रेप विक्टिम / सुषमा गुप्ता
"अंजू उठ गई?"
"हाँ, आज तो कुछ जल्दी ही!"
"रात भर सोती ही कहाँ है, जब भी आँख खुलती है, इसके कमरे की लाइट जली ही दिखती है।"
"उस हादसे के बाद से अँधेरे से दहशत होती है उसे, जाने बच्ची कभी उबर भी पाएगी या नहीं, पर पहले से कुछ बदलाव तो आया है। कुछ दिन पहले सामने वाली बिल्डिंग में जो मालती रहती है वह मिली थी।"
"वह रेप विक्टिम?"
"आप तो ऐसे न बोलो। क्या बस यही पहचान रह गई है उसकी। फिर हमारी बच्ची के लिए लोग क्या पहचान रखते होंगे? वही अंजू जिसके सरे-राह कपड़े फाड़ने की कोशिश की गुंडों ने?"
समर के चेहरे पर गहन पीड़ा के भाव उभर आए।
वह दिन कोई इस घर में चाहकर भी नहीं भूला पाता। उनकी आत्मविश्वास से भरपूर बच्ची उस रोज़ किस बुरी हालत में घर आई थी। शर्ट के नाम पर बस चिथड़े थे और शरीर लहूलुहान। किसी के दुपट्टे को शाल—सा ओढ़े थी, जब घर आई। रमा तो उसकी हालत देख पछाड़ खा गिरी। वह ख़ुद भी जड़ हो गया था। साथ आई लेडी पुलिस ने झकझोरा तो चेतना लौटी।
उस रोज़ अंजू के कॉलेज की किसी लड़की को कुछ लड़के बस स्टैंड पर गंदे फिकरे कस रहे थे।
जब शराब में धुत्त वे लड़के उसे छूने लगे, तो अंजू उन लड़कों से उलझ पड़ी। घटिया सोच के आदमियों के पास औरत को शांत करने का युगों से एक ही हथियार रहा है। सरेआम उसके कपड़े फाड़ डालो और फिर भी चुप न हो तो बलात्कर। शुक्र था उन से उलझने से पहले अंजू ने पुलिस को फ़ोन कर दिया था। समय रहते पुलिस न पहुँचती तो...
अंजू अब चुप-सी रहती है, जाने हर समय क्या सोचती है। शायद उस दिन की दहशत उसके मन में घर कर गई है।
"क्या सोचने लगे जी?"
रमा ने आवाज़ दी तो उसकी तंद्रा टूटी।
"कुछ नहीं, तुम वह मालती का कुछ कह रही थी?"
"मैं कह रही थी-उस रोज़ जब वह मिली, तब अंजू भी मेरे साथ थी। उसे भी अंजू के साथ हुए हादसे के बारे में पता है। उसने अंजू का नम्बर लिया था। आजकल उससे बहुत बात होती है अंजू की।"
"तो?" समर कुछ समझ नहीं पा रहा था।
तभी अंजू के कमरे का दरवाज़ा खुला। वह सुर्ख रंग के सूट में बहुत सुंदर लग रही थी।
"तो ये पापा, मालती दीदी की हिम्मत ने मुझ में नया आत्मविश्वास भर दिया है। मैं क्यों असहज-सी घूम रही हूँ। मुझे तो बिंदास बाहर जाना चाहिए कि मैंने अंजाम की परवाह किए बिना बुराई के खिलाफ संघर्ष किया और किसी भी संघर्ष में चोट लगना आम बात है। लड़ाई-झगड़े में आदमियों के कपड़े फटते हैं तब कोई हो-हल्ला नहीं होता। फिर स्त्री ही क्यों शर्मिंदा हो! जब तक पितृसत्तात्मक सामाज को यह लगता रहेगा, औरत को निर्वस्त्र करना, उनकी जीत है; तब तक वे दंभ में यह सब करते रहेंगे। अब मैं दुगने आत्मविश्वास और स्वाभिमान के साथ बाहर जाऊँगी कि हाँ मुझ में है हिम्मत, ग़लत के खिलाफ खड़े होने की।"
समर की आँखें गर्व से भर आईं। रमा ने आगे बढ़ बेटी को गले लगा लिया।
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