लंगोट / पद्मजा शर्मा
मैं आज तक नहीं समझ पाई कि वह चलाकर मुझसे लड़ता क्यों है। मुझसे चिढ़ता क्यों है। उसे न मेरे पहने कपड़े पसंद आते हैं। न मेरी कही गयी कोई बात। न मेरे साथ कहीं बाहर आना जाना भाता है। न ही साथ में बैठकर कोई पिक्चर देखना सुहाता है। वह मुझसे लडऩे के बहाने ढूँढ़ता है। आज ही की बात लो। मैंने उसे दो तीन बार फोन किए. एक बार उसने उठाया नहीं। दूसरी बार नेटवर्क व्यस्त बता रहा था। तीसरी बार उसने काट दिया।
बेटी कॉलेज की छुट्टियों में घर आ रही है। उसके लिए टिकेट बनवानी है। भाई साहब से टिकेट के लिए कहा तो वे बोले बेटी का आई डी प्रूफ दो जो उसके पास भी हो। आजकल ट्रेनों की टिकट लेते समय आई डी प्रूफ ज़रूरी कर दिया है और यात्री के पास वही आई डी प्रूफ होना चाहिए जो टिकेट बनाते समय काम आया हो। मैंने कहा ऐसा आई डी प्रूफ तो ड्राइविंग लाइसेंस ही हो सकता है। उन्होंने कहा वे पन्द्रह मिनट बाद फोन करेंगे। मैं निकालकर रखूँ।
मैंने घर में सब जगहों पर देखा। लेकिन लाइसेंस मिला नहीं।
तब उसे फोन कर रही थी। यह समय सुबह के नौ से ग्यारह के बीच का था। थक हार कर चौथी बार फोन किया। उसने उठा लिया। मैंने कहा-'अरे भई कभी पलटकर फोन भी कर भी लिया करो। कभी अर्जेंट काम हो सकता है।'
चिढ़ते हुए वह बोला-'तुम तो घर में खाली रहती हो। कोई काम है नहीं। अपने जैसा ही खाली और फ्री सबको समझती हो। मैं व्यस्त हूँ। कमाकर लाना होता है। तुम्हारा पेट भरना होता है। नहीं कमाऊंगा तो खाओगी क्या? पर मैं तुमसे माथा क्यों लगा रहा हूँ। तुम बुद्धिहीन हो। बोलो क्या बात है? समय बर्बाद मत करो। जल्दी बताओ'
मैंने सोचा, मैं उसे कहूं-मैं भी पढ़ी लिखी हूँ, तुम्हारे बराबर। तुम्हारे ही कहने पर जॉब नहीं कर रही हूँ। बात-बात पर यूं बुद्धिहीन कहते हो शोभा नहीं देता। गुस्सा आता है मुझे भी। तुम्हारे प्रति सम्मान धीरे-धीरे कम होता है। पर जाहिर में उसे तसल्ली से सारी बात बताई तो उसने कहा-'मेरी अलमारी के निचले खाने में बड़ा भूरा बैग रखा है। उसके भीतर एक छोटा काला बैग है। उसमें उसका ड्राइविंग लाइसेंस रखा है।'
मैंने कहा-'मैं वह काले भूरे सब बैग देख चुकी, नहीं मिला।'
'बिना देखे ही कह रही लगती हो। ज़रा मेहनत करो। शरीर को कुछ कष्ट दो। ढूँढ़ो, मिल जाएगा।' उसने गुस्से और व्यंग में कहा।
उसकी बातों से जाहिर हो रहा था जैसे मैं ऐश-आराम में दिन बिता रही हूँ। कुछ काम नहीं करती। जबकि मैं घर का सारा काम करती हूँ। फिर भी मैंने सामान्य रूप से जवाब दिया-'भई, मैंने बैग की एक-एक चीज, हर कोना-कोपचा, जेब, चेन सब देख ली हैं। लाइसेंस वहाँ नहीं है। वैसे भी अब तो भाई साहब का फोन नहीं लग रहा है। देखो आता है तो बात करती हूँ और हाँ, मुझे उसका आधार कार्ड मिल गया है।'
'तुम्हें पता भी है क्या ज़रूरत का सामान है और कहाँ रखा है। तुम्हें पता रखना चाहिए पर नहीं रखती, मैं सब चीजें संभालकर रखता हूँ। कुछ सीखो मुझसे। वरना यूं ही किसी दिन धोखा खा जाओगी। अपने में गाफिल मत रहो।'
इस तरह उसने जोर-जोर से चिल्लाना शुरू किया तो मैं भी कुछ कठोर होकर बोली-'वह पता तो आपको भी नहीं है। कभी-कभी कोई चीज ध्यान में नहीं आती। भूल हो जाती है पर इसमें इतना चिल्लाने की कहाँ ज़रूरत है। दफ्तर में बैठे लोग क्या सोचेंगे?'
'सोचेंगे बेचारा दुखी है बीवी से और क्या?' कहकर वह फिर दोगुनी चिल्लाहट से बच्चियों पर झपट पड़ा-'छोरियाँ खुद क्यों नहीं करतीं ये काम। ये करती क्या हैं। क्या मैं नौजवान हूँ जो मुझ पर बोझ डालते जाओ. मैं साठ का होने जा रहा हूँ। इनकी भी कोई जिम्मेदारी है। ये लोग अपना काम आप कर क्यों नहीं लेतीं। सारी दुनिया में हांड आएंगी पर काम के वक्त ढीली पड़ जाती हैं।'
'अरे बच्चियों का कोई काम अगर हम कर लेंगे तो क्या बिगड़ जाएगा। अब बुढ़ापे में बच्चियों के ही काम करेंगे। हमारे काम तो ये ही हैं और इन्हीं से ही हैं।'
'एक बात कान खोलकर सुन ले। आज के बाद गलती से भी कभी मुझे बूढ़ा कह दिया तो बहुत बुरा होगा और मैं अब खुलकर अपनी ज़िन्दगी जिऊँगा। मैं अब किसी के काम करने से रहा। तू चाहे तेा करती रहना। तुझे तेरी बेटियाँ बहुत पसंद हैं।'
'तुम्हें कौन पसंद है?' मैंने यूं ही पूछ लिया।
वह एकाएक सांप की तरह फुफकारने लगा-'तेरा इशारा किस तरफ है? तू कहना क्या चाहती है? क्या मैं चरित्रहीन हूँ? तुझे गर्व होना चाहिए कि किसी दूसरी औरत के सामने मेरी लंगोट आज तक नहीं खुली है। मुझसे जलते-चिढ़ते लोग कुछ भी कहें। तुझे तो कम से कम मुझ पर भरोसा होना चाहिए.'
आखिरी वाक्य तक आते-आते उसकी चीख लटक-सी गयी।
मैं हतप्रभ थी। उसका यह चेहरा आज पहली बार देख रही थी। मैंने उसके बारे में किसी से कुछ भी अंट शंट कभी सुना ही नहीं था। फिर वह अपने पर भरोसा करने की बात क्यों कर रहा था।
पर वह जिस सन्दर्भ में भरोसे की बात कर रहा था, वह धीरे-धीरे समझ में आ रही है और कुछ-कुछ उसके गुस्से का कारण भी।