रोग का उपचार या रोगी की मृत्यु का विचार / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 08 फरवरी 2020
चीन रहस्यमय बीमारी कोरोना की गिरफ्त में है। इसी बीच, एक खबर आई, जो बाद में झूठी साबित हुई। खबर में कहा गया था कि चीन के हुक्मरान यह भयावह विचार कर रहे हैं कि बीमारी से ग्रस्त लोगों को मार दिया जाए। ऐसा विचार आना भी भयानक है। क्योंकि, यह मर्सी किलिंग या इच्छा मृत्यु नहीं है, जिसमे मरीज स्वयं अपने आप को समाप्त करने की प्रार्थना करता है। भले यह खबर झूठी हो, लेकिन चीन की तानाशाह व्यवस्था एकबारगी इसके सच होने का अहसास देती है। यूरोप के कुछ देशों में इच्छा मृत्यु वैध है। डॉक्टरों का दल परीक्षण करके प्रमाण-पत्र देता है कि रोग लाइलाज है और महंगा इलाज जारी रखने पर पूरा परिवार ही दिवालिया हो जाएगा। लाइलाज रोगी के इलाज की प्रक्रिया के लिए परिवार को भूख से मरने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता। यह संभव है कि चीन की तानाशाह व्यवस्था अपने वैचारिक विरोधियों को मरीज होने के प्रमाण-पत्र देकर उन्हें भी मार दे। अगर शाहीन बाग चीन में होता तो सभी हड़तालियों को लाइलाज रोगी करार दे दिया जाता और उन्हें मार दिया जाता। भारत के चीन की तरह नहीं होने का मतलब हुक्मरानों को सालता होगा?
कल्पना करें कि अमेरिका की प्रयोगशाला में कोई जर्मन डॉक्टर कोरोना का इलाज खोज ले और अमेरिका, चीन को वह नुस्खा दे दे या दवा भेजकर चीन के अवाम के प्राणों की रक्षा करे। क्या कोरोना संकट इस तरह मानवीय करुणा प्रवाहित कर सकता है? इस आदर्श को डटोपिअन ही माना जा सकता है। संकीर्णता के दौर में यह संभव नहीं है। माओ से तुंग और चाउ इन लाई के दौर में अपने ही देश के नागरिकों की सामूहिक हत्या का घिनौना विचार पैदा ही नहीं होता। जॉन एफ कैनेडी बिना शर्त दवाएं चीन को दे देते। डॉक्टर कोटनीस जैसा व्यक्ति फिर चीन पहुंच जाता। एक अमेरिकन फिल्म का नाम था ‘दे शूट हॉर्सेस, डोंट दे’। रेस में दौड़ने वाला घोड़ा दुर्घटना के कारण लंगड़ा हो जाता है तो उसे गोली मार दी जाती है। उपयोगिता नहीं तो जीवन ही नहीं, एक बर्बर विचार है। इस तरह तो उम्रदराज लोगों को भी मार दिया जाना चाहिए। स्मरण करना होगा कि जो लोग कुछ नहीं करते दिखाई देते हैं, वे भी बहुत कुछ करते हैं। निश्चल सा बैठा कवि क्या कुछ रच रहा है, इसकी कल्पना कैसे करेंगे? बैठे-ठाले लोगों ने भी सृजन किया है। वृक्ष के नीचे सुस्ता रहे महान व्यक्ति ने फल नीचे गिरता देखा और गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत खोज लिया। बाथ टब में सुस्ता रहे व्यक्ति ने भी विलक्षण खोज कर ली। चीन में रोग फैलने का प्रभाव सभी देशों पर पड़ा है। आर्थिक मंदी की गति बढ़ गई है। चीन का निर्यात ठप हो गया है। चीन से स्वदेश लौटे लोगों को क्वारान्टाइन में रखा जा रहा है, पंछी एक पिंजड़े से मुक्त होकर दूसरे में आ गया है।
सबसे अहम बात यह है कि आम आदमी को विचार करना चाहिए कि वो कैसे हुक्मरान चुन रहे हैं? धर्मवीर भारती की रचना प्रम्थ्युगाथा में सूली पर लटके प्रम्थ्यु को सबसे अधिक दुख अवाम के ताली बजाने से होता है। हृदयहीन तमाशबीन जनता एक हाथ से भी ताली बजा सकती है, जैसे संसद में सदस्य ताली बजाने के बदले टेबल थपथपाते हैं। सदस्य जानते हैं कि उन पर निगाह रखी जा रही है और हुक्मरान का मस्तिष्क एक कैमरा है, जिसमें असंपादित रीलों का ढेर लगा है। समय की झाड़ू भी इस कूड़े को बुहार नहीं सकती।
ऋतु चक्र के परिवर्तन से नई बीमारियां सामने आ रही हैं। अनगिनत वृक्ष लगाकर ही संतुलन बनाया जा सकता है। अमेरिकन फिल्म ‘अवतार’ में अन्य ग्रह पर गए लोग वहां के वृक्ष काटते दिखाए गए हैं, क्योंकि उन्हें अपनी प्रयोगशाला बनाने के लिए समतल जमीन चाहिए। एक सदस्य कहता है कि इस ग्रह पर काटे गए वृक्ष की पीड़ा धरती पर लगे वृक्षों को हो रही होगी। गोयाकि ब्रह्मांड के सारे वृक्षों के बीच हमदर्दी का रिश्ता है। यह कितने दुख की बात है कि इस हमदर्दी के भाव का मनुष्यों में अभाव हो रहा है। वृक्ष से याद आती है निदा फ़ाज़ली की पंक्तियां- ‘चीखे घर के द्वार की लकड़ी हर बरसात, कट कर भी मरते नहीं पेड़ों में दिन-रात...’। ग़ालिब साहब हमेशा की तरह आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहे थे। उन्होंने देखा कि उनके मकान का रंग-रोगन नहीं किए जाने से दीवार पर काई जम गई है। गालिब का अंदाज ए बयां देखिए- ‘उग रहा है दरो दीवार पर सब्जा, हम बयाबां में हैं और घर में बहार आई है।’