लकड़ी के घोड़े पर मारा हथौड़ा... / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :27 मई 2016
विगत दो वर्षों में मोदी सरकार के कार्यों का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया जा रहा है और दिल्ली में एक समारोह भी आयोजित किया गया है, जिसमें अमिताभ बच्चन भी आमंत्रित हैं। इस बहीखाते में कितना लाभ हुआ है या हानि हुई है, इसके आंकड़े सरकार प्रस्तुत कर रही है। किंतु इसके परे समाज की वास्तविकता है, जिस पर गौर किया जाना चाहिए। शिक्षा संस्थानों के समाजशास्त्र विभाग के लिए इसका अध्ययन एक चुनौती है। पाठ्यक्रम की बेजान जंजीरों से बंधे हुए लोगों से आशा नहीं की जा सकती। एक ब्योरा है जीवन के लिए आवश्यक वस्तुओं के दाम के बढ़ने का और इसे ही विगत चुनाव में तत्कालीन सरकार के खिलाफ खूब उछाला गया था। गौरतलब है कि आज लोगों ने निरंतर बढ़ती महंगाई को एक तथ्य के रूप में स्वीकार कर लिया है। कांग्रेस राज में महंगी वस्तुओं पर एतराज करने वाले लोगों ने मौजूदा सरकार की महंगाई को स्वीकार करके आत्मसात कर लिया है। अवाम के शॉक एब्ज़ॉबर्स भी राजनीतिक रंग में रंगे हुए हैं। भूख का भी एक रंग है और एक राजनीतिक दल की वह सदस्य बन गई है। शायद सदियों पुरानी भूख अपने पैदाइशी रंग-रूप और परिधान से ऊब गई थी। जब स्वर्ग में विराजे देवी-देवता एकरसता से ऊब जाते हैं, तब वे धरती पर रहने वाले अपने मनुष्य रूपी खिलौनों से खेलने लगते हैं।
विगत समय में छोटे शहरों और कस्बों में कुछ नए देवी-देवता प्रकट हो गए हैं और उनके उत्सव मनाए जाते हैं। लगता है कि इस क्षेत्र के फैशन में भी खूब दोहराव होता है। यह ब्लाउज़ की बांह की तरह पूरी बांह से बिना बांह तक का सफर दोहराती रहती है। नेकलाइन भी बंद गले तक जाती है और फिर नीचे खिसकती है। याद आता है नीरज का लिखा 'जोकर' का गीत, 'यह सर्कस है मेरे भाई, यहां ऊपर से नीचे, नीचे से ऊपर अाना-जाना पड़ता है, तरह-तरह नाच के दिखाना यहां पड़ता है।' मौजूदा राजनीतिक सर्कस में सब जोकर ही जोकर हैं और यह अजूबा इस सर्कस ने कर दिखाया है कि ताली बजाने वाले दर्शक भी यह अपने साथ लिए चलता है। सिनेमा ने भी देवी-देवता का आविष्कार किया है। 'संतोषी मां' नामक फिल्म ने उसकी पूजा-पाठ को खूब लोकप्रिय बना दिया। ख्वाजा अहमद अब्बास ने फिल्म श्री 420 के एक दृश्य में चौपाटी पर सेठ सोनाचंद धरमानंद के चुनावी भाषण का दृश्य रचा था। सेठजी का मजमा टूट जाता है, जब एक दंत-मंजन बेचने वाला अपनी लुभावनी बातों से जनता को मंत्रमुग्ध कर देता है। सेठजी अपने सहायक को संकेत करते हैं। वह दंत-मंजन बेचने वाले से प्रश्न करता है कि तुमने अपने दंत-मंजन में गाय माता की चर्बी डाली है। दंत-मंजन बेचने वाला घबरा जाता है और वह कहता है कि उसके दंत-मंजन में रेत और कोयला मात्र है। सेठजी का प्यादा जनता को भड़का देता है कि यह मंजन बेचने वाला रेत और कोयला बेच रहा है। उसकी पिटाई हो जाती है। अब्बास साहब का स्पष्ट इशारा है कि पूंजीपति धर्म के नाम पर धंधा करता है और एक ईमानदार, मेहनतकश दंत-मंजन बेचने वाले को पिटवा देता है।
प्रतिक्रियावादी ताकतें जानती हैं कि धर्मप्राण जनता को कैसे गुमराह किया जाता है। आज दो वर्ष का लेखा-जोखा भी एक भ्रम ही है, क्योंकि हर चीज के दाम बढ़ गए हैं, जीवन यापन कठिन हो गया है और सबसे बड़ी बात यह है कि अापने अपनी तथाकथित सफलता पर ताली बजाने वालों का एक वर्ग खड़ा कर दिया है। उनके द्वारा बजाई गई तालियों के शोर में सत्य की तुती की आवाज दब गई है। जनता को पता ही नहीं चला कि वह कैसे तमाशबीन भीड़ में बदल गई है। ताली-दल का एक आतंक है, जो सरकार के उन कामों को अंजाम दे रहे हैं, जिनके लिए उन्हें पुलिस या फौज की सहायता नहीं लेनी पड़ती। यह हिटलर के 'गेस्टापो' का दूसरा रूप है।
यह सरकार एक कदम उठाती है और कुछ ही दिनों में दो कदम पीछे चली जाती है। इस कवायद को प्रशासन कहा जा रहा है। बच्चों के खिलौनों में एक काठ का घोड़ा होता है, जिस पर बैठकर बच्चा उसे चलाता है। उसे चाल का भ्रम होता है, जबकि काठ का घोड़ा अपने ही स्थान पर ऊपर-नीचे होता है। इस काठ के घोड़े को 'रॉकिंग हॉर्स' कहते हैं। सरकार की इस सफलता की प्रशंसा करनी होगी कि अब कोई मूलभूत आवश्यकताओं के अभाव का प्रश्न ही नहीं उठाता। पेट पर पट्टी बांधकर भूख की ज्वाला को शांत करना लोग सीख गए है। अगर इस तंत्र से व्यापारी वर्ग कुछ धन कमा लेता है तो भी तसल्ली होती है परंतु ऐसा भी नहीं हो रहा है। आप किसी भी उद्योग से जुड़े व्यक्ति से बात करें तो वह आपको अपने उद्योग के ठप हो जाने की बात करेगा। आज सचमुच यह जानना आवश्यक है कि किस वर्ग के अच्छे दिन आ गए हैं। पूरे देश में एक विराट बंद चल रहा है। सिनेमाई भाषा में इसे फ्रीज शॉट कहते हैं, जिसमें सारी क्रियाएं स्थगित होती है।