रॉबिनहुड नए अवतार में / जयप्रकाश चौकसे

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रॉबिनहुड नए अवतार में
प्रकाशन तिथि :14 अगस्त 2017


फिल्मकार मेहबूब खान ने आज़ादी के कुछ वर्ष पूर्व 'रोटी' नामक फिल्म बनाई थी, जिसमें तत्कालीन सुपर सितारे चंद्रमोहन और शेख मुख्तार ने काम किया था। कथासार इस तरह है कि मुंबई के धनाढ्य चंद्रमोहन का व्यक्तिगत छोटा हवाई जहाज दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है परंतु उनके प्राण जनजातियों के लोग बचा लेते हैं। जड़ी-बूटियों द्वारा उनका इलाज होता है और कुछ माह तक वे मुंबई नहीं जा पाते। वे जनजाति के शेख मुख्तार को अपने मैनेजर के नाम खत देकर मुंबई भेजते हैं। फिल्म के क्लाइमैक्स में उनका लालची और भ्रष्ट मैनेजर सारा धन और जेवरात लेकर भागता है। उसकी वैन दुर्घटनाग्रस्त होकर एक गड्‌ढे में गिर जाती है और धन तथा जेवरात के नीचे वह दब जाता है। कुछ समय बीतने पर कुछ लोग वहां पहुंचते हैं तो दो दिन से भूखा, घायल व्यक्ति धन एवं जेवरात के नीचे दबा है अौर वह एक हाथ निकालकर रोटी मांगता है। धन्य हो मेहबूब खान कि उन्होंने रोटी का महत्व इस तरह प्रस्तुत किया। हीरे-जवाहर खाए नहीं जा सकते। भूख का सत्य सारे आडम्बर व तामझाम को बेकार सिद्ध कर देता है।

राजेश खन्ना को नायक लेकर मनमोहन देसाई ने भी 'रोटी' नामक फिल्म बनाई थी, जिसका नायक भूख और बेरोजगारी से तंग होकर अपराध के रास्ते पर चल पड़ता है। इस फिल्म में नायक के सारे कार्यकलाप 'रोटी' के इर्द-गिर्द घूमते हैं। दरअसल, मनमोहन देसाई ने इस फिल्म का केंद्रीय विचार राज कपूर की 'आवारा' के एक दृश्य से प्रेरित होकर रचा था। आवारा का नायक भी मजबूरियों के चलते अपराध जगत से जुड़ा है और एक बार पुलिस द्वारा पकड़ा जाता है। जेल में उसे रोटी खाने को दी जाती है तो उसका संवाद है, 'यह कमबख्त रोटी जेल के बाहर परिश्रम से मिल जाती तो वह जेल के अंदर नहीं होता।'

खबर है कि इंदौर,भोपाल और कुछ अन्य शहरों में 'रॉबिनहुड' नामक संगठन बना है, जो साधन संपन्न लोगों से भोजन लेकर बेघरबार गरीबों में वितरित करेगा। इस संगठन के सदस्य अपना हर रविवार इसी नेक काम में लगाएंगे। कुछ रेस्तरां और होटल वाले भी उन्हें भोजन उपलब्ध कराएंगे। अनेक परिवार भी भोजन के पैकेट्स संस्था को देने जा रहे हैं। इस नेक कार्य का शुभारंभ 14 अगस्त को हो रहा है और भोजन वितरण अगले दिन भी जारी रहेगा एवं आने वाले इतवारों को भी यह काम किया जाएगा।

साधनहीन लोगों की भूख के खिलाफ यह एक शांतिपूर्ण एवं सार्थक युद्ध है। इससे जुड़कर युवा वर्ग अपने जीवन को एक दिशा दे सकता है। सार्थकता की खोज में यह अभिनव प्रयास है। इंदौर के अमित त्रिवेदी नामक युवक ने यह शंखनाद किया है। इंदौर के कमिश्नर संजय दुबे ने भी इस दल को एक वाहन प्रदान किया है। इस तरह एक गैर-सरकारी प्रयास में एक आला अफसर ने भी सहयोग किया है। इंदौर के मीडियाकर्मी विक्रमजीत सिंह भी इससे जुड़े हैं। प्रतीकात्मक ढंग से यह शुभ कार्य इंदौर के अन्नपूर्णा क्षेत्र से प्रारंभ हो रहा है। भोपाल में सोनाक्षी शर्मा इससे जुड़ी हैं। रेस्तरां मालिकों के संगठन के संजय कुमार सिंह भी रॉबिनहुड संगठन की सहायता कर रहे हैं। इस तरह की संस्थाओं के उदय से यह रेखांकित होता है कि पूरी तरह निराश होने की जरूरत नहीं है। इंदौर के आनंद मोहन माथुर भी दलित, दमित एवं अल्पसंख्यक वर्ग को एकत्रित करके एक जंग में जुड़े हैं। हॉल ही में उन्होंने दिल्ली के छात्र कन्हैयालाल का भाषण आयोजित किया, जिन्होंने सप्रमाण सरकार की उदासीनता पर भाषण दिया। सच तो यह है कि सरकार पर निर्भर न होकर अवाम स्वयं समाज के सेवाकार्य से जुड़े। सरकार एवं राजनीतिक दल आपसी जोड़-तोड़ में राष्ट्रीय ऊर्जा का अपव्यय कर रहे हैं। अवाम की सक्रियता ही समानता आधारित समाज की संरचना का काम कर सकती है। यह धरती इतना देती है कि कोई व्यक्ति भूखा नहीं हो सकता।

यह बात श्रेष्ठि वर्ग जान ले कि उसके हित में यह है कि वह अपने लालच पर नियंत्रण रखकर खुशहाल देश के निर्माण में सहयोग दें, क्योंकि अगर कोई छूत की बीमारी झोपड़पट्‌टी क्षेत्र में फैलती है तो उन विषाक्त कीटाणुओं को उसके संगमरमरी महल के सशस्त्र चौकीदार रोक नहीं पाएंगे। उनका सुपुत्र तेज गति से कार चलाता हुआ फुटपाथ पर सोने वालों को कुचलता है और पुलिस को रिश्वत देकर वे अपने सुपुत्र को बचा लेते हैं परंतु साहेान यह समझ लें कि कीटाणु रिश्वत नहीं लेते और अभी तक कोई ऐसा महल नहीं बना है, जिसका लौहकपाट इन कीटाणुओं को रोक सके। उनके जलसघरों के बाहर एक पूरा समाज असमानता से पीड़ित खड़ा है।

याद आती है साहिर लुधियानवी की 'फिर सुबह होगी' के लिए लिखी पंक्तियां, 'जेबे हैं अपनी खाली, क्यों देता वरना गाली, ये पासबां हमारा, ये संतरी हमारा… जितनी भी बिल्डिंगें थीं सेठों ने बांट ली है, फुटपाथ है आशियां हमारा।'