रोटी नहीं तो क्या लोग केक और पेस्ट्री खाएंगे? / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 23 दिसम्बर 2020
18वीं सदी में मजदूर और किसानों ने फ्रांस के राजा-रानी और सामंतवादी व्यवस्था के खिलाफ सशस्त्र क्रांति कर दी। क्रांति की पृष्ठभूमि पर उपन्यास लिखे गए, कविताएं रची गईं। लतीफागोई हर कालखंड में सक्रिय रहती है। एक लतीफा इस तरह है कि फ्रांस की रानी मैरी एंटोनेट से पूछा गया कि किसान खेती नहीं करें और अनाज उपजाना बंद कर दें तो लोग क्या खाएंगे? तथाकथित तौर पर रानी ने कहा रोटी नहीं तो लोग केक खाएं, पेस्ट्री खाएं। इंदौर की महारानी अहिल्याबाई से उनकी बाल अवस्था में पूछा गया कि जीवन के लिए क्या सर्वाधिक उपयोगी है तो उनका उत्तर था कि अनाज सबसे अधिक आवश्यक है।
फ्रांस की क्रांति की पृष्ठभूमि पर चार्ल्स डिकेंस के उपन्यास ‘ए टेल ऑफ टू सिटीज’ महत्वपूर्ण माना जाता है। मोम के पुतले बनाने में माहिर मैडम तुसाद के बनाए हुए पुतले सजीव लगते थे। फ्रांस की क्रांति के समय उन्हें भी लंदन भागना पड़ा। मैडम तुसाद म्युजियम में सलमान खान, ऐश्वर्या राय और अमिताभ बच्चन के मोम के पुतले भी हैं। क्या म्यूजियम के बंद हो जाने के बाद, ये पुतले बतियाते होंगे? किसी पुतले से आंख बचाकर कनखियों से एक-दूसरे से प्रणय निवेदन करते होंगे? मोम के पुतलों से प्रेरित आर. के. नैय्यर ने ‘गीता मेरा नाम’ फिल्म बनाई थी। फ्रांस की क्रांति के बाद लगभग 4 हजार लोगों के सिर धड़ से अलग किए गए। इन पर सामंतवाद का साथ देने का आरोप था। वर्षों बाद ज्ञात हुआ कि इनमें अधिकांश निर्दोष थे। मसलन एक बार क्वीन मैरी, बग्घी में यात्रा कर रही थीं। तब रानी का स्कार्फ़ उड़कर एक आदमी के गले लग गया। उसने स्कार्फ़ को अपने घर में यादगार के तौर पर रखा था। उसे इसी अपराध में जनता चौक पर मार दिया गया। कहावत है कि गेहूं के साथ घुन भी पिस जाता है। आज तो घुन के साथ गेहूं पीसा जा रहा है। अनाज उपजाने वाले ठंड के कारण अपने आंदोलन में मर रहे हैं।
किसान धरती का बिछौना बनाकर आकाश को चादर की तरह ओढ़े हुए सो रहा है। शायद व्यवस्था का ख्याल है कि अनाज नहीं होने पर अवाम केक और पेस्ट्री खाए। इन्हें जीएसटी टैक्स से मुक्त रखा जाएगा। यह चिंताजनक है कि विदेशों में किसान आंदोलन के प्रति सहानुभूति है परंतु अन्य प्रांतों के किसान सूने खलिहानों में ऊंघ रहे हैं।
राजनीतिक विचारधारा के कारण पति-पत्नी तलाक ले रहे हैं। यह संभव है शिशु के जन्म के समय उसकी कुंडली बनाते समय ही एक ग्रह स्थान में उसके राजनीतिक विचार को भी लिख दिया जाए। याद आता है ‘पीके’ का वह सीन कि मनुष्य के शरीर पर ठप्पा दिखाइए। ज्ञातव्य है कि फ्रांस की क्रांति के बाद ही आधुनिक गणतंत्र की अवधारणा का जन्म हुआ। गुरुवर चाणक्य के दौर में भी गणतंत्र का एक मॉडल था। वर्तमान में हमारा गणतंत्र मानव इतिहास में दर्ज होगा कि बाजार के नियंत्रण में गणतंत्र का कौन सा मॉडल अपनाया गया था। शिक्षा क्षेत्र में मॉयथोलॉजी एक विषय बन गया है। जिन्होंने शल्य क्रिया शास्त्र नहीं पढ़ा उन्हें शल्यक्रिया की कानूनी इजाज़त मिल चुकी है। अब मनुष्य की एक पेंटिंग बनाई जा सकती है कि मानव आकृति में मांस पेशियों की जगह कैप्सूल और टेबलेट हैं और शिराओं में रक्त की जगह सिरप दौड़ रहा है। मस्तिष्क की जगह खाली रखी गई है कि चाहे कुछ भी भर लो।