रेत पर इबारत / ख़लील जिब्रान / बलराम अग्रवाल

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एक आदमी ने दूसरे से कहा, "सागर में जबर्दस्त ज्वार के समय, बहुत समय पहले, अपनी छड़ी की नोक से रेत पर मैंने एक लाइन लिखी थी। लोग आज भी उसे पढ़ने को रुक जाते हैं। और वे इस बात का ध्यान रखते हैं कि यह मिट न जाए।"

दूसरा बोला, "रेत पर एक लाइन मैंने भी लिखी थी। लेकिन वह भाटे का समय था। विशाल समुद्र की लहरों ने उसे मिटा दिया। अच्छा बताओ, तुमने क्या लिखा था?"

जवाब में पहले ने कहा, "मैंने लिखा था - 'अहं ब्रह्मास्मि'। तुमने क्या लिखा था?"

इस पर दूसरे ने कहा, "मैंने लिखा था - 'मैं इस महासागर की एक बूँद से अधिक कुछ नहीं'।"