रेणु का जन्मशती वर्ष और अमर फिल्म ‘तीसरी कसम’ / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 02 मार्च 2021
फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ के जन्म को 100 वर्ष हो चुके हैं। ज्ञातव्य है कि केवल यमुना तट की रेत को ‘रेणु’ कहा जाता है। जन्मशती के अवसर पर रेणु साहित्य का पुन: प्रकाशन किया जा रहा है। एक प्रयोग यह किया गया है कि उनकी रचित 5 कहानियों को वर्तमान के 5 लेखकों ने अपने दृष्टिकोण से अपने समय के संदर्भ में रचा है। वर्तमान संकीर्णता के दौर में रेणु रचित पात्र कैसा व्यवहार करेंगे? क्या उनके किसान पात्र फसल के कॉरपोरेटीकरण के खिलाफ हड़ताल पर बैठेंगे? उनकी रचना ‘जुलूस’ और आज प्रोयोजित जुलूस में कितना अंतर होगा? आज श्रोता किराए पर उपलब्ध होते हैं। उन्हें एकत्रित करने के लिए जंगल में शेर के शिकार के लिए जिस तरह किराए पर हाका लगाने वाले मिलते थे, ठीक उसी प्रकार आजकल तालियां बजाने वाले मिलते हैं। हाथ की खुजली मिटती है और पैसे भी मिलते हैं।
ज्ञातव्य है कि रेणु के जन्म के 2 वर्ष पश्चात जन्मे शैलेंद्र ने राज कपूर और वहीदा रहमान अभिनीत फिल्म ‘तीसरी कसम’ बनाई थी। नवेंदु घोष ने लगभग 30 पृष्ठों की कथा से प्रेरित 3 घंटे की फिल्म रची थी। इस फिल्म के लिए बनाए गए गीतों के मुखड़े मूल-कथा में उपलब्ध हैं। केवल महुआ घटवारन के मूल गीत की जगह नया गीत लिखा गया था ‘दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई, काहे को दुनिया बनाई।’ इस गीत के फिल्मांकन में गाड़ीवान हीरामन, गीत के मुखड़े और अंतरे के बीच महुआ घटवारन की कथा सुनाता जाता है कि कैसे एक लंपट व्यापारी ने महुआ को खरीदा परंतु अधिकार नहीं जमा पाया क्योंकि महुआ घटवारन ने नदी में छलांग लगाकर अपने प्राण दे दिए।
क्या वर्तमान की महुआ घटवारन प्राण तजेगी या आत्मसमर्पण करेगी? क्या लंपट व्यापारी महुआ की मृत देह के साथ वही व्यवहार करेगा जो सआदत हसन मंटो की कथा ‘ठंडा गोश्त’ में प्रस्तुत किया गया था? क्या महुआ के पोस्टमार्टम के साथ छेड़छाड़ होगी? क्या लंपट व्यापारी समर्थ लोगों के सहयोग से विदेश भाग जाएगा?
रेणु और शैलेंद्र की चिंताएं समान थीं कि क्या गाड़ीवान हीरामन को भविष्य में विश्वसनीय माना जाएगा? क्या लीक से हटकर कोई गाड़ीवान यात्रा करेगा और यात्रा के समय अपने बैलों से ऐसे बात करेगा मानो वे मनुष्य की भाषा सुनते और समझते हों? आज तो दर्द सहने वाला अपने हमसफर की बात नहीं समझता। पीड़ित व शोषित भी अपने अपनो को लूट रहे हैं। वर्तमान में तो रेणु के ‘मैले आंचल’ के चीथड़े उड़ाए जा रहे हैं।
रेणु की बंजर धरती तो आज भी प्यासी है और परिकथाओं को विश्वसनीय माना जा रहा है। ‘तीसरी कसम’ में प्रस्तुत गाड़ीवान हीरामन और हीराबाई की प्रेम कथा का दुखांत देवदास और पारो की मृत्यु से अधिक दर्द देता है। दोनों अपनी-अपनी राह जाते हैं और इस जुदाई को अपने जीवन एवं विचार शैली का अविभाज्य अंग बना लेते हैं। असफल प्रेम प्रयास में मर जाना सरल है परंतु जीवित रहकर जुदा रहना कठिन है। शैलेंद्र ने रेणु व राज कपूर की मुलाकात करवाई। रेणु ने कहा कि यह गोरा-चिट्टा, यूरोपियन सा दिखने वाला कलाकार, गंवई गांव के हीरामन की भूमिका का विश्वसनीय प्रस्तुतिकरण नहीं कर सकता। शैलेंद्र ने रेणु से कहा आप शुरुआती परिणाम देखना और अगर आपको संतोष नहीं हुआ तो फिल्म निर्माण रोक देंगे। कुछ दिन पश्चात रश प्रिंट देखकर रेणु प्रसन्नता से बोले कि ये तो साक्षात हीरामन है। दरअसल निर्देशक राज कपूर की छवि इतनी विराट रही है कि कलाकार राज कपूर का मूल्यांकन नहीं हो पाया। राज कपूर की विचार शैली की भारतीयता ही उनसे हीरामन अभिनीत करा पाई।
फणीश्वरनाथ रेणु का जन्मशती वर्ष राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाना चाहिए। टेलीविजन पर ‘तीसरी कसम’ बार-बार दिखाई जानी चाहिए। ज्ञातव्य है कि फिल्म को राष्ट्रीय स्वर्ण पदक मिला था। हम बकौल बिठ्ठलभाई पटेल कह सकते हैं कि, ‘सजन क्यूं झूठ बोला? क्यों कसम तीसरी खाई।’