रो–मान्स / अशोक भाटिया

Gadya Kosh से
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वह देश का प्रसिद्ध शहर था। उसमें आकाश को छूती इमारते थीं, सैलानियों का सैलाब था, पंक्तिबद्ध राक्षसनुमा होटल था। ऐसी एक सरकारी इमारत की चौथी मंजि़ल पर एक बड़ा कमरा था। उसमें एक परिवार- माँ, बेटा राजेश व बहू और उनके दो बच्चे रहते थे। कमरे के एक कोने में रसोई थी। और बाकी तीन कोनों में तीन जोड़ियाँ प्राणी और उनका सामान।

पति - पत्नी क्लर्क थे। सुबह उठते ही अपनी चारपाइयाँ निकालकर बाहरी दीवार से लटका देते। उनके दफ्तर जाने तक घर में हाहाकार मची रहती। रात को थक-हारकर जब सोने लगते तो और भी मुश्किल खड़ी हो जाती। राजेश और उसकी पत्नी को अजनबियों की तरह सोना पड़ता। अभी मुश्किल से महीना बीता होगा, पर उन्हें लग रहा था जैसे एक साल से रोमान्स नहीं किया।

कल रात उनका मिलने का बड़ा मन किया। बिट्टू ने जब स्कूल का होम- वर्क करके बत्ती बुझाई, तो साढ़े ग्यारह से ऊपर का टाइम हो गया था। दोनों लेटे थे, पर जागे हुए थे। करवट लेते हुए कनखियों से एक-दूसरे को देखना और लाचारी में आँखें बन्द कर लेना जैसे उनकी रात्रिचर्या का अनिवार्य अंग बन गया था। दोनों ने तय कर रखा था कि जिस दिन जिसका भी रोमान्स का मन हो, वह सोने से पहले हलका काजल डालकर आए। फिर हालात देखकर निपट लेंगे। लेकिन काजल डालना भी पिछली कई बार से व्यर्थ जा रहा था।

आज जैसे दोनों ने उदासी दूर करने की ठान ली थी। आज दोनों ने ही काजल डाल रखा था। राजेश उठा और दोनों कोनों का जायजा लेते हुए पानी पीकर लौट आया। दोनों कोने सो रहे थे।

राजेश ने पत्नी को स्पर्श करने के बहाने बायाँ हाथ आगे बढ़ाया। प्रत्युत्तर पाकर वह एक कदम और आगे बढ़ने को था कि माँ के खाँसने की आवाज़ आई। वह सहमकर पीछे हट गया। गर्म साँस छोड़ते हुए उसने करवट ली। वह बेचैन था। थोड़ी देर में उसने फिर कोशिश करने का यत्न किया पर तभी बारह बजे का घण्टा बज उठा।

संयम और असंयम के बीच झूलते हुए राजेश का सिर चकरा रहा था। उसने पत्नी को संकेत कर रसोई में चलने को कहा। लेकिन रसोई में दरवाजा नहीं है और फिर हर कोई पानी पीने रसोई में ही जाता है। इसलिए थकी-माँदी पत्नी ने विवश होकर इन्कार में सिर हिलाया। उसे हालाँकि राजेश पर तरस आ रहा था। राजेश का मन चिड़चिड़ा हो रहा था। उसकी देह की नसें मानो चटख रही थीं।

इस बार उसने चादर को थोड़ा दूसरी चारपाई तक फैलाकर हाथ बढ़ा दिया। पत्नी बिलकुल नहीं हिली। राजेश ने सोचा, अब उमंग को परवान चढ़ा लेना चाहिए।

वह धीरे-से उठकर बैठा। आश्वस्त होने के लिए उसने दोनों ओर नज़र दौड़ाई। दाएँ कोने में चारपाई पर पिताजी बैठे हुए थे। राजेश सकपका गया। उसकी आँखों से मानो चिन्गारियाँ निकल रही थीं। क्या करे? तभी पिताजी बोले, ‘‘बेटा, नींद उचाट हो गई थी।‘‘

राजेश ने कनखियों से पत्नी को देखा। पत्नी की आँखें और काजल-दोनों कुछ कह रहे थे। राजेश बिना कुछ कहे रसोई में गया और दो गिलास पानी गटक गया। फिर उसने काजल की डिबिया निकाली और कूड़ेदान में जाकर जोर से दे मारी।