यहाँ आज शाम कोई पार्टी है, वह तीन रेड नाइट का इन्तज़ाम करे।
बेचारा हवलदार, एक तो तनख़्वाह कम, दूसरे ऐसी जगह ड्यूटी पर था जहाँ ऊपरी कमाई ज़्यादा नहीं हो पाती थी। और ऐसे में साहब लोगों के ये आदेश। अब हुक़्म की तामील तो करनी पड़नी थी। मगर वह भी कहाँ अपनी ज़ेब से ख़र्च उठाने वाला था। हवलदार धमक पड़ा अँग्रेज़ी शराब के ठेके पर।
उसने बड़े रुआब से, कड़े शब्दों में ठेकेदार को आदेश दिया कि बड़े जज साहब के यहाँ शाम को पार्टी है, जिसमें चार रेड नाइट पहुँचाने के आदेश हुए हैं। उसने चार बोतलें पैक करवाईं और चल दिया।
हवलदार ने एक बोतल अपने लिए रख ली और तीन बोतलें थानेदार साहब को पहुँचा दीं। थानेदार ने भी आदेशानुसार दो बोतलें सब-जज के यहाँ पहुँचा दीं, एक अपने लिए रख ली। और सब-जज ने यथादेश एक रेड नाइट बड़े जज साहब के यहाँ पहुँचा दी और एक ख़ुद के लिए रख ली। और बड़े साहब के यश से अकेले-अकेले ही सही, सभी ने अपने-अपने ढंग से रेड नाइट के मज़े लिए।
बेचारा ठेकेदार सिर धुनता रहा, मगर उसने भी सोच लिया था कि वह जैसे-तैसे इस नुक़सान की भरपाई तो करेगा ज़रूर। ¡
नए ज़िला न्यायाधीश ने अभी हाल ही में चार्ज सँभाला था। जज साहब खाने-पीने के शौक़ीन थे मगर नए-नए आए थे तो सीधे-सीधे किसी से कह नहीं पा रहे थे। ज़ेब से पैसा भी ख़र्च करना नहीं चाहते थे। उन्होंने अपने अधीनस्थ सब-जज को अपने चैम्बर में बुलवाया और उन्हीं से कहा कि वे एक ‘रेड नाइट’ का इन्तज़ाम करा दें, क्योंकि शाम को उनसे मिलने उनके कोई पुराने मित्र आने वाले हैं, उन्हें ट्रीट तो करना पड़ेगा।
सब-जज ने हामी भरी और चल दिए हुक़्म की तामील करने। उन्होंने भी सोचा साहब को तलब लगी है, मगर वह भी क्यों अपनी ज़ेब से ख़र्च उठाएँ। उन्होंने सदर थाना प्रभारी को बुलवाया और उसे बड़े जज साहब का आदेश बताते हुए दो रेड नाइट का इन्तज़ाम करने को कह दिया।
अब थानेदार साहब भी जजों के मज़े के लिए कहाँ अपनी ज़ेब को ढीला करने वाले थे। उन्होंने भी अपने अधीनस्थ एक हवलदार को बुलवाया और उससे कहा कि बड़े जज साहब के यहाँ आज शाम कोई पार्टी है, वह तीन रेड नाइट का इन्तज़ाम करे।
बेचारा हवलदार, एक तो तनख़्वाह कम, दूसरे ऐसी जगह ड्यूटी पर था जहाँ ऊपरी कमाई ज़्यादा नहीं हो पाती थी। और ऐसे में साहब लोगों के ये आदेश। अब हुक़्म की तामील तो करनी पड़नी थी। मगर वह भी कहाँ अपनी ज़ेब से ख़र्च उठाने वाला था। हवलदार धमक पड़ा अँग्रेज़ी शराब के ठेके पर।
उसने बड़े रुआब से, कड़े शब्दों में ठेकेदार को आदेश दिया कि बड़े जज साहब के यहाँ शाम को पार्टी है, जिसमें चार रेड नाइट पहुँचाने के आदेश हुए हैं। उसने चार बोतलें पैक करवाईं और चल दिया।
हवलदार ने एक बोतल अपने लिए रख ली और तीन बोतलें थानेदार साहब को पहुँचा दीं। थानेदार ने भी आदेशानुसार दो बोतलें सब-जज के यहाँ पहुँचा दीं, एक अपने लिए रख ली। और सब-जज ने यथादेश एक रेड नाइट बड़े जज साहब के यहाँ पहुँचा दी और एक ख़ुद के लिए रख ली। और बड़े साहब के यश से अकेले-अकेले ही सही, सभी ने अपने-अपने ढंग से रेड नाइट के मज़े लिए।
बेचारा ठेकेदार सिर धुनता रहा, मगर उसने भी सोच लिया था कि वह जैसे-तैसे इस नुक़सान की भरपाई तो करेगा ज़रूर।