रैली का एग्रीमेंट / बलराम अग्रवाल
पात्र-
नेता जी—एक अवसरवादी नेता
रामभरोसे—राजनीतिक बिचैलिया
मजदूर 1—स्वस्थ शरीर का व्यक्ति
मजदूर 2—दुबले-पतले शरीर का व्यक्ति
परदा उठता है। खादी का कुर्ता व लखनवी पाजामा पहने नेता जी कुर्सी पर बैठे हैं। उनके नजदीक ही एक स्टूल पर रामभरोसे बैठा है।
नेता जी—कितने लोगों का इंतजाम हो गया?
रामभरोसे—यह रामभरोसे से पूछने लायक सवाल नहीं है नेताजी।
नेता जी—भाई, जो काम तुझे सौंपा था, उसके बारे में कुछ तो पूछूँगा ही।
रामभरोसे—यानी कि आप रामभरोसे को जानते ही नहीं हैं।
नेता जी—मैं तुझे नहीं जानता?
रामभरोसे—बिल्कुल।
नेताजी—सो कैसे?
रामभरोसे—सो ऐसे कि रामभरोसे को जो काम सौंपा जाता है उसके बारे में शक नहीं किया जाता।
नेता जी—अच्छा भाई, तू खुद ही बता क्या कहना चाहता है?
रामभरोसे—राजनीतिक ताकत दिखाने के लिए आपको जितने लोग चाहिएँ, मिल जायेंगे।
नेता जी—ढूढ़ने को नहीं, लेकर आने को कहा था। ले आया?
रामभरोसे—फिलहाल दो ऐसे लोगों को लाया हूँ जो आपके लिए ग्रासरूट लेवल के सैकड़ों क्या हजारों लोगों को इकट्ठा कर सकते हैं। इनसे डील पक्की कर लीजिए।
नेता जी—तू कुछ नहीं करेगा?
रामभरोसे—कर तो दिया।
नेता जी—पाँच-छः सौ लोगों की जगह दो लोगों को लाकर कह रहा है कि कर तो दिया?
रामभरोसे—हुजू...ऽ...र, ये दो नहीं दो हजार लोग हैं।
नेता जी—मुझे बना रहा है?
रामभरोसे—हुजूर, आप बात तो करके देखिए इनसे।
'नेता जी—ठीक है, किधर हैं?
रामभरोसे—बाहर बैठे हैं, आपकी कोठी के लॉन में।
नेता जी—अबे, तो इतनी देर से बकबक क्यों किये जा रहा था? तुझसे कितनी बार कहा है जुबान कम चलाया कर।
रामभरोसे—जी हुजूर। चुप...(यों कहकर रामभरोसे अपने मुँह को दोनों हथेलियों से दबा लेता है और पीछे हट जाता है।)
नेता जी—अबे, भीतर बुला उन्हें...(रामभरोसे जाने लगता है)
नेता जी—नहीं-नहीं, हम ही बाहर चलते हैं यहाँ से उठकर।
रामभरोसे—आइए...। चुप...(यों कहकर रामभरोसे अपने मुँह को दोनों हथेलियों से दबा लेता है और नेताजी के पीछे-पीछे चलने लगता है।)
दोनों बाहर लॉन की तरफ जाते हैं जहाँ मजदूर किस्म के दो लोग उकड़ू बैठे हैं। नेताजी को देखकर दोनों हाथ जोड़कर उठ खड़े होते हैं।
दोनों (एक साथ)—पायँ लागें मालिक।
नेताजी (आशीर्वाद की मुद्रा में हाथ हिलाते हुए)—ठीक है, ठीक है...सुखी रहो।
मजदूर 1 (अकड़ के साथ थोड़ा आगे आकर, नारा लगाने की मुद्रा में)—ऊपर वाला आपको लम्बी उमर दे मालिक।
नेताजी (रामभरोसे के कान के पास डरे हुए स्वर में फुसफुसाकर)—यह मजदूरों का लीडर है क्या?
रामभरोसे—नारा लगाने वाले मजदूरों का बहुत बड़ा ठेकेदार है।
नेता जी—ठेकेदार है ? इतना अकड़कर मेरी तरफ क्यों आया यह?
रामभरोसे—गरीब आदमी है। आपको अन्नदाता समझकर लम्बी उम्र की दुआ कर रहा है।
नेताजी—अन्नदाता तो हम हैं ही।
रामभरोसे—रोजी-रोटी का इन्तजाम कर देने वाले हर आदमी को ये लोग भगवान की तरह पूजने लगते हैं।
नेता जी—अच्छा, अब तू अपनी जुबान पर लगाम लगाए तो हम इनसे बात कर लें?
रामभरोसे—चुप...(यों कहकर रामभरोसे अपने मुँह को दोनों हथेलियों से दबा लेता है और पीछे हट जाता है।)
नेता जी (मजदूरों से) —कितने दिनों से कर रहे हो यह काम?
मजदूर 2 (मजदूर 1 की तरह ही अकड़कर आगे आकर)—बाप-दादों के जमाने से।
नेता जी—मतलब?
मजदूर 2—मतलब यह कि जब से टुच्चे लोग राजनीति में आने लगे हैं तभी से।
रामभरोसे (मजदूर 2 को डाँटते हुए)—चुप। शर्म नहीं आती अपने अन्नदाता को टुच्चा बताते हुए?
मजदूर 1—सच्ची बात कहने में शर्म कैसी?
मजदूर 2—और फिर इनसे ज्यादा टुच्चे तो हम हैं जो अपने पेट की खातिर इनकी झूठी शान के लिए नारेबाजों का इन्तजाम करते हैं।
नेताजी (रामभरोसे से)—रामभरोसे! तू चुप रहेगा कि नहीं?
रामभरोसे—चुप...(यों कहकर रामभरोसे अपने मुँह को दोनों हथेलियों से दबा लेता है और पीछे हट जाता है।)
नेताजी (आगे बढ़कर दोनों मजदूरों के बीच में जा खड़े होते हैं और दोनों के कन्धों पर अपनी बाँहें रख देते हैं)—दोस्तो, मुझे जरा भी बुरा नहीं लगा तुम्हारी बात का। दरअसल, एक टुच्चा ही दूसरे टुच्चे के दिल का दर्द समझ सकता है।
मजदूर 1—हम दुखियों के, दुखी हमारे।
मजदूर 2 (नेताजी से)—तो डील पक्की?
नेताजी (दोनों के सामने आकर)—महापक्की।
मजदूर 2—मजदूरों को तीन वक्त का खाना, दो बार चाय-पानी-कोल्ड्रिंक, उनके आने-जाने के खर्च के अलावा सौ रुपए रोज, झंडा बैनर आदि का खर्चा—यह सब आपकी ओर से होगा।
नेता जी—मुझे मंजूर है।
मजदूर 1—तीन वक्त का खाना, दो बार चाय-पानी-कोल्ड्रिंक, आने-जाने के खर्च के अलावा पाँच-पाँच सौ रुपए हमारे लिए अलग से।
नेता जी—मुझे मंजूर है।
मजदूर 2 (जेब से स्टाम्प पेपर निकालकर)—तो यह लीजिए, करिए एग्रीमेंट पर दस्तखत।
नेता जी—एग्रीमेंट क्यों? मेरी जुबान पर यकीन नहीं है?
मजदूर 1—टुच्चे लोगों की जुबान यकीन करने लायक नहीं रह जाती।
नेता जी—अरे, हम भी टुच्चे, तुम भी टुच्चे। टुच्चे-टुच्चे मौसेरे भाई। एग्रीमेंट की बात कहाँ से बीच में आई ?
मजदूर 2—माफ करना हुजूर, टुच्चे आप नहीं हम हैं।
मजदूर 1—‘आप तो महाटुच्चे लोग हैं। आप जैसों से हम कई बार धोखा खा चुके हैं।
नेता जी—सो कैसे?
मजदूर 2—‘वो ऐसे कि जब पुलिस का डण्डा पड़ता है तो हमारे लोग तो डटे खड़े रहते हैं...
मजदूर 1—और आप जुलूस छोड़कर भाग खड़े होते हैं।
मजदूर 2—बाद में बयान देते हैं कि उनमें से कोई भी हमारी पार्टी का आदमी नहीं है।
मजदूर 1—विरोधियों ने हमें बदनाम करने के लिए साजिश रची है।
नेता जी—ऐसा कुछ नहीं होगा भाई। आगे लाओ, मैं डील पर दस्तखत करता हूँ।
यों कहकर नेताजी पेपर पर अपने हस्ताक्षर करते हैं। पीछे खड़ा रामभरोसे यह देखकर नारा लगाता है।
'रामभरोसे—टुच्चे-टुच्चे...
दोनों मजदूर—भाई-भाई।
नेता जी (रामभरोसे की ओर आँखें तरेरते हुए)—रामभरोसे...!
रामभरोसे—चुप...
यों कहकर रामभरोसे अपने मुँह को दोनों हथेलियों से दबा लेता है और पीठ दर्शकों की ओर घुमाकर खड़ा हो जाता है।
नेताजी (दोनों मजदूरों से)—तो हमारे समर्थन में कल आप पाँच सौ आदमियों की एक रैली पूरे शहर में घुमायेंगे।
दोनों मजदूर—आप बेफिकर रहें हुजूर।
नेता जी—तो हो जाए बानगी।
मजदूर 1—अभी तो ये अंगड़ाई है...
मजदूर 2—आगे और लड़ाई है!!!
मजदूर 1—हमारा नेता कैसा हो...
‘अभी तो ये अंगड़ाई है’ नारे के साथ ही मंच पर प्रकाश मद्धिम होना प्रारंभ हो जाता है और ‘हमारा नेता कैसा हो’ तक पूर्ण अंधकार में बदल जाता है।