रोल / दीपक मशाल
उसके कंधे पे हाथ रख कर पहली बार इतनी आत्मीयता से बात करते हुए उस सुपर स्टार पुत्र ने वीरेंदर, जो कि उसका ड्राइवर था, को अपनी परेशानी बताते हुए कहा-
“यार वीरेंदर, मुझे पहली बार किसी बहुत बड़े डायरेक्टर के साथ काम करने का मौका मिला है।”
“ये तो बड़ी खुशी की बात है सर” अपनी खुशी ज़ाहिर करते हुए वीरेंदर बोला
“लेकिन रोल कुछ ऐसा है कि वो तेरी मदद के बिना पूरा नहीं हो सकता।” अपनी बात को आगे बढ़ाता वो नया 'हीरो' बोला।
“वो कैसे सर।।” अब वीरेंदर उस अचानक उमड़े प्रेम का कारण कुछ समझ रहा था
“मुझे एक बड़े स्टार के ड्राइवर का रोल मिला है जो कि कहानी का मुख्य चरित्र है। एक तुम्हारे जैसे गरीब, मजबूर आदमी का रोल है।। इसके लिए मुझे तुम्हारी दिनचर्या। उठना-बैठना, रहन-सहन समझना होगा बस्स। कुछ दिन के लिए” अपनी मजबूरी बताते हुए और वीरेंदर की जेब में १०००-१००० के १० करारे नोट घुसेड़ता हुआ वो तथाकथित हीरो बोला।
“लेकिन सर ये तो।।” अपनी स्वामिभक्ति दिखाने के लिए रुपये लेने से इंकार करता वो कुछ बोलना चाहता था।।
“अबे रख ले चुपचाप साले। अब ज्यादा मुँह मत खोल वर्ना इतना भी नहीं देता । वो तो मेरी मजबूरी है आज तक किसी 'स्लम डॉग' की लाइफ को करीब से नहीं देखा। इसलिए। वर्ना मैं तुझ जैसों के मुँह नहीं लगता।।” अचानक ड्राइवर को उसकी औकात बताते हुए उसने झिड़क दिया।
होंठ तो चुप रह गए लेकिन अब वीरेंदर का दिमाग अपने आप से बोल रहा था 'अगर मैंने सब सच बता दिया तो क्या ये आदमी मेरा रोल अदा कर पायेगा परदे पर???'