रोम्पुई अकिहितो / शायक आलोक
पूर्वी समंदर के किनारे बसे उस बंदरगाह शहर में रोम्पुई नाम की एक लड़की एक रोज पानी में बहकर आई। पहले तो उसे समंदर का ईनाम समझा गया और उस बंदरगाह शहर के सबसे बहादुर जहाजी अकिहितो ने उसपर दावा भी ठोंकदिया। लेकिन जल्द ही तय यह भी हो गया कि रोम्पुई की सुन्दरता और अकिहितो की बहादुरी में जीत रोम्पुई की होनी है। रोम्पुई की भाषा उस द्वीप की भाषा थी जिसके किस्से तो सुने थे अकिहितो ने पर उस द्वीप के अनुसंधान का साहसनहीं था उसमे। रोम्पुई को उस शहर के व्यापारी शासक की पनाह में रखा गया। रोम्पुई अक्सर चुप ही रहती और हाथ के इशारे से ही संवाद कर पाती। राजा के पनाहगाह में दो बरस बसर के बाद रोम्पुई के विवाह के लिए स्वयंवर का विचारकिया गया। शर्त यह रखी गयी कि जो व्यक्ति रोम्पुई से उसकी भाषा में बात करेगा वही रोम्पुई का वरण करेगा। बहुत से जहाजी आये जिन्होंने कई अज्ञात भाषाओं के इस्तेमाल से रोम्पुई से संवाद की कोशिश की किन्तु रोम्पुई जवाब न देसकी। इन दो वर्षों में भी रोम्पुई का ख्याल अपने मन से नहीं निकाल सके अकिहितो की जब बारी आई तो पहले तो अकिहितो रोम्पुई की आँखों में झांकता रहा और फिर उसने तीन शब्द कहे-
“सेमतु है मप्रे”
रोम्पुई चुप ही थी तब तक अकिहितो की आँखों में झांकती हुई। अकिहितो ने फिर दुहराया - “सेमतु है मप्रे” ... रोम्पुई अब भी चुप रही। अकिहितो हार गया। राजा के सैनिक उसे खींचकर हटाने लगे। आंसू भरी आँखों वाला अकिहितो फिर जोर से चिल्लाया - “ सेमतु है मप्रे”.. और लौट कर जाने लगा। रोम्पुई अचानक अकिहितो के शब्द दुहराने लगी.. बार बार लगातार.. लोगों में उत्तेजना फ़ैल गयी। फिर तो बस रोम्पुई की आँखों में झांकता अकिहितो बस वह अनजानी भाषा बोलता ही चला औरअकिहितो की आँखों में उतरती रोम्पुई उसका जवाब देती चली गयी। अकिहितो जीत गया और उसका रोम्पुई से विवाह हो गया। यह जीत आँखों की भाषा की जीत थी वरना अकिहितो ने तो बस अपनी ही भाषा के शब्द के अक्षर उल्टे करदिए थे। कहते हैं कि आज भी उस शहर में आँखों के रास्ते होने वाले प्रेम के पहले संवाद को 'अकिहितो' और प्रेयसी द्वारा प्रेम निवेदन की स्वीकारोक्ति को 'रोम्पुई' कहा जाता है।