लंपट पतियों का बचाव पत्नियां क्यों करती हैं? / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 07 अगस्त 2014
टीवी के जिंदगी चैनल में एक कहानी दिखाई गई है। अमीर आदमी के दफ्तर से लैपटॉप चोरी हो जाता है और सदैव सावधान रहने वाला मालिक उस युवा कर्मचारी के घर जाता है जिस पर चोरी का संदेह है और उसे लैपटॉप मिल जाता है। परंतु उस युवा की सुंदर विधवा मां उससे प्रार्थना करती है कि उसके पुत्र को जेल नहीं भेजा जाए, भले ही नौकरी से निकाल दें। मालिक बात मान लेता है और कुछ दिनों में युवा का वेतन बढ़ा देता है परंतु इन मेहरबानियों की कीमत वह सुंदर विधवा से लेता है गाेयाकि सौंदर्य और अस्मिता भी सिक्के हैं जिनसे भुगतान किया जा सकता है।
एक शाम महिला का पुत्र अपनी नाइट शिफ्ट में अन्य कर्मचारी की प्रार्थना पर उसके बदले अगली सुबह की शिफ्ट की व्यवस्था के तहत अनपेक्षित रूप से जल्दी घर आता है तो उसकी मां किसी जतन से उसके मालिक को गुप्त रूप से बाहर निकालने में सफल होती है गाेयाकि उसका राज कायम रहता है। अगले दिन उसके पुत्र को पुलिस कत्ल के आरोप में गिरफ्तार कर लेती है क्योंकि नाइट शिफ्ट में ही कत्ल हुआ है और काम की आपसी अदला-बदली रजिस्टर में दर्ज नहीं है। कत्ल के समय वह अपने घर पर था जिसकी गवाही मां और उनका प्रेमी दे सकते हैं। मां की गवाही अमान्य की जाती है। वह दफ्तर के मालिक से प्रार्थना करती है कि उसके निर्दोष पुत्र को बचाये परंतु वह अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा दांव पर नहीं लगा सकता। वह अपने स्वयं के विवाह को नष्ट नहीं करना चाहता तो वह महिला उसे धमकी देती है कि वह उसकी पत्नी से बात करेगी।
घबराया हुआ लंपट पति अपनी पत्नी को सारा सच बता देता है और उसकी न्यायप्रिय पत्नी उस निर्दोष को छुड़ा ले अाती है। वह महिला और पत्नी आमने-सामने हैं, परंतु पत्नी कोई बात नहीं करती। वह पुत्र की मौजूदगी में गरिमा बनाए रखती है क्योंकि उसे लैपटॉप की चोरी और तहकीकात का प्रकरण मालूम है परंतु पति की लंपटता से वह अनभिज्ञ थी। पाकिस्तान की पुलिस धनाड्य लोगों से प्रश्न नहीं पूछती और हमारे यहां भी धनाड्य व्यक्ति पतली गली से निकल जाते हैं। अगर पुलिस उस धनाड्य महिला से प्रमाण मांगती तो क्या वह अपने लंपट पति को सबक सिखाने के लिए यह कहती कि वह निर्दोष युवा उस रात उसके कक्ष में था। इस तरह का संकेत तो है कथा में।
प्राय: यह देखा गया है कि लंपट पतियों को बचाने के लिए उनकी पत्नियां सब प्रयास करती हैं। अपने साथ किए विश्वासघात की भी उन्हें चिंता नहीं होती। क्या उनके अहंकार को ठेस नहीं लगती? इसका स्पष्टीकरण यह संभव है कि सफल पति द्वारा दी गई आर्थिक सुरक्षा एवं सुविधाओं को नहीं छोड़ना चाहतीं ओर बच्चों का भी ख्याल रहता है। कभी सुना नहीं कि किसी पुत्र ने अपने लंपट पिता के खिलाफ कदम उठाया है। क्या उन्हें अपनी मां के साथ हुए अन्याय के प्रतिकार का विचार नहीं आता। सारांश यह है कि पूरा परिवार ही भ्रष्ट और लंपट सदस्य की रक्षा करता है तथा इसे "पारिवारिक मूल्य' कहा जाता है जो सर्वमान्य नैतिकता के ऊपर का भाव बनाया गया है और यही वर्ग भ्रष्टाचार अन्याय के प्रति सबसे अधिक छाती कूट करता है।
राजकुमार संतोष की "दामिनी' की नायिका समृद्ध घराने की बहू है और अपने देवर द्वारा नौकरानी के बलात्कार के खिलाफ मोर्चा खोलती है तथा अदालत में गवाही देती है। फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और आलोचकों ने सराहा परंतु व्यवसाय कम हुआ। बमुश्किल आय निकली। उस फिल्म ने तथाकथित "पारिवारिक मूल्य' का निर्वाह नहीं किया और कुछ दर्शकों ने कहा कि यह कैसी बहू है जो देवर को सजा दिला रही है।
दरअसल शिक्षा संस्थानों में अक्षर ज्ञान गणित आदि की शिक्षा दी जाती है और बच्चे का नैतिक मूल्यों का प्रथम स्कूल उसका परिवार है और होना चाहिए परंतु आजकल पिता पुत्र को कहता है कि अाने वाले व्यक्ति से कह दो पिता घर पर नहीं। आप बच्चे से उसका पहला झूठ बुलवाते हैं। आज शिक्षा, होटल, अस्पताल सबसे अधिक कमाने वाले संस्थान हैं। इन महान संस्थाओं से जीवन मूल्य काफी हद तक बाहर किए जा चुके हैं। एक विज्ञापन फिल्म में "डॉक्टर डॉक्टर' खेलने वाली नन्हीं बालिका पिता को नुस्खा देती है और एक लाख फीस मांगती है। पिता के इतनी अधिक फीस पर सवाल के जवाब में बच्ची कहती है कि अापको मालूम नहीं मेडिकल की पढ़ाई कितनी मंहगी हो चुकी है। आधारभूत समस्याओं से सुविधाजनक पलायन हमारी राष्ट्रीय आदत बन गई है।