लंदन में मुंबई के सितारों का जमघट / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :04 सितम्बर 2015
आज ऋषि कपूर का 63वां जन्मदिन लंदन में मनाया जा रहा है, जहां उनकी माता, भाई रणधीर कपूर ,पत्नी नीतू और बहनें रितु नंदा तथा रीमा जैन अपनी समुद्र यात्रा के बाद 1 सितंबर को पहुंचे और 7 सितंबर तक वहीं हैं। उनका सुपुत्र रणबीर कपूर भी लंदन 3 तारीख को पहुंच चुका है। उसकी अंतरंग मित्र कटरीना कैफ भी शूटिंग के सिलसिले में वहां मौजूद है। करण जौहर की एक फिल्म जिसमें रणबीर कपूर और ऐश्वर्या राय बच्चन काम कर रहे हैं, की शूटिंग सितंबर के दूसरे हफ्ते से प्रारंभ होने जा रही है, अत: ऐश्वर्या राय की भी मौजूदगी की प्रबल संभावना है। लंदन में सितारों का मिलन नया नहीं है। शाहरुख खान ने तो वर्षों पूर्व वहां एक बहुमंजिला इमारत खरीदी है, जिसमें अपने लिए एक मंजिला छोड़कर शेष सब किराये पर दी हुई हैं। कोई पांच दशक पूर्व शशि कपूर ने भी लंदन में एक फ्लैट खरीदा था, जहां उनके छोटे सुपुत्र करण व उनकी अंग्रेज पत्नी तथा दो बच्चे रहते हैं। करण कपूर नामी प्रेस फोटोग्राफर है।
ज्ञातव्य है कि शशि कपूर की पत्नी जैनिफर कैंडल कपूर का परिवार भी लंदन में रहता है और कैंडल परिवार ने शेक्सपियर के नाटक दुनियाभर की स्कूलों में मंचित किए हैं। बहरहाल, ऋषि कपूर का पहला फिल्म शॉट "श्री 420' के एक गीत के फिल्मांकन में उस पंक्ति पर लिया गया है "हम न रहेंगे, तुम न रहोगे, फिर भी रहेंगी निशानियां।' रेनकोट पहने तीन नन्हे शिशुओं में रणधीर कपूर, बड़ी सुपुत्री रितु नंदा और ऋषि कपूर हैं। अत्यंत आधुनिक होने के साथ ही कपूर परिवार परंपराओं कलात्मक आस्थाओं के प्रति समर्पित भी है। इस परिवार के युवा अपने परिवार की समृद्ध परंपरा से प्रेरित होकर व्यक्तिगत प्रतिभा के निजी योगदान द्वारा उस परंपरा को सशक्त बनाते हुए चलते हैं। फिल्म उद्योग के 102 वर्ष के इतिहास में लगभग 86 वर्षो तक चार पीढ़ियों ने अपना योगदान दिया है और सिलसिला जारी है जैसे कि राज कपूर ने 'जोकर' में अंतिम संवाद में दर्शकों से कहा है "जाइए मत, यह तो इंटरवल है।' यह भी सच है कि तमाशे में दर्शक अभी तक मौजूद हैं और कथा वाचक भी निरंतर सक्रिय है।
राज कपूर के निर्देशन में ऋषि कपूर को जोकर भाग एक के लिए अभिनय का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और उन्हें युवा नायक के रूप में "बॉबी' में प्रस्तुत किया, फिर "प्रेम रोग' में निर्देशित किया और उनके आकल्पन पर उनकी मृत्यु के बाद बनी "हिना' में भी ऋषि नायक रहे। आज की सफलतम फिल्म "बजरंगी भाईजान' भी कुछ हद तक "हिना' जैसी ही है। विदूषक रूप बदलकर इसी तरह आते रहते हैं। ऋषि ने धर्मेंद्र, राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन की लहर के काल खंड में भी सर्वाधिक एकल नायक सफल फिल्मों में काम किया है। उनकी मौजूदगी सलमान, शाहरुख व आमिर के प्रवेश काल तक 'बोल राधा बोल' जैसी सफल फिल्मों में रही। उन्होंने लंबी सफल नायक पारी खेली और अनेक नायिका केंद्रित फिल्मों जैसे 'प्रेम रोग' और 'दामिनी' तथा यश चोपड़ा की 'चांदनी' में भी अपना प्रभाव कायम रखा। नायक की पारी समाप्त होने के बाद कुछ वर्ष विराम का रहा और बाद में 'आ अब लौट चलें' निर्देशित की। उस फिल्म के प्रदर्शन के समय तक अप्रवासी भारतीयों की संख्या बमुश्किल 14 लाख थी, जो अब बढ़कर 1.24 करोड़ हो गई है। अप्रवासियों की इस विराट संख्या ने भारतीय फिल्मों, फैशन, साहित्य और राजनीति में भी हाल ही में परोक्ष रूप से भागीदारी शुरू की है। भारतीय प्रधानमंत्री के विविध देशों में हुए कार्यक्रमों में उपस्थित भीड़ में इनकी मौजूदगी और बजाई गई तालियां देश की खामोशी पर भारी पड़ रही है।
बहरहाल, विगत कुछ वर्षों से ऋषि कपूर चरित्र भूमिकाओं में अपनी नायक दौर की फिल्मों से अधिक धन और सम्मान पा रहे हैं तथा 'दो दूनी चार' जैसी सार्थक फिल्म में केंद्रीय भूमिका भी कर चुके हैं। फसल के बाद की फसल उन्हें रास आ रही है और वे उसके वाजिब अधिकारी भी हैं। भारत सरकार ने उन्हें कभी सम्मान से नवाजा नहीं। उनके बाद आए और कमतर कलाकारों का सम्मानित किया गया परंतु मनोरंजन उद्योग के अखाड़े के इस मिट्टी पकड़ पहलवान को जाने क्यों नज़रअंदाज किया जाता है। मिट्टी पकड़ पहलवान वह होता है जो गिरता तो है परंतु कभी चित नहीं होता। इन 45 वर्षा के अनवरत काम के बाद भी उन्हें पद्मभूषण नहीं दिया गया।उन्होंने कभी प्रचारक नहीं रखा, कभी पुरस्कार के लिए कोई लॉबिंग भी नहीं की। सच है बोलने वाले की मिट्टी बिक जाती है परंतु खामोश के सोने का भी मोल नहीं।