रेड : विफल प्रेम का आणविक विस्फोट / जयप्रकाश चौकसे

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रेड : विफल प्रेम का आणविक विस्फोट
प्रकाशन तिथि :24 मार्च 2018


तीनों खान सितारे फिल्म की लागत और लाभ का अच्छा खासा प्रतिशत अपने मेहनताने स्वरूप लेते हैं। इस तरह निर्माता उनका दास हो जाता है। अक्षय कुमार और अजय देवगन कम मेहनताना लेकर फिल्में करते हैं। इस तरह सिनेमाघरों को चलाए रखने में इनका योगदान बहुत है। शिखर सितारे अपनी फिल्में ईद, दिवाली व क्रिसमस की छुट्टियों के समय प्रदर्शित करते हैं परंतु अजय देवगन और अक्षय कुमार फिल्म के बनते ही प्रदर्शित कर देते हैं और इस प्रकार उनकी फिल्में फिल्म उद्योग की मशीन में तेल का काम करती हैं। अजय देवगन संयुक्त परिवार में रहते हैं और उन पर परिवार का आर्थिक दायित्व है। इसके साथ ही देशभक्ति की भावना से वे प्रेरित रहते हैं। संयुक्त परिवार के सभी सदस्यों को उन्होंने रोजगार प्राप्त करने के लिए साधन भी जुटाए हैं। उनकी पत्नी काजोल को इस बात का श्रेय है कि वे संयुक्त परिवार व्यवस्था में सुचारू रूप से रम गई हैं।

उन्होंने कभी अपने पति से यह नहीं कहा कि वे अलग किसी आलीशान महल में रहे। घर जोड़ने और घर तोड़ने वाली बहुएं और बेटियों की अलग-अलग जमाते हैं। रिश्तों को जोड़ने वाली गोंद भावनाओं से बनती है। दर्द के रिश्तों के साथ ही दवा के भी रिश्ते होते हैं। दर्द दवा भी बन जाता है। बहरहाल, अजय देवगन की फिल्म 'रेड' में तीन बार चुने गए सांसद ने राजनीति की टकसाल से धन कूटकर उसे स्विट्जरलैंड के बैंक में रखा है। अत: जब उनके घर आयकर विभाग का छापा पड़ता है तब उन्हें पूरा विश्वास है कि कहीं कुछ नहीं मिलेगा। उन्होंने घर की महिलाओं के जेवर भी जायज धन से खरीदे हैं।

एक ईमानदार आयकर अधिकारी को किसी अज्ञात व्यक्ति ने सूचना दी है कि सांसद के घर में कालाधन है। उसने घर का नक्शा भी इन्हें भेजा है। दबिश के प्रारंभ में कोई कालाधन नहीं मिलता परंतु तलाश जारी रहती है। सांसद इस दबिश को अपना अपमान मानते हैं और हाथ में बंदूक उठाते हैं। वे गोली नहीं चलाना चाहते, बंदूक केवल भय उत्पन्न करने के लिए उठाई गई है। अकस्मात एक गोली कमरे की छत पर लगती है और प्लास्टर की परत भेदते हुए गोली एक सुराख बनाती है, जिससे सोने के सिक्के बरसने लगते हैं। स्वयं सांसद आश्चर्यचकित हैं कि परिवार के किस सदस्य ने अपना कालाधन फाल्स सीलिंग में छिपाया हुआ है।

हर कमरे से कालाधन बरामद होता है, यहां तक कि सीढ़ियों के नीचे भी सोना दबाया गया है। इस बीच सांसद महोदय अपने दल के प्रांत प्रमुख से निवेदन करते हैं कि दबिश रोक दी जाए परंतु उनके सभी संगी-साथी सहायता नहीं कर पाने की बात करते हैं। सांसद प्रधानमंत्री से भी मिलता है। वे भी उसे टाल देती हैं। यहां तक कि एक दृश्य में प्रधानमंत्री अपने सचिव से कहती हैं कि एक ईमानदार आयकर अफसर पर दबाव बनाने से बेहतर है कि अपने ही एक भ्रष्ट सांसद की कोई सहायता नहीं की जाए। वे जानती हैं कि पूरी व्यवस्था में भ्रष्टाचार की दीमक लग चुकी है और ऐसे में एक ईमानदार अफसर का बचाव ही कोई मार्ग प्रशस्त कर सकता है। सारा घटनाक्रम 1981-82 का है, अंत: रेखांकित किया गया है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं। फिल्म के अंतिम भाग में सांसद अपने सहयोगियों द्वारा किराये की भीड़ द्वारा आक्रमण करा देता है। अफसर अपने सहयोगियों को सुरक्षित करते हुए उन्हें पीछे के रास्ते से रवाना कर देता है परंतु स्वयं भीड़ का सामना करने के लिए रुक जाता है। सही समय पर केंद्र द्वारा भेजी गई टुकड़ी उसकी रक्षा करती है। सांसद महोदय अपने जेल कक्ष की दीवार पर परिवार के सारे सदस्यों के नाम लिखते हैं। वे घर के भेदी विभीषण का नाम जानना चाहते हैं। उन्हें वह नाम नहीं मिल पाता। वे इस असफलता से व्यथित हैं।

दरअसल, वर्षों पूर्व एक कन्या का विजातीय युवा से प्रेम हो गया था। सांसद ने उस प्रेमकथा को भंग कराया और उस कन्या का विवाह अपने निकम्मे बेटे से कराया। कन्या के प्रेमी ने सारी गुप्त जानकारियां प्राप्त कीं अौर उन्हें उस ईमानदार आयकर अधिकार तक पहुंचाया। सारांश यह है कि भ्रष्टाचार के मजबूत किलेनुमा घर में प्रेम ही एक सुरंग का निर्माण कर सकता है। इस भ्रष्ट परिवार के सारे परिजन मन ही मन एक-दूसरे से घृणा करते हैं और अधिकतम काला धन जुटाने की प्रतिस्पर्धा जारी है। बेचारे सांसद अपने घर में चल रहे इस युद्ध से सर्वथा अपरिचित हैं। सारा परिवार एक बड़े डायनिंग टेबल पर साथ बैठकर भोजन करता है।

सारांश यह कि एक विफल प्रेमगाथा का एक वंचित पात्र ही भ्रष्टाचार के किले को ध्वस्त कर देता है। फिल्म के अंतिम दृश्य में वह विफल प्रेमी आयकर अधिकारी से मिलता है। आयकर अधिकारी कहता है कि विफल प्रेमी चाहे तो 420 करोड़ काले धन का दस प्रतिशत उसे इनाम स्वरूप सरकार दे सकती है। वह व्यक्ति इनकार करता है। उसका विचार यह है कि भ्रष्ट सांसद को सबसे अधिक वेदना इस बात से हो रही है कि उसे खबरी का परिचय नहीं मिल रहा है और यही यंत्रणा उसे पूरे जीवन रहेगी। सारे हताश प्रेमी देवदास की तरह शराबनोशी नहीं करते। इस फिल्म के विफल प्रेमी ने कमाल का बदला लिया है। इस तरह 'रेड' एक अलग श्रेणी की विफल प्रेम गाथा भी है।