रोशनी के पांव में ये बेड़ियां कैसी? / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
रोशनी के पांव में ये बेड़ियां कैसी?
प्रकाशन तिथि : 05 जून 2019


अमिताभ बच्चन और तापसी पन्नू अभिनीत शूजीत सरकार की फिल्म 'पिंक' में बचाव पक्ष के वकील अपनी ही मुवक्किल से पूछते हैं कि जिस दिन अपराध हुआ उस दिन वह कौन से कपड़े पहनी थी। वह जवाब देती है कि वह साधारण जींस और टॉप पहने थी। वकील साहब कहते हैं कि इन कपड़ों के कारण ही दुष्कर्मी को लगा कि कन्या चालू है। गोयाकि कपड़े तय करते हैं कि पहनने वाले का चरित्र कैसा है। ज्ञातव्य है कि मुकदमे के जज के सामने उसका नाम लिखा है 'सत्यजीत'। आभास होता है मानो बंगाली फिल्मकार अपने मानस गुरु सत्यजीत राय को आदरांजलि भी दे रहा है। हर बंगाली के अवचेतन में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर और महान नजरूल इस्लाम हमेशा मौजूद रहते हैं और इसी बहाने वह अमीर खुसरो और कबीर से भी जुड़ जाता है। इस तरह व्यक्तिगत प्रतिभा अपनी परम्परा से प्रेरणा लेते हुए अपने व्यक्तिगत योगदान से उसी परम्परा को ही मजबूत करते हुए आगे चलती है।

राज कपूर की 'श्री 420' का एक दृश्य है कि नायक लॉन्ड्री में काम करता है। शीशे के शोकेस में हैंगर पर लटके एक सूट के पीछे खड़ा होता है तो सड़क से गुजर रही नायिका को लगता है कि वह सूट पहनकर खड़ा है। वह मुस्कुराते हुए आगे बढ़ती है तो नायक उससे मिलता है। वह अपने फटे-पुराने कपड़े पहना है। नायिका कहती है कि कुछ क्षण पूर्व वह सूट पहने था और अब फटेहाल कपड़ों में नज़र आ रहा है। नायक कहता है कि खा गई न धोखा। मनुष्य कपड़े पहनता है, कपड़े मनुष्य को धारण नहीं करते। ज्ञातव्य है कि चार्ली चैपलिन तंग जैकेट और ढीली पतलून पहने हुए नज़र आते हैं। यह तंग जैकेट उनके सीने में सुलगते अरमानों का प्रतीक है और ढीली पतलून उनकी खस्ता आर्थिक हालत का परिचय देती है।

फिल्मों में पात्रों द्वारा पहनी पोशाक बड़े विवेक के साथ बनाई जाती है। ज्ञातव्य है कि भानु अथैया को रिचर्ड एटनबरो की फिल्म 'गांधी' के लिए वस्त्र विन्यास का ऑस्कर पुरस्कार मिला था। महात्मा गांधी ने भी भारत आते ही यह समझ लिया था कि सूट-बूट पहनकर वे आम भारतीय को प्रेरित व प्रभावित नहीं कर पाएंगे। इसीलिए उन्होंने एक सादा सूती वस्त्र धारण किया, जो बदन को पूरी तरह ढंक भी नहीं पाने के कारण क्षमा याचना करता-सा नज़र आता है। महात्मा गांधी की लोकप्रियता के रसायन का गहराई से अध्ययन किया जाना चाहिए।

विश्राम बेडेकर 'रुस्तम सोहराब' बना रहे थे। लंदन में अध्ययन करने वाला उनका पुत्र छुट्टियों में घर आया था। उसने सेट पर पात्रों की पोशाक देखकर अपने पिता से पूछा कि वे किस कालखंड की फिल्म बना रहे हैं? कुछ पात्र यूनानी वस्त्र पहने हैं, कुछ ने मुगल कालीन वस्त्र धारण किए हैं। विश्राम बेडेकर ने जवाब दिया कि यह उनके बुरे कालखंड की फिल्म है, जिसमें अन्य फिल्मकारों से वस्त्र उधार मांगे गए हैं।

ज्ञातव्य है कि मगनलाल छगनलाल ड्रेस वाला ही लंबे अरसे तक फिल्मों में जूनियर कलाकारों की भीड़ के लिए वस्त्र जुगाड़ते रहे हैं। बाद में सितारों के अपने ड्रेस डिजाइनर होने लगे। 'प्रेमरोग' में अनाथ नायक अपने पुजारी मामा के आश्रय में रहता है। ऋषि कपूर के ड्रेस डिज़ाइनर कचिन्स टेलर्स ने कुर्ता-पाजामा भेजा। राज कपूर ने बिल देखा और आश्चर्य हुआ कि गरीब पात्र का साधारण कुर्ता-पजामा इतना महंगा! उन्होंने तुरंत यह फिजूलखर्च रोका। उनका अपना वस्त्र विभाग स्टूडियो में ही कपड़े सीता था। खबर है कि बंगाल से लोकसभा चुनाव जीतकर आईं दो महिलाओं ने साधारण जीन्स पहनकर लोकसभा में प्रवेश किया तो इस पर बवाल मच गया कि सांसद को यह शोभा नहीं देता गोयाकि आज भी वस्त्र के आधार पर चरित्र परिभाषित किया जा रहा है। कुमार अंबुज की ताजा कविता की कुछ पंक्तियां इस तरह हैं, 'मुझे हर एक पर शक है/ यह मेरी बीमारी है/ गलत चीजें अकसर पवित्र किस्म की अश्लीलता से शुरू होती हैं… मुझे हर अच्छे-बुरे आदमी पर शक है/ मैं उन्हें भी नहीं बख्श पा रहा हूं जो मेरे साथ खड़े दिखते हैं/ कि जब चीजें पवित्र अश्लीलता से शुरू होती हैं तो फिर वे चली जाती हैं अश्लील पवित्रताओं के सुदूर किनारे तक।' लेख का शीर्षक 'पिंक' फिल्म के गीत की एक पंक्ति है।