रेपिश्क़ / पंकज सुबीर
'अब क्या होगा उसे ढूँढ़ने से? जो होना था सो हो गया, उसे ढूँढ़ने के बजाय अगर तू क़ानून का सहारा ले तो ज़्यादा अच्छा होगा। कम से कम उसको सज़ा तो मिलेगी।' प्राची ने आशिमा के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा। आशिमा की आँखों में हल्की-सी नमी थी मगर चेहरे पर एक विचित्र-सी दृढ़ता दिखाई दे रही थी।
'क्या होगा और क्या नहीं होगा, इन सवालों के पचड़े में अगर पड़ो तो ज़िंदगी में कुछ भी नहीं किया जा सकता। मुझे बस उसकी तलाश करनी है। मैंने तय कर लिया है।' आशिमा ने कुछ मज़बूत स्वर में कहा। उसके हाथों में जो काग़ज़ थे, वह उसकी मुट्ठी में भिंचते जा रहे थे।
'पर ढूँढ़ेगी कहाँ? और कैसे ढूँढ़ेगी? क्या तू जानती है उसे?' प्राची ने कुछ उलझन भरे स्वर में आशिमा से पूछा।
आशिमा ने अपने सिर को एक झटका दिया, मानो आँखों में आ रही उस नमी को झटक दिया हो, जो आँसू की बूँद में बदलने वाली थी। 'जानती होती तो इतनी बातें नहीं करती मगर हाँ कुछ-कुछ ऐसा है, जिसके सहारे मैं शायद उस तक पहुँच सकती हूँ। बहुत ज़्यादा कुछ नहीं है, लेकिन कुछ संकेत तो हैं ही मेरे पास। उनके सहारे ही उस तक पहुँच सकती हूँ। नहीं भी पहुँचूँ... लेकिन उसकी परवाह नहीं है मुझे, इन फैक्ट अब किसी भी चीज़ की कोई परवाह नहीं है मुझे।' कुछ लापरवाही भरे अंदाज़ में उत्तर दिया आशिमा ने।
'साहिल से तेरी बात हुई है इस बारे में? तूने उसे बताया है कुछ?' प्राची ने कुछ सधे हुए स्वर में पूछा।
'नो... अभी उसे इस बारे में कुछ भी नहीं बताया है। तेरे अलावा अभी किसी को कुछ भी पता नहीं है। बस तुझे ही बताया है और किसी को बताने की इच्छा भी नहीं है। हाँ साहिल को शायद बताऊँ।' आशिमा ने कुछ सोचते हुए कहा।
'फिर उसे भी क्यों बताती है, जब किसी को नहीं बता रही है तो उसे भी मत बता। छोड़। रूटीन होने की कोशिश कर।' प्राची ने कुछ समझाते हुए कहा।
'रूटीन...?' आशिमा ने कुछ तीखे स्वर में शब्द को दोहराया।
'सॉरी...! मैं कोई दूसरा शब्द कहना चाह रही थी और ग़लती से यह निकल गया। डॉण्ट टेक इट अदर वाइज़, मैं तेरे अंदर की छटपटाहट को समझ पा रही हूँ लेकिन मैं तेरी दोस्त हूँ, इसलिए तेरा भला चाह रही हूँ।' प्राची ने आशिमा के कंधे पर प्यार से हाथ रखते हुए कहा।
'अरे... नहीं-नहीं, मैंने अदर वाइज़ नहीं लिया। तेरा कहा कुछ भी अदर वाइज़ ले भी सकती हूँ मैं? मुझे पता है कि तू मेरे लिए परेशान है, इसीलिए कह रही है यह सब। लेकिन प्राची मैं अब ठान चुकी हूँ। नहीं करूँगी, तो ज़िंदगी भर अपने अंदर इस छटपटाहट को लेकर ही जीऊँगी।' आशिमा ने मुस्कुराने की कोशिश करते हुए कहा।
'ठीक है बडी, लेकिन एक बात मान मेरी, साहिल को मत बता कुछ भी। वह शायद नहीं सहन कर पाएगा यह सब कुछ। वह क्या, कोई भी नहीं सहन कर सकता है यह सब। तुझे जो कुछ भी करना हो, कर ले, ढूँढ़ ले उसको जाकर, मगर साहिल को दूर रख इस सबसे।' प्राची ने समझाते हुए कहा।
'नहीं प्राची, उसे तो बताना ही होगा। नहीं बताऊँगी तो बाद में मिस अंडरस्टेंडिंग होगी। इस एक सच का छिपाने के लिए हज़ार झूठ बोलने पड़ेंगे। उससे अच्छा है आज ही सच बोल दिया जाए। यह मेरा सबसे बड़ा सच है और अगर साहिल मेरे इस सच को स्वीकार नहीं कर सकता, तो फिर मुझे कैसे स्वीकार कर सकता है?' आशिमा ने कुछ ठहरे हुए स्वर में कहा।
'तेरी ज़िद के आगे भला किसीकी चलती है कुछ? तू वही करती है जो तुझे करना है। बट, मैं तेरे साथ हूँ बडी, आई एम आलवेज़ विथ यू... डॉण्ट फील अलोन इन ऑल दीज़।' कहते हुए प्राची का गला कुछ रुँध गया।
'हे... डॉण्ट क्राय... रोना तो मुझे चाहिए, लेकिन मैं नहीं रो रही हूँ।' कहते हुए आशिमा ने प्राची को खींच कर अपने गले से लगा लिया 'आई नो... कि तू हमेशा मेरे साथ है। इन फैक्ट तेरे ही दम पर मैं इस लड़ाई में कूद रही हूँ। तू मेरी ताक़त है, तू मत कमज़ोर हो, नहीं तो मैं कमज़ोर हो जाऊँगी।' कहते हुए आशिमा प्राची की पीठ थपथपाने लगी।
'कमज़ोर नहीं हो रही हूँ, मुझे चिंता हो रही है तेरी। तेरे और साहिल के रिलेशन्स की। इतने सालों से तुम दोनों साथ रह रहे हो और अब, जब तुम दोनों का यह साथ किसी रिश्ते में बदलने को ही है, तब यह सब। मत बता साहिल को। प्लीज़।' कहते हुए प्राची रो पड़ी।
'तू मुझसे जान माँग ले, अभी दे दूँगी पर तू जो कह रही है, वह प्रेक्टिकल नहीं है। वह एक झूठ मुझे पूरे जीवन परेशान करेगा। जीने नहीं देगा। तू आज की सोच रही है और मैं आने वाले कल की सोच रही हूँ। प्लीज़ डॉण्ट फोर्स मी। मैं साहिल को जानती हूँ, मुझे विश्वास है कि वह मेरे साथ खड़ा होगा।' आशिमा ने कुछ प्रेम भरे स्वर में कहा। प्राची ने कोई भी उत्तर नहीं दिया वह उसी प्रकार से आशिमा के कंधे पर सिर रखे सिसकती रही।
कॉलेज में साथ-साथ पढ़ीं प्राची और आशिमा, कॉलेज के समय की ही पक्की सहेलियाँ हैं। पढ़ाई पूरी होने के बाद कैम्पस सेलेक्शन से दोनों को एक ही कंपनी मिल गई और दोनों यहाँ जॉब के लिए आ गईं। शुरू के साल भर तो दोनों एक ही साथ रहती थीं लेकिन, फिर आशिमा और कंपनी में ही साथ काम करने वाले साहिल के बीच कुछ समीकरण पैदा हो गए। कुछ समय बाद दोनों ने लिव इन में रहने का फ़ैसला कर लिया। अब आशिमा, साहिल के फ़्लैट पर उसके साथ लिव इन में रहती है। लेकिन, प्राची के साथ जिस फ़्लैट में रहती थी, उसमें भी उसका आधा सामान रखा है। आधा किराया भी वह देती है इस फ़्लैट का। बल्कि आशिमा अपना बहुत ज़रूरी सामान ही साहिल के फ़्लैट पर लेकर गई है, बाक़ी सब यहीं रखा है। जब जा रही थी तो ख़ुद ही बोली थी कि क्या पता कितने दिन निभती है साहिल के साथ मेरी, फिर सामान लेकर वापिस आने से अच्छा है कि उतना ही सामान ले जाऊँ, जितना ज़रूरी है। साहिल कंपनी में सेल्स सेक्शन में है, इसलिए अधिकतर टूर पर बाहर रहता है। जब साहिल कंपनी के काम से कहीं बाहर टूर पर होता है, तो आशिमा प्राची के साथ रहने आ जाती है। जैसे अभी आई हुई है। अभी आशिमा के घर वालों को पता नहीं है कि वह साहिल के साथ लिव इन में रह रही है। कभी घर से कोई आ जाता है, तो वह प्राची के घर रहने आ जाती है। हालाँकि घर वालों को साहिल के बारे में बताने में उसे कोई परेशानी नहीं है लेकिन, वह साहिल के साथ अपने रिश्तों को अभी और कुछ दिन देख कर कोई निर्णय लेना चाहती है।
अभी भी दोनों फ़्लैट की खिड़की के पास रखे पलंग यानी अपने फेवरेट सनसेट पॉइंट पर अपने-अपने कॉफी के मग लेकर बैठी हैं।
'कब तक आएगा साहिल टूर से?' प्राची ने कुछ सहज होने की कोशिश करते हुए पूछा।
'कह कर तो गया है कि फ्राइडे, मीन्स कल तक आ जाएगा। बाक़ी फिर कंपनी है, वहीं से कहीं और भेज दे, तो क्या कह सकते है।' आशिमा डूबते हुए सूरज की ओर देखते हुए बोली। शाम की हवा में उसके बाल उड़ रहे हैं, चेहरे पर आ रहे हैं। प्राची ने धीरे से उसके बालों को अपने हाथों में लिया और सहेज कर एक छोटा-सा जूड़ा बना दिया। आशिमा धीरे से झुकी और प्राची की गोद में सिर रख दिया। कुछ ही देर में वह सिसकने लगी। प्राची ने उसे रोने दिया, बस उसके कंधे और सिर को सहलाती रही। आशिमा जो धीरे-धीरे रो रही थी, वह फूट-फूट कर रोने लगी। प्राची ने उसे बाँहों में भरा और अपने सीने से लगा लिया, आशिमा रोती रही, रोती रही, रोती रही। सूरज धीरे-धीरे अस्त हो गया, शाम गहरा गई, अँधेरा हो गया और दोनों सहेलियाँ उसी प्रकार बैठी रहीं।
अगले दिन साहिल आ गया और आशिमा साहिल के साथ उसके फ़्लैट पर चली गई।
रात के खाने के बाद आशिमा शॉवर लेने चली गई और साहिल अपना लॅपटॉप लेकर पलंग पर बैठ गया, सेल्स के रिकार्ड को अपडेट करने लगा। कुछ देर बाद आशिमा शॉवर लेकर आई और आकर बाल्कोनी में खड़ी हो गई। साहिल ने एक बार उसे देखा और कुछ देर देखता रहा। लैपटॉप को बंद कर उसने बैग में रख दिया। कुछ मुस्कुराता हुआ उस तरफ़ बढ़ा, जिस तरफ़ आशिमा खड़ी थी। पास आकर उसने आशिमा को पीछे से ही गोद में भर लिया और उठाकर पलंग के पास आ गया। कुछ ही देर में कमरे में जलतरंग बज रहा था। जिसे साथ सुर में सुर मिलाकर कर सितार और संतूर की ध्वनियाँ भी उत्पन्न हो रही थीं। मंद्र सप्तक से मध्य और तार सप्तक की ओर रागिनियाँ लहर रही थीं। साहिल थोड़ा एग्रेसिव है और जैसे-जैसे समय बढ़ता है, वैसे-वैसे उसकी एग्रेसिवनेस बढ़ती जाती है। कभी-कभी आशिमा को यह एग्रेसिवनेस असहज कर देती है। उसका मन होता है कि सेमल की रुई के फाहों की छुअन उसे सहला दे, यह जो सब कुछ हो रहा है, यह बहुत मृदुल हो जाए, परों से भी ज़्यादा साफ़्ट। किन्तु साहिल इतना एग्रेसिव है कि वह आँधी की तरह गुज़र जाता है। इस गुज़रने में हर बार कुछ रेशे, कुछ तंतु घायल हो जाते हैं। क्या ज़रूरत है इस कठोर जकड़न की, इन नाखूनों की? छूटती हुई सांसों की गर्म थपकियों का उपयोग क्यों नहीं?
'सुनो...' शायद तार सप्तक का सबसे ऊँचा सुर लगने ही वाला था जब आशिमा का स्वर गूँजा।
'हूँ...' सितार के तार, तार सप्तक के सबसे ऊँचे सुर को छूने की स्थिति में थे, ऐसा साहिल के हूँ से पता लगा।
'मेरे साथ रेप हुआ है...' बहुत सधा हुआ और शांत स्वर आया आशिमा का। तार सप्तक की सबसे ऊँची चोटी को छूने की कोशिश में लगा सितार झनझना कर बेसुरा हो गया। सारे तार एक ही झटके में टूट गए। गतियाँ एकदम से रुक गईं।
'कब...? कहाँ...? कैसे...?' साहिल ने एक साथ बहुत से प्रश्न पूछ डाले।
'दो दिन पहले... मुझे ऑफिस में कुछ देर हो गई थी। तुम थे नहीं और प्राची भी उस दिन बाहर गई हुई थी। सोचा बहुत-सी शॉपिंग पेंडिंग है, कर लेती हूँ। उसके बाद बाहर डिनर लेते हुए जब लौटी, तब तक काफ़ी रात हो गई थी। फ़्लैट तक आई ही थी कि किसी ने पीछे से नाक पर कोई कपड़ा और मुँह पर हाथ रख दिया। उसके बाद का कुछ याद नहीं क्योंकि मैं बेहोश हो गई। फिर कुछ पता नहीं चला। सुबह जब आँख खुली, तो मैं यहाँ बिस्तर पर ही लेटी हुई थी।' आशिमा ने बिना किसी उतार चढ़ाव के बात कही।
'यहीं...? इसी फ़्लैट में?' साहिल ने पूछा।
'हाँ यहीं... उसने मेरे पर्स से चाबी लेकर दरवाज़ा खोल लिया था और शायद मुझे अंदर ले आया था।' आशिमा ने उत्तर दिया।
'शिट मैन...' साहिल ने पूछा।
आशिमा ने उत्तर दिया 'जब मेरी आँख खुली, तो पूरे कपड़े मेरे शरीर पर थे, वैसे ही जैसे मैंने पहने थे, मानो मैं सिर्फ़ बेहोश हो गईं थी।'
'कोई तुम्हारे पीछे-पीछे यहाँ तक आया और तुमको पता ही नहीं चला? ऐसा कैसे हो सकता है? दिस इज़ नाट पॉसिबल। कुछ तो लगा हो, कुछ तो महसूस हुआ होगा।' साहिल ने कुछ आश्चर्य से पूछा।
'हाँ कुछ महसूस तो हुआ था। जब मैं लिफ़्ट से निकल कर लॉबी में आई, तो कुछ देर बाद ऐसा लगा भी था कि कोई पीछे है शायद लेकिन मैंने मुड़ कर नहीं देखा, यह सोच कर कि ऑड लगेगा। लॉबी में इतना उजाला भी नहीं था। दरवाज़ा खोलते समय मैं मुड़कर देखती लेकिन उसने उतना भी मौक़ा नहीं दिया।' आशिमा ने धीमे स्वर में उत्तर दिया।
'हद है... बिल्डिंग में तो बाहर का कोई आ ही नहीं सकता। कोई न कोई बिल्डिंग में रहने वाला ही होगा। तुमने पुलिस को बताया क्या? कोई एफ आई आर वग़ैरह?' साहिल ने उठते हुए पूछा। उसके हाथ पलंग के आस पास बिखरे अपने कपड़ों को तलाश कर रहे थे। आशिमा बहुत ध्यान से साहिल की सारी गतिविधियों पर नज़र रखे हुए थी। साहिल अपने कपड़े उठा कर पहनने लगा था। तार सप्तक का सबसे ऊँचा सुर लगने से पहले ही राग भंग हो गया था।
'नहीं... क्या बताती पुलिस को? किसका नाम बताती? कुछ भी तो पता नहीं था मुझे और पुलिस भी क्या कर लेती?' आशिमा ने कुछ ठंडे स्वर में कहा।
'थैंक्स गॉड।' साहिल ने अपने टी शर्ट को सीधा करके पहनते हुए कहा।
'मेरे रेप होने पर थैंक्स गॉड कर रहे हो तुम?' आशिमा का स्वर बदला हुआ था।
'क्या मूर्खों जैसी बात कर रही हो, मैं तो इस बात पर थैंक्स गॉड कर रहा हूँ कि तुमने पुलिस को ख़बर नहीं की, बिना मतलब का झंझट होता।' साहिल ने झुँझलाते हुए उत्तर दिया।
'झंझट से बचने जैसी कोई बात नहीं है उसमें, मैं बस उसको ख़ुद ही ढूँढ़ना चाहती हूँ।' आशिमा का स्वर और ठंडा हो गया था।
'किसको?' साहिल ने कुछ हैरत से पूछा।
'उसीको, जिसने वह सब कुछ किया।' आशिमा ने उत्तर दिया।
'कहाँ ढूँढ़ोगी? और ढूँढ़ भी लिया तो क्या कर लोगी उसका? लीव हिम, भूल जाओ उसको।' साहिल ने कुछ तेज़ आवाज़ में कहा।
'नो... हाऊ केन आई लीव हिम? नो साहिल, दिस इज़ माई फाइनल डिसीज़न।' आशिमा का चेहरा कठोर हो गया था, उसके चेहरे की नसें तन गईं थीं।
'गो टू हेल...' कहता हुआ साहिल पैर पटकता दूसरे कमरे में चला गया। आशिमा उसी प्रकार बैठी उस दरवाज़े को देख रही थी जिसमें से होकर साहिल गया था।
अगले दिन आशिमा ऑफिस से सीधे प्राची के घर चली गई।
'क्या हुआ आशु?' प्राची ने कुछ प्यार से पूछा।
'वही जिसका तुझे डर था।' आशिमा ने एक फीकी-सी मुस्कुराहट के साथ उत्तर दिया।
'साहिल को बता दिया तूने?' प्राची ने फिर पूछा।
'हाँ बता दिया। बताना तो था।' आशिमा ने उत्तर दिया।
'फिर...?' प्राची ने पूछा।
'वह भी चाहता है कि मैं इन सब पचड़ों में नहीं उलझूँ, भूल जाऊँ उस सबको और नार्मल हो जाऊँ। जैसा तू सोचती है, वैसा ही वह भी सोचता है।' आशिमा ने उत्तर दिया।
'बट मैं कल रात भर सोचने के बाद तेरे पक्ष में हूँ। तू अगर उस व्यक्ति को ढूँढ़ना चाहती है, तो मैं तेरे साथ हूँ। कोई और तेरा साथ दे या न दे, मैं तेरे साथ हूँ। आलवेज़।' प्राची ने आशिमा का हाथ अपने हाथ में लेकर उसे हल्के से दबाते हुए कहा।
'थैंक्स प्राची... तेरा साथ होना मेरे लिए बहुत मायने रखता है।' आशिमा ने मुस्कुराते हुए कहा।
'शुरू कहाँ से करेगी तू...?' प्राची ने उसी प्रकार हाथ पकड़े हुए पूछा।
'हैं कुछ लोग जिन पर मुझे शक़ है। उनसे ही शुरू करना पड़ेगा। क्योंकि यह तो तय है कि है कोई न कोई बिल्डिंग का ही बंदा। बाहर का तो आ नहीं सकता, आता, तो वॉचमैन के पास रिकॉर्ड होता उसका। एक चौथे माले पर रहने वाला रोहित है, दूसरा ग्राउंड फ़्लोर पर रहने वाला सोनू। इनके अलावा ठीक पास के, मतलब दो फ़्लैट्स छोड़ कर एक लड़का है, गौतम, मगर उसके बारे में तो साहिल ने एक बार बताया था कि वह गे है, तो उसे तो शक़ के दायरे में नहीं ला सकती।' आशिमा ने कुछ सोचते हुए उत्तर दिया।
'तो ठीक है, तू अपने स्तर पर शुरू कर काम, मेरी जहाँ भी, जैसी भी मदद लगे, बता देना। ठीक है।' प्राची कहा।
'वह तो मैं शुरू भी कर चुकी हूँ, लेकिन बस मुश्किल यह है कि उसके लिए वहीं रहना होगा, साहिल के घर पर।' आशिमा ने कुछ सोचते हुए कहा।
'तो उसमें क्या है, चली जाना। वैसे भी वह आएगा ही तुझे लेने को। ज़िद मद करना, चली जाना, तेरा वहाँ जाना बहुत ज़रूरी है।' प्राची ने समझाते हुए कहा।
'वह आएगा क्या?' आशिमा ने पूछा।
'मर्द है... दस बार आएगा।' प्राची ने उत्तर दिया 'तू चली जाना लेकिन उसे पता मत चलने देना कि तू उस काम पर लगी हुई है। चुपचाप से काम करती रहना। वैसे भी उसका टूरिंग जॉब है, जब वह नहीं रहता है, उस समय करना अपना काम। मुझे बुला लेना।' प्राची ने कहा।
'हूँ...चल कॉफी बना कर लाती हूँ।' कहती हुई आशिमा उठ कर अंदर चली गई।
जब आशिमा कॉफी बना कर वापस लौटी तो देखा कि साहिल बैठा हुआ है प्राची के पास। पास में कुछ पौलीथीन के कैरी बैग्स में पिज़्ज़ा वगैरह पैक किये हुए रखे हैं।
'अरे...! मैं तो दो ही कॉफी लाई, चलो तुम दोनों पीओ बैठ कर, मैं अपने लिए बना लाती हूँ।' कहते हुए आशिमा ने कॉफी का एक मग साहिल की और दूसरा प्राची की ओर बढ़ा दिया।
'कोई ज़रूरत नहीं है बनाने की, एक मग और ले आ, दो का तीन कर लेंगे।' प्राची ने कुछ झिड़कते हुए कहा।
तीनों जब कॉफी पी चुके तो प्राची ने उठते हुए कहा 'चल मैं यह पिज़्ज़ा माइक्रोवेव गरम कर लेती हूँ, थैंक्स साहिल, आज तो मेरा सचमुच खाना बनाने का मूड नहीं था।'
हाथ में कैरी बैग्स लेकर प्राची किचन की ओर जाने लगी। कुछ दूर जाकर रुकी और पलट कर बोली 'और सुन... एव्हरी थिंग इस डिसायडेड नाव। तू कोई आर्ग्यू नहीं करेगी। हम दोनों तेरे भले के लिए ही कह रहे हैं कि जो हो चुका उसे भूल जा। नो फर्दर डिस्कशन ऑन दिस टॉपिक, नाट विथ मी एंड नाट विथ दिस स्वीट ब्वाय। समझी।' प्राची ने कुछ निर्णयात्मक स्वर में कहा। आशिमा ने कोई उत्तर नहीं दिया, बस मुस्कुरा कर रह गई।
तीन दिन बाद जब साहिल टूर पर गया, तो आशिमा ने अपने स्तर पर तहकीकात शुरू की। उसने प्राची को साहिल के फ़्लैट पर ही बुला या था। जिन दो लोगों पर शक़ था, उन दोनों को आते-जाते उसने प्राची को खिड़की से दिखाया भी।
'चलो ठीक है कि इनमें से ही कोई एक निकलता है, तो फिर उसके बाद क्या करेंगे?' प्राची ने पूछा।
'पता नहीं, मुझे भी नहीं पता कि क्या करना है, क्यों कर रही हूँ यह सब, नहीं जानती।' कुछ उदास-सी आवाज़ में कहा आशिमा ने।
'देखें क्या होता है।' प्राची ने गहरी साँस छोड़ते हुए उत्तर दिया।
अगले दिन साहिल टूर से वापस आ गया।
'कोई आया था क्या कल?' साहिल ने आते ही सीधा प्रश्न किया आशिमा से। आशिमा खिड़की के पास खड़ी कॉफी पी रही थी।
'हाँ प्राची आई थी।' आशिमा ने सहज रहने की कोशिश करते हुए उत्तर दिया।
'यहाँ मिलने? तुम तो हमेशा उसके वहीं जाती हो न, जब मैं टूर पर जाता हूँ तब।' साहिल ने फिर पूछा।
'वह यहाँ आ गई तो क्या मुसीबत टूट पड़ी?' आशिमा ने स्वर को ऊँचा कर लिया।
'मुझे मूर्ख समझ रही हो क्या तुम।' साहिल का स्वर कुछ और ऊँचा हो गया।
'डॉण्ट शाउट... चीखना मुझे भी आता है। सुनना चाहते हो, तो सुनो, वह उसी काम से आई थी और उसे मैंने ही बुलाया था।' इस बार आशिमा ने भी कुछ तेज़ स्वर में उत्तर दिया।
'क्यों...? क्यों ढूँढ़ना चाह रही हो उसे? क्या करोगी उसे ढूँढ़ कर? अगर इतना ही शौक़ है उसे तलाशने का, तो पुलिस में रिपोर्ट लिखवा दो, पुलिस ढूँढ़ कर ला देगी उसे।' साहिल के स्वर में व्यंग्य था।
'तुम्हारी बात में जो तंज़ है, वह मैं समझ रही हूँ लेकिन मैं उसको अपने लिए ढूँढ़ना चाहती हूँ, किसी कारण से।' आशिमा ने कुछ और ऊँचे स्वर में कहा।
'कारण...?' साहिल ने भी उतने ही ऊँचे स्वर में उत्तर दिया।
'हाँ कारण... है कोई कारण... तुम नहीं समझ सकते उसे।' कुछ कड़वे स्वर में कहा आशिमा ने।
'हम्म्म... एक बार में दिल नहीं भरा क्या?' साहिल ने कुछ कड़वे स्वर में कहा।
'शटअप्प...!' पूरी ताक़त लगाकर चीखी आशिमा और अपने हाथ में पकड़ा हुआ कॉफी का मग ज़ोर से ज़मीन पर पटक दिया। कमरे में मग के टूटने की आवाज़ झनझनाकर गूँज उठी। साहिल ने उस टूटे हुए मग के टुकड़ों को एक व्यंग्य भरी मुस्कुराहट से देखा, कुछ देर तक देखता रहा और उसके बाद कमरे से बाहर चला गया। आशिमा का चेहरा ग़ुस्से से तमतमा रहा था।
दूसरे दिन जब आशिमा ऑफिस से उठी, तो सीढ़ियाँ उतरते समय उसके मोबाइल में रिंग बजी। उसने पर्स से निकाल कर मोबाइल देखा, कोई अज्ञात नंबर था। उसने नहीं उठाया। मोबाइल कुछ देर तक बज कर शांत हो गया। कुछ देर बाद मोबाइल एक बार फिर से बजा, आशिमा ने देखा वही नंबर था। उसने नंबर को बजने दिया और ट्रू कॉलर से उस नंबर के बारे में जानकारी आने का इंतज़ार करती रही। थोड़ी देर बात ट्रू कॉलर ने नंबर को पहचानने में असमर्थता जता दी। आशिमा असमंजस में पड़ी मोबाइल स्क्रीन को देखती रही, जो उसके द्वारा ग्रीन स्वाइप का इंतज़ार कर रही थी। रिंग बंद हो गई और स्क्रीन पर दो मिस्ड कॉल की सूचना आने लगी। आशिमा ने लापरवाही से सिर को झटका और आगे बढ़ गई। व़ह अपनी कार तक पहुँची ही थी कि एक बार फिर से मोबाइल पर रिंग बजने लगी। कार का दरवाज़ा खोलते हुए उसने कॉल को रिसीव कर लिया।
'हलो...' आशिमा ने कार में बैठते हुए कहा।
'नमस्ते आशिमा जी।' उधर से एक पुरुष स्वर आया।
'नमस्ते... कौन बोल रहे हैं?' आशिमा ने कुछ उलझन भरे स्वर में कहा।
'जी मैं वही हूँ, जिसे आप ढूँढ़ रही हैं।' किसी धमाके की तरह यह स्वर आया दूसरी तरफ़ से। कार को स्टार्ट करते हुए आशिमा के हाथ रुक गए।
'क्या...?' लगभग चीखते हुए कहा आशिमा ने, फिर कुछ सँभल कर आस-पास देखा कि कोई है तो नहीं।
'जी मैं वही हूँ। सबसे पहले तो मैं आपसे माफी माँगना चाहता हूँ उस रात के लिए। बिना कोई दूसरा स्पष्टीकरण दिए हुए। उस रात ने मेरी ज़िन्दगी को ख़त्म कर दिया है।' उधर से आवाज़ आई।
'आपकी ज़िदगी को...? आर यू जोकिंग...? पहले यह बताइये आप बोल कौन रहे हैं और कहाँ से बोल रहे हैं?' आशिमा ने ग़ुस्से में पूछा।
'मैंने आपको कॉल किया है आशिमा जी, अब आपके लिए मेरा पता लगाना आसान है लेकिन फिर भी मैं कुछ दिनों की मोहलत चाहता हूँ, ताकि मैं आपको अपने बारे में बता सकूँ। वरना तो आप अभी इस नंबर को ट्रेस करवा कर मुझ तक पहुँच सकती हैं।' उधर से कुछ संयमित और शांत स्वर आया।
'मुझे आपके बारे में जानने में कोई दिलचस्पी नहीं है। हाँ बस यह जानना है कि आप हैं कौन, कहाँ रहते हैं और वह भी केवल अपने लिए।' आशिमा ने बहुत ही रूखे स्वर में उत्तर दिया।
'जी मैं आपको सब बता दूँगा। अपने बारे में पूरी बात बता दूँगा। बस ज़रा-सा समय, थोड़ी-सी मोहलत चाहता हूँ आपसे। कहाँ रहता हूँ, इसका अनुमान तो है आपको। कौन हूँ यह बताने के लिए मुझे थोड़ी हिम्मत चालिए। एक दो बार आपसे बात हो जाएगी, तो शायद अपने बारे में बता सकूँ।' उधर से कुछ अनुनय भरा स्वर आया।
'किसलिए... ? जब मैं कह चुकी हूँ कि मुझे आपसे कोई बात करनी ही नहीं है, तो किस बात का समय? बस मुझे आप अपना परिचय दे दें, नहीं तो मुझे मजबूरी में इस नंबर की जानकारी पुलिस से निकलवानी पड़ेगी।' आशिमा ने गुर्राते हुए कहा।
'उसके लिए आप स्वतंत्र हैं आशिमा जी। अभी आप ग़ुस्से में हैं, मैं आपको बाद में कॉल करता हूँ।' उधर से आवाज़ आई और कॉल डिस्कनेक्ट हो गया।
'सुनिए... हलो...' आशिमा बोलती ही रह गई। कुछ देर तक वह मोबाइल की स्क्रीन को देखती रही फिर उसने नंबर को रीडायल किया। उधर से नंबर के बंद होने की सूचना आई। आशिमा ने झुँझला कर मोबाइल को सामने पटक दिया। कुछ देर सोचती रही, फिर कार स्टार्ट कर प्राची के घर की ओर बढ़ गई।
'हम्म्म... इंट्रेस्टिंग... सबसे पहली तो रोचक जानकारी यह है कि उसे पता है कि तू उसे ढूँढ़ रही है। जबकि यह बात तेरे, मेरे और साहिल के अलावा किसी चौथे को पता नहीं है। उसका कॉल आना मेरे लिए आश्चर्यजनक नहीं है बल्कि यह बात मुझे आश्चर्य में डाल रही है कि उसे किसने बताया?' प्राची ने कुछ सोचते हुए कहा।
'हाँ यार... यह बात तो मेरे दिमाग़ में आई ही नहीं। मैं तो बस वही सोचती रही कि उसका कॉल आया है।' आशिमा ने भी कुछ आश्चर्य भरे स्वर में कहा।
'इसका मतलब यह कि वह निश्चित ही बिल्डिंग में ही रहता है और मुझे तो ऐसा लगता है कि वह तेरे आस-पास के ही किसी फ़्लैट में रहता है, जहाँ से वह उस फ़्लैट में होने वाली सारी बातें सुनता है। क्या तुम्हारे फ़्लैट से आवाज़ बाहर जाती है?' प्राची ने पूछा।
'हाँ अगर खिड़की खुली हो, तो आवाज़ तो बाहर जाएगी ही और न भी खुली हो, फिर भी अगर तेज़ आवाज़ में चिल्लाकर बातें की जाएँ, तो वह तो बाहर जाएँगी ही और इस विषय को लेकर मेरे और साहिल के बीच जब भी कहा-सुनी हुई है, तो वह तेज़ आवाज़ में ही हुई है। अगर कोई बाहर खड़ा होगा, तो उसे तो सुनाई देगा सब कुछ।' आशिमा ने कुछ सोचते हुए कहा।
'दैट्स इट... उसने आस-पास रहकर ही सुनी है सारी बातें और कल जब तुझमें और साहिल में वह बहस हुई तो उसने यह जान लिया कि तू बस अपने लिए ही उसे तलाश कर रही है और उसके बाद ही उसने तुझे कॉल किया। यह खेल तो डेंज़रस होता जा रहा है आशु। कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि क्या किया जाए।' प्राची ने कुछ चिंता भरे स्वर में कहा।
'मैंने तुझसे एक बात छिपाई है प्राची...' आशिमा ने नीचे देखते हुए कहा।
'क्या...?' प्राची ने कुछ संयमित स्वर में पूछा।
'यही कि... उस सब के दौरान मैं होश में आ गई थी। लेकिन पूरी तरह से नहीं। बस यह लग रहा था कि हाँ जो हो रहा है, उसका पता चल रहा है।' आशिमा ने कहा।
'क्या...? तो तुझे रिएक्ट करना चाहिए था। अपोज़ करना चाहिए था।' कुछ ग़ुस्से में कहा प्राची ने।
'मैंने कहा ना कि मैं पूरी तरह से होश में नहीं आई थी। बस कुछ धुँधला-धुँधला-सा था सब कुछ। मुझे लगा कि वह साहिल ही है। कमरे में आते समय जो कुछ हुआ, वह याद नहीं था। बस कुछ एहसास हो रहा था लेकिन अपनी तरफ़ से कुछ रिएक्ट करने की स्थिति में नहीं थी।' आशिमा ने कुछ सोचते हुए उत्तर दिया। प्राची ने कुछ नहीं कहा, वह आशिमा की ओर देखती रही।
'फिर... फिर मुझे लगा कि नहीं यह तो साहिल नहीं है, यह तो साहिल हो ही नहीं सकता।' आशिमा ने कुछ बुदबुदाते हुए कहा।
'कैसे...?' प्राची ने पूछा।
'क्योंकि साहिल... साहिल वैसा नहीं है। साहिल बहुत एग्रेसिव है, सम टाइम्स ब्रूटल इज़ द करेक्ट वर्ड फॉर हिम और वह जो था... वह... वह वैसा नहीं था। वह बहुत साफ़्ट था, पोएटिक, जैसे कोई साफ़्ट-सी फ्ल्यूट बज रही हो। मद्धम-मद्धम, मद्धम-मद्धम।' आशिमा की आवाज़ बहुत साफ़्ट हो गई थी।
'दैट्स व्हाय यू आर सर्चिंग हिम...?' प्राची का स्वर कुछ शुष्क हो गया।
'हाँ...' आशिमा जैसे नींद से जागी 'नहीं यार... नहीं उसलिए नहीं... पता नहीं क्यों... पता नहीं...आई डॉण्ट नो... बट नाट फॉर दैट पर्पस... नो।' आशिमा कुछ तय नहीं कर पा रही थी कि उसे क्या कहना है।
'तू पहले तय कर ले कि तुझे क्या उत्तर देना है? हाँ या नहीं?' प्राची ने अपने स्वर को कुछ ठीक कर लिया।
'मुझे भी नहीं पता... मुझे नहीं पता व्हाय...?' कहते हुए आशिमा प्राची से लिपट गई और सिसकने लगी। प्राची उसकी पीठ पर हाथ फिराने लगी।
'तू अपने मोबाइल पर कॉल रिकार्डर डाल ले, अगली बार जब उसका कॉल आये तो रिकार्ड करना, मैं सुनूँगी, शायद कोई सिरा पकड़ में आए।' प्राची ने आशिमा की पीठ थपकते हुए कहा।
अगले दिन आशिमा ने ऑफिस में बैठे-बैठे दिन में कई बार उस मोबाइल नंबर को ट्राय किया लेकिन हर बार वही बंद होने की सूचना आती रही। आशिमा का किसी भी काम में मन नहीं लगा। एक अजीब तरह की बेचैनी उसे पूरे दिन होती रही। कौन है वह? दो क़दम की दूरी पर ही तो खड़ा है। चाहे तो अभी पुलिस की मदद लेकर नंबर को ट्रेस करवा ले और पहुँच जाए उस तक। लेकिन नहीं, पुलिस नहीं।
शाम को जब वह ऑफिस से लौट रही थी, तो मोबाइल बज उठा। आशिमा ने कार को साइड से लगाया और पर्स खोल कर तेज़ी के साथ मोाबइल को निकाला। वही नंबर था।
'हलो...' आशिमा ने कुछ अटकते हुए कहा।
'नमस्ते आशिमा जी। मैंने आपसे कहा था कि मैं आपको अपनी कहानी सुनाना चाहता हूँ। कल तो आप नाराज़ थीं, क्या आज सुना सकता हूँ?' उधर से बहुत ही संयत स्वर आया।
'कौन हो यार और अब क्या चाहते हो?' आशिमा ने कुछ झल्लाहट के स्वर में कहा।
'कुछ नहीं, कुछ भी नहीं। आप यह मत सोचिए कि मैं किसी और कारण से कॉल कर रहा हूँ। अगर आपको ऐसा लगता है तो मैं कॉल करना बंद कर देता हूँ। यक़ीन मानिए ऐसा कोई इरादा नहीं है कि आपको परेशान करूँ, वैसे ही मेरे कारण आप परेशान हैं।' उधर से उतना ही संतुलित स्वर आया। आशिमा को एकदम से कोई भी उत्तर नहीं देते बना।
'मैं अपनी तरफ़ से कोई सफ़ाई नहीं देना चाहता, जो कुछ हुआ उसे जस्टीफाई भी नहीं करना चाहता लेकिन... लेकिन बस यह कि मैं आपको बहुत...' कहते-कहते उस तरफ़ की आवाज़ रुक गई।
'क्या बहुत...?' आशिमा ने रूखे स्वर में पूछा।
'आप उस पर विश्वास नहीं करेंगी, करना भी नहीं चाहिए। उस सब के बाद तो बिल्कुल भी नहीं। लेकिन सच्चाई यही है कि... मैं... मैं बहुत शिद्दत के साथ आपको प्रेम करता हूँ।' कुछ अटकते हुए स्वर आया उस तरफ़ से।
'प्रेम...? इस शब्द को ज़ुबान पर लाने की हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी? हाउ डेयर यू? पता भी है प्रेम क्या होता है?' आशिमा एकदम से भड़क उठी 'और प्रेम में वह सब किया जाता है, जो तुमने किया?'
'क्या किया मैंने?' उधर से आवाज़ आई।
'क्या किया? तुम नहीं जानते तुमने क्या किया? मेरे मुँह से सुनना चाहते हो?' आशिमा ने लगभग चीखते हुए कहा।
'चिल्लाइये मत आशिमा जी, मैं आपको परेशान नहीं करना चाहता। यदि आपको मेरे कॉल से परेशानी हो रही है, तो मैं कॉल काट देता हूँ और फिर कभी आपको कॉल नहीं करूँगा। कभी नहीं।' उधर से एक उदास-सा स्वर आया।
आशिमा को लगा कि अगर अभी यह कॉल कट गया और हमेशा के लिए कट गया तो यह राज़, राज़ ही रह जाएगा, इसलिए उसने अपने आपको कुछ संयत किया और कहा 'बताइये आप क्या बताना चाहते हैं मुझे?'
'क्या आपको सचमुच लगता है कि मैंने आपके साथ... आपके साथ... रेप किया?' उधर से कुछ झिझकते हुए कहा गया।
'तो...? जो कुछ किया वह क्या प्रेम था?' आशिमा ने भरसक अपने आप को संयत रखने का प्रयास किया लेकिन आवाज़ में तल्ख़ी आ ही गई।
'मैं उस घटना को जस्टीफाई नहीं कर रहा किन्तु, क्या अगली सुबह आपके शरीर ने भी आपको यही उत्तर दिया था कि आपके साथ रेप हुआ है?' उधर से आवाज़ आई।
'क्या अजीब-सी बातें कर रहे हैं आप? बेसिरपैर की। क्या उत्तर दूँ भला इन बातों का?' आशिमा ने कुछ ग़ुस्से में कहा।
'मैं समझा नहीं पा रहा हूँ शायद, या शायद मेरे पास सारी बातें खुल कर कहने के लिए शब्द... और शायद हिम्मत भी नहीं है। पर आप यह जान लें कि मैं आपसे बहुत-बहुत प्रेम करता हूँ, करता रहूँगा।' इतना कहने के बाद उस तरफ़ से कॉल काट दिया गया।
आशिमा ने हलो-हलो किया फिर मोबाइल को देखा तो कॉल कट चुका था। उसने तुरंत कॉल बैक किया लेकिन नंबर एक बार फिर से बंद आ रहा था। कुछ ग़ुस्से में उसने मोबाइल को पास की सीट पर फेंक दिया और कार को स्टार्ट कर आगे बढ़ गई।
'वह तुझे प्रेम करता है, यह तो वह कह रहा है लेकिन वह जो कुछ कर चुका है, उसे हम प्रेम कैसे कह सकते हैं? यह एक ख़तरनाक स्टेब्लिशमेंट होगा, वेरी डेंजरस, डेंजरस भी और ग़लत भी, वेरी राँग, एब्सोल्यूट राँग।' प्राची ने मोबाइल पर पूरा कन्वर्सेशन सुनने के बाद कुछ समझाने के अंदाज़ में कहा। आशिमा ने कोई उत्तर नहीं दिया, वह गोद में रखे हुए कुशन के कवर पर लगे काँच के छोटे से टुकड़े पर उँगलियाँ फिराती रही।
'क्या तू भी उससे...?' प्राची ने धीरे से पूछा।
'व्हाट रबिश यार... तू ऐसा कैसे पूछ सकती है?' आशिमा ने कुछ झुँझला कर पूछा।
'इसका मतलब, नहीं...?' प्राची ने फिर से पूछा।
'पता नहीं यार... मुझे भी कुछ नहीं पता... कुछ भी नहीं पता...कुछ समझ नहीं पड़ रहा है मुझे। शायद नहीं... या शायद हाँ।' आशिमा ने कुछ बुदबुदाते हुए कहा।
'तू बड़े अजीब तरीके से सोच रही है आशू।' प्राची ने कुछ अपनेपन से कहा।
'पता है प्राची, प्रेम और यातना के बीच बड़ा बारीक-सा अंतर होता है। हमें पता ही नहीं चलता है कि जिसे हम प्रेम समझ रहे थे, वह तो वास्तव में यातना था और।' आशिमा ने बात को बीच में ही छोड़ दिया।
'और क्या...?' प्राची ने पूछा।
'और जिसे हम यातना समझ रहे हैं, वह तो...' आशिमा ने कुछ कहने की हिम्मत जुटाई 'वह तो प्रेम है। कितना मुश्किल होता है जान पाना कि कहाँ प्रेम खत्म हो रहा है और कहाँ से यातना शुरू हो रही है?' प्राची ने कोई उत्तर नहीं दिया वह चुपचाप आशिमा की ओर देखती रही।
'यह बंदा कौन है, मैं नहीं जानती, हाँ यह ज़रूर अब लगता है कि उसने उस दिन मुझे ज़रा भी यातना नहीं दी। बल्कि... बल्कि शायद प्रेम ही किया। वही सब कुछ, जो मैं साहिल से चाहती हूँ।' आशिमा अपने आप में ही बुदबुदा रही थी।
इसके बाद दो दिन तक आशिमा के पास कॉल नहीं आया। दो दिन तक हर कॉल पर वह उत्सुकता से मोबाइल उठाती थी कि शायद वही हो लेकिन हर बार कोई और निकलता था। उसकी मनोदशा बड़ी अजीब-सी हो रही थी। उसे लग रहा था कि इससे अच्छी स्थिति तो वह थी, जब उस व्यक्ति का कॉल नहीं आया था। शायद एक दो दिन में वह उसकी तलाश बंद भी कर देती। साहिल दो दिनों के लिए एक बार फिर टूर पर गया हुआ था। दो दिनों में आशिमा ने अपना सारा सामान पैक कर, ऑफिस आते-जाते प्राची के वहाँ छोड़ दिया था। केवल रोज़ का उतना ही सामान बचा रखा था, जितना लेकर तुरंत निकलने में आसानी हो।
'नहीं साहिल अभी नहीं प्लीज़, अभी मेरी हालत ठीक नहीं है। मुझे कुछ समय दो सामान्य होने के लिए।' शाम को जैसे ही आशिमा ऑफिस से पहुँची और घर में घुसी, वैसे ही साहिल ने उसे बाँहों में जकड़ लिया और बैडरूम की ओर ले जाने की कोशिश करने लगा। साहिल टूर से वापस आ गया था और ऐसा लगा कि उसके इंतज़ार में ही बैठा हुआ है। आशिमा के कसमसाने के बाद भी साहिल ने उसे नहीं छोड़ा।
'सामान्य होने की कोशिश करोगी, तभी तो सामान्य होगी। अभी तो तुम सामान्य होने की कोशिश ही नहीं कर रही हो, हर समय एक ही काम में लगी हो। जाने उसे तलाश करके तुमको क्या मिल जाएगा? तुम सोचती हो किसी को पता नहीं चल रहा है कि तुम क्या कर रही हो। मुझे सब पता है कि तुम चुपके-चुपके क्या कर रही हो। मगर अब नहीं... और नहीं वह सब कुछ। मैं तुमको प्रेम करता हूँ।' साहिल ने कुछ सख़्ती से उसे भींचते हुए कहा।
'साहिल ऐसा तुम सोचते हो कि तुम मुझसे प्रेम करते हो, लेकिन...' कहते हुए आशिमा ने बात को बीच में ही छोड़ दिया।
'लेकिन क्या?' साहिल ने पूछा।
'लेकिन मेरे लिये वह यातना होता है...' आशिमा ने कुछ ठंडे स्वर में कहा। साहिल के चेहरे पर क्रोध की एक लकीर आई लेकिन उसने अपने मनोभाव पर काबू पा लिया।
'छोड़ो यह सब बातें, चलो आज तुम्हारा मूड एकदम ठीक कर देता हूँ।' कहते हुए साहिल ने उसे बांहों में लेना चाहा।
'प्लीज़ साहिल...छोड़ो मुझे, मैं अभी तैयार नहीं हूँ, प्लीज़...लीव मी।' कहते हुए आशिमा ने कसमसा कर छूटने का प्रयास किया।
'नो आशिमा, बहुत हो गई तुम्हारी मनमानी। बस अब नहीं।' कहते हुए साहिल ने उसे कुछ और ताक़त लगाकर बैडरूम की ओर खींचा।
'साहिल स्टॉप...' आशिमा पूरी ताक़त लगा कर चीखी। उसके चिल्लाते ही साहिल की पकड़ कुछ ढीली हो गई। जैसे ही साहिल की पकड़ ढीली हुई वैसे ही आशिमा ने ताक़त लगा कर अपने आप को छुड़ा लिया, इस पूरी प्रक्रिया में उसके हाथ से साहिल को हल्का-सा धक्का भी लग गया। साहिल कुछ लड़खड़ा गया उस धक्के से।
'क्या जानवर समझ रखा है मुझको? मरा नहीं जा रहा हूँ मैं तुमको बैडरूम में ले जाने के लिए। मैं बस तुमको नार्मल करना चाह रहा था। बट यू... यू आर ट्रीटिंग मी लाइक डॉग।' धक्का लगने से साहिल का इगो हर्ट हुआ और वह एकदम से चीख पड़ा।
'सॉरी साहिल, मैं धक्का नहीं मारना चाह रही थी। एक्सीडेण्टली वैसा हो गया।' आशिमा ने अपने आप को रिएक्ट करने से रोकते हुए संतुलित स्वर में कहा।
'नहीं मारना चाहती से क्या मतलब है? यह जो किया था यह और क्या था? जिसको धक्का मार के हटाना था, उसे तो हटाया नहीं... सब समझता हूँ मैं...' साहिल के स्वर में व्यंग्य आ गया था।
'क्या समझते हो तुम? बोलो न क्या समझते हो? और तुम धक्के की पूछ रहे हो न? तो सुनो, उस दिन उसको धक्का नहीं मार पाई, क्योंकि होश में नहीं थी लेकिन होश में भी कोई मेरे साथ वही सब कुछ करे, तो धक्का मार कर हटाऊँगी, सौ बार हटाऊँगी। जैसे... जैसे अभी धक्का मारा है।' इस बार आशिमा चीखी।
'क्या मतलब है तुम्हारा? तुम मुझे भी उसकी कैटेगरी में रख रही हो? मुझे और उसको एक बराबर मान रही हो?' साहिल ने उतनी ही ऊँची आवाज़ में उत्तर दिया।
'तो...? क्या फ़र्क़ है तुम दोनों में? एक ही तो बात है। उसने भी मेरी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ मेरे साथ वह सब कुछ किया और तुम भी वही कर रहे हो, आख़िर फ़र्क़ क्या है तुम दोनों में? मेरे लिए तुम दोनों एक बराबर हो, एक जैसे। अंतर बस इतना है कि वह अपरिचित अनजान था और तुम जाने-पहचाने हो। और... और इसी कारण तुम तो उससे भी कहीं बड़े अपराधी हो मेरी नज़र में।' आशिमा की आवाज़ भी ऊँची बनी हुई थी।
'अच्छा...? या यूँ कहो न कि उसके साथ।' कहते-कहते वाक्य को अधूरा छोड़ दिया साहिल ने।
'क्या उसके साथ? पूरी बात कहो न, बीच में क्यों छोड़ रहे हो बात को।' आशिमा ने क्रोध में कहा।
'कुछ नहीं, कुछ नहीं, अच्छा होगा तुम नहीं ही सुनो।' साहिल ने रूखा-सा उत्तर दिया।
'हाँ... नहीं सुनना है मुझे, कुछ नहीं सुनना है तुम्हारे मुँह से। मैं जानती हूँ तुम्हारे अंदर क्या गंदगी भरी है। तुम्हारे साथ बैडरूम में जाने से इनकार कर दिया, तो तुम बातें सुनाने लगे।' आशिमा ने कुछ चिल्लाते हुए कहा। आशिमा ने आवाज़ को जान बूझकर ऊँचा कर लिया था, इतना कि यदि वह कॉल करने वाला सचमुच सुनता है, तो सुन ले यह सारी बातें।
'तो इस गंदगी में रह क्यों रही हो? व्हाय यू आर हियर। दिस इज़ माय स्पेस।' साहिल ने भी ऊँचे ही स्वर में उत्तर दिया।
'वह तो मुझे पता है कि यह तुम्हारा स्पेस है और यहाँ रहना है, तो तुम्हारे साथ वहाँ बैडरूम में जाना होगा, भले ही मेरी मर्ज़ी हो चाहे नहीं हो।' आशिमा ने आवाज़ को ऊँचा ही रखते हुए कहा।
'पता है, तो फिर मना क्यों किया जाने को?' साहिल ने तंज़ कसा।
'आ गए न अपनी औक़ात पर, सीधे क्यों नहीं कहते कि यहाँ रहने का किराया वसूलना था।' आशिमा ने ग़ुस्से में कहा।
'तो...? नहीं वसूलूँ किराया? फ्री में रखूँ तुमको? रखूँ मैं और मज़ा कोई दूसरा ले के चला जाए।' साहिल ने तीखा तंज़ कसा।
'स्टॉप साहिल... नहीं रहूँगी मैं यहाँ, चली जाऊँगी।' आशिमा चिल्लाई।
'जाऊँगी से क्या मतलब है...? व्हाय दिस फ्यूचर टेंस?' साहिल ने उसी अंदाज़ में कहा।
'अभी चली जाऊँगी... अभी इसी वक़्त। तुम तो उससे भी ज़्यादा गिरे हुए निकले। उसने जो कुछ किया वह कम से कम बेहोश करके किया था, तुम तो इतने सालों से प्रेम नाम के क्लोरोफार्म को सुँघा-सुँघा कर यातना देते रहे। थू है तुम पर।' कहते हुए आशिमा ग़ुस्से में बैडरूम की ओर बढ़ गई।
कुछ ही देर में आशिमा अपना सामान लिये हुए बाहर निकल आई। सामान तो वैसे भी कुछ ख़ास था नहीं, जो था वह सब पैक किया हुआ था। बैडरूम से बाहर आकर उसने एक बार साहिल की ओर देखा, साहिल उसी प्रकार से वहीं खड़ा था। आशिमा को देखकर वह व्यंग्य से मुस्कुरा दिया। आशिमा ने अपना सिर झटका और दरवाज़े से बाहर निकल गई।
पार्किंग में आकर उसने अपनी कार में सामान रखा और ड्रायविंग सीट पर बैठ गई। सीट बैल्ट बाँधते में ही मोबाइल बज उठा। वह नंबर था।
'आशिमा कहाँ जा रही हो?' आशिमा के कॉल कनेक्ट करते ही उधर से आवाज़ आई।
आशिमा...? हर बार तो यह बंदा आशिमा जी कह कर बुलाता था, आज सीधे नाम ले रहा है।
'अपने फ़्लैट पर जा रही हूँ।' आशिमा ने बहुत संक्षिप्त-सा उत्तर दिया।
'आशिमा... मैं सोहम हूँ... सोहम शर्मा।' उस तरफ़ से आवाज़ आई।
सोहम...? वह कॉलेज में साथ पढ़ने वाला दब्बू मगर सुंदर-सा पढ़ाकू लड़का? माय गॉड। जिसने कॉलेज में उसके सामने एक बार अपने प्रेम का इज़हार भी किया था और आशिमा ने सीधे-सीधे मना भी कर दिया था। उसके बाद भी सोहम की आँखें उसका पीछा करती रहती थीं। कॉलेज ख़त्म होने के बाद एक बार बस यह पता चला था कि सोहम अमेरिका चला गया है। माय गॉड... इसके बारे में तो सोच ही नहीं सकती थी।
'तुम...? व्हाय सोहम...? व्हाय...?' आशिमा के मुँह से आश्चर्य में डूबे हुए बस इतना ही निकला।
'इसका उत्तर तो मुझे भी नहीं पता कि व्हाय...? लेकिन हाँ उस दिन के बाद से जी नहीं पा रहा हूँ।' उस तरफ़ से आवाज़ आई।
'लेकिन तुम तो यूएसए... ?' आशिमा ने अधूरा-सा प्रश्न किया।
'हाँ चला गया था, लेकिन लौट आया। मन नहीं लगा वहाँ पर। ऐसा लगा कि कुछ छूट गया है यहाँ, भारत में। बस लौट आया। आते ही तुमको तलाश किया। और।' कहते-कहते सोहम रुक गया।
'यहाँ... इसी बिल्डिंग में रहते हो न तुम?' आशिमा ने प्रश्न किया।
'हाँ... साहिल के फ़्लैट से दो फ़्लैट छोड़ कर, थ्री ज़ीरो फाइव में।' उधर से आवाज़ आई।
'थ्री ज़ीरो फाइव...? उसमें तो वह गौतम रहता है।' आशिमा ने आश्चर्य से पूछा।
'हाँ... बस उसके ही यहाँ पेइंग गेस्ट के रूप में रहता हूँ।' सोहम ने कहा।
'पर गौतम तो...गे...' आशिमा ने प्रश्न किया।
'हाँ... गौतम वही है..., उसे मैंने उस ही तरीके से मेन्युपुलेट किया, कैसे किया, क्या किया, वह सब बताने का कोई मतलब नहीं है। बस यह समझ लो कि बहुत दिनों से इस काम पर लगा था। गौतम से फ्रेण्डशिप की, फिर उसी के थ्रू वहाँ तक पहुँचा। तुमसे आमना-सामना न हो, इस बात की पूरी कोशिश करता रहा। क्योंकि मैं तुम्हारे बारे में जानना चाहता था, तुम्हारे और साहिल के बारे में।' सोहम ने कहा।
'लेकिन वह सब क्यों किया...? व्हाय सोहम, व्हाय...?' आशिमा ने बात काटी।
'मुझे भी इस प्रश्न का उत्तर नहीं पता। मैं वह सब कुछ करना भी नहीं चाहता था, मैं तो बस तुम्हें प्रेम करना चाहता था। केवल और केवल प्रेम, एक पूरी रात भर प्रेम। लेकिन मेरे शरीर ने मेरे साथ छल कर दिया, मुझे धोखा दे दिया। जब वह सब कुछ हो गया, तो ऐसा लगा कि नहीं, इस सब के लिए तो नहीं लौटा था मैं अमेरिका से। कुछ और था जिसकी तलाश थी मुझे। कुछ और... लेकिन। अभी तुमने कहा न साहिल से कि उसका प्रेम तुम्हें यातना लगता है, मैं यातना नहीं देना चाहता था, प्रेम ही देना चाहता था, चाहता हूँ। तुम रुको मैं वहीं पार्किंग में आ रहा हूँ।' उधर से आवाज़ आई।
'नहीं सोहम... अब नहीं।' आशिमा ने उत्तर दिया।
'आशिमा यातना तुम भोग चुकीं, मैं प्रेम देना चाहता हूँ। सिर्फ़ और सिर्फ़ प्रेम।' उधर से आवाज़ आई।
'नहीं सोहम, अब कोई मतलब नहीं है आने का... मैं जा रही हूँ... एंड डॉण्ट ट्राय टू फालो मी।' कहते हुए आशिमा ने कॉल काट दिया।
कॉल डिस्कनेक्ट कर उसने स्क्रीन पर देखा, तो एक एस.एम.एस. प्राप्त होने की सूचना आ रही थी। उसने कार को स्टार्ट करते हुए मैसेज बॉक्स खोला, साहिल का मैसेज था-'गो टू हेल... यू बिच...'। आशिमा को लगा मानो कार स्टार्ट करने के दौरान स्पार्क प्लग से लपकी इग्निशन की चिंगारी उसके पैरों से होते हुए दिमाग़ में पहुँच गई है। पूरा शरीर सुलग उठा उसका। वह कुछ देर उसी प्रकार बैठी रही। साहिल के भेजे हुए अंग्रेज़ी के उन पाँच शब्दों ने उसके पूरे वजूद को हिलाकर रख दिया था। आशिमा चुप बैठकर अपने आप को कंट्रोल करती रही। जब उसे लगा कि अब दिमाग़ कुछ शांत है, तो उसने सोहम के नंबर पर एक मैसेज टाइप किया, मैसेज जिसमें उसने भी अंग्रेज़ी के ही पाँच शब्द टाइप किये और उस मैसेज को सोहम को सेण्ड कर दिया-'कम डाउन, आई एम वेटिंग...'।