रोक लो रूठ कर उनको जाने न दो / ममता व्यास
पिछले दिनों, नोएडा (उत्तरप्रदेश) की दो बहनों अनुराधा और सोनाली को पुलिस वालों ने खुद उनके घर से मुक्त कराया भला अपने घर में भी कोई कैसे कैद होता है, लेकिन हाँ उन दोनो अभागी बहनों को मरने जैसी हालत में घर से निकाला गया जिसमे से एक बहन की मौत हो चुकी है और दूसरी गंभीर हालत में है।
उपरी तौर पर तो यही कहते पाए गए लोग की दोनों पागल थी और किसे फु र्सत है किसी के पागलपन में हिस्सेदार होने की।
सच है हम समझदारों की दुनिया में किसी पागल या रोगी की क्या अहमियत? दोनों बहने अवसाद की शिकार थी और आठ महीनों से दुनिया से बेखबर थी। उस घर में जहां वे कभी चहकती, महकती और फु दकती थीं जिसे उनके पिता लेफ्टिनेंट कर्नल ने बनवाया था पांच लोगों के हंसते खेलते परिवार की ये बेटियाँ, एक बहादुर पिता की बेटियाँ आखिर एक ऐसी बीमारी से ग्रस्त हो गयी जिसे डॉक्टर रोयर्ड पैरानोइड कह रहे है जिसमें रोगी हमेशा भयभीत और असुरक्षित महसूस करता है।
महिला आयोग जो भी कहे, प्रशासनिक जाँच कुछ भी कहे और डॉक्टर्स की रिपोर्ट कुछ भी कहे मुझे तो लगता है हमने और हमारे समाज ने ही उन्हें मारा है अवसाद या कोई भी मानसिक बीमारी की वजह क्या है? और क्या इलाज है इनका? हर मानसिक बीमारी की वजह तनाव और डर ही होता है और हर बीमारी का इलाज अपनापन और स्नेह ही होता है।
माता-पिता की मौत और भाई की बेरुखी से दुखी बहनों ने खुद को अपने घर में ही कैद कर लिया, सोचती हूँ, जो पिता खुद सेना में थे उन्होंने बेटियों को इस बेरहम दुनिया से लडऩे का पाठ क्यों नहीं पढ़ाया? जिस भाई की कलाई पर बरसों बरस जिन बहनों ने राखी का पवित्र धागा बांधा और भाई ने सर पर हाथ रख कर जि़ंदगी भर की सुरक्षा का वचन दिया उस भाई की बहने आज इतनी भयभीत और असुरक्षित और कमजोर कैसे हो गयी?
अनुराधा और सोनाली जब स्वस्थ थी और नौकरी करती थी तब तो उनके दोस्त जरूर उनके साथ होंगे, उन्होंने भी इतने सालों में उनकी कोई खबर नहीं ली? क्या स्वस्थ सुन्दर और हंसते व्यक्ति से ही प्रेम या दोस्ती निभाई जाती है जो अस्वस्थ है रोगी है या हमारी जरूरत का नहीं तो हम उसे भुला दे?
आस-पड़ोस वाले भी इतने संवेदन शून्य की अपने-अपने घरों में चैन से सोते रहे और पास की दीवारों से सिसकियाँ आती रहीं, हम क्रिकेट के जूनून में रातों को सड़कों पर सारी रात नाच सकते हैं, भ्रष्टाचार के विरोध में मोमबत्तियां जलाने का ढोंग कर सकते हैं। हम इतने समझदार हैं कि क्रिकेट को धर्म और खिलाडिय़ों को भगवान मानते हैं हम खेल में हारने पर दुखी होकर और जीतने पर खुश होकर अपनी जान दे भी सकते है और ले भी सकते है फेसबुक पर घंटों किसी बेकार से मुद्दे पर लम्बी बहस कर सकते हैं, लेकिन किसी अपने का दर्द या पराये का दुख हमें विचलित नहीं करता।
दरअसल हमने पत्थरों के बड़े-बड़े मकानों की दुनिया बसाई है जिसके बड़े-बड़े दरवाजों के अन्दर हम दुनिया के दुख दर्द से बेखबर हैं। हमें दीवार केउस पार से सिसकियों की आवाज सुनाई नहीं देती, हम रास्तों पर भी चलते है तो कारों के शीशे चढ़ाकर ताकि आसपास की गंदगी, सड़ांध से, दर्द से, दुख से, हम खुद को बचा सके, हम अपने आसपास हमेशा सुन्दर, सुहाना ही देखना चाहते हैं।
जब सभी को सुख, खुशी और खूबसूरती चाहिए तो दर्द, दुख और विष कौन पीये? कौन पौंछे उन ज़ख्मों से रिसते मवादों को? कौन प्यार करे उनसे जो प्यार के लायक नहीं, जो प्यार के लायक हैं और जिन्हें प्यार की जरूरत नहीं सभी उनसे प्यार क्यों करते हैं? जो सचमुच प्रेम के हकदार हैं और प्रेम के लायक भी नहीं हमें उनसे भी प्यार करना होगा तभी प्रेम सार्थक होगा, दोस्ती सफ ल होगी, उन टूटे दिलों की मरम्मत कौन करेगा? उजड़ी बस्तियों को कौन बसाएगा? उन रिश्तों की खोज खबर भी लेनी होगी जो हमने बना तो लिए, लेकिन जरूरत न होने पर उन्हें खूंटी पर टांग दिया, पुराने कोट की तरह...
क्यों कर कोई अनुराधा और सोनाली पल-पल मौत को गले लगाती रही? क्या चाह होगी उनकी? किसी से, सिर्फ प्यार, अपनापन और स्नेह ही ना... दो बोल भी हम किसी को न दे सके तो हमसे बड़ा कंगाल कौन होगा?
किसी की रो-रो कर सूज गयी आँखों में प्यार की चमक क्यों नहीं भर देते हम? किसी के दर्द से सूखे होठों पर इक प्यारी मुस्कान क्यों नहीं धर देते हम? क्यों कोई इतनी खूबसूरत दुनिया से रूठ कर चला जाये और हम उसे पागल, अवसादी, रोगी कहकर पल्ला झाड़ ले, क्यों कोई बिन प्यार के बिन स्नेह के रीता-रीता सा चला जाये? चलिए किसी के सूनेपन को अपनेपन से बदल ले, और दर्द को खुशी से, रोक ले रूठ कर जाने वालों को जो ये चले गए तो फिर नहीं आयेंगे लौट कर, ये रूठे तो धरती से प्यार विश्वास और अपनापन भी रूठ जाएगा तो-रोक लो, रूठ कर उनको जाने ना दो।