लक्ष्मी के दौर मे सरस्वती / जयप्रकाश चौकसे
लक्ष्मी के दौर मे सरस्वती
प्रकाशन तिथि : 05 जुलाई 2012
विधु विनोद चोपड़ा और राजकुमार हीरानी की ‘लगे रहो मुन्नाभाई’ में एक महत्वपूर्ण दृश्य वाचनालय में फिल्माया गया है। अपराधी प्रवृत्ति के मुन्नाभाई को प्यार हो गया है और प्रेयसी को प्रभावित करने के लिए उम्रदराज लोगों के आश्रम में गांधीजी पर भाषण देना है। जर्जर इमारत में जाले लगी अलमारियों में ज्ञान कैद है और बूढ़ा वाचनालय अधिकारी, मुन्नाभाई को किताबें देता है। उसे आश्चर्य है कि इतने वर्षो बाद कोई गांधी साहित्य का अध्ययन करने आया है। इसी वाचनालय में गांधीजी मुन्नाभाई से वार्तालाप करते हैं। यही इस फिल्म का महत्वपूर्ण मोड़ है। वाचनालय में साक्षात गांधी का आना गहरे संकेत रखता है। कुछ समय पूर्व इंदौर आकाशवाणी के वाचनालय में वर्षो पूर्व पढ़ी किताबों को मैंने नदारद पाया। इंदौर के रेसीडेंसी क्लब और बुरहानपुर की म्युनिसिपल कमेटी के वाचनालय का भी यही हाल है। कुछ वर्ष पूर्व हुड़दंगियों ने पुणो की एक पुरातन लाइब्रेरी में आग लगा दी थी। आज सरकारें वाचनालयों के बारे में उदासीन हैं और यह उनकी वृहद उदासीनता का ही हिस्सा है। राष्ट्र की बहुमूल्य धरोहरें हर स्तर पर नष्ट हो रही हैं, जो कि जीवन मूल्यों के पतन का ही एक भाग है।
भोपाल की मौलाना आजाद सेंट्रल लाइब्रेरी में १९६७ में रामेश्वर प्रसाद तिवारी इंदौर के अहिल्या पुस्तकालय से पदोन्नत होकर पहुंचे और उन्होंने गालिब की हस्तलिखित पुस्तक को नदारद पाया, जो वर्षो पूर्व किसी व्यक्ति को सरकार के दबाव में पढ़ने के लिए दी गई थी और उसने नहीं लौटाई। हमारी केंद्र सरकार ने १९७२ में गालिब शताब्दी के अवसर पर उसी ऐतिहासिक महत्व की किताब को पाकिस्तान सरकार से ७५ लाख में खरीदा। हमारी अपनी धरोहर जाने किन लोगों की बदनीयत से चंद रुपयों में पाकिस्तान भेज दी गई थी। हम गालिब की वापसी चाहते हैं और वे औरंगजेब को महत्व देते हैं। पाकिस्तान गालिब को क्योंकर सहेजता, जो कहते हैं कि मस्जिद में बैठकर पीने दे या वह जगह बता दे, जहां खुदा न हो। किसी भी देश में कट्टरपंथियों के हाथ में सत्ता आने पर गालिब बेचे जाते हैं, महात्मा बुद्ध की मूर्तियां तोड़ी जाती हैं, वाचनालय जलाए जाते हैं। अपने को तालिबान कहने वाले तालीम के दुश्मन हैं। सभी धर्मो के कट्टरपंथी एक-दूसरे से अदृश्य तार से जुड़े रहते हैं और क्रिया-प्रतिक्रिया का खेल खेलते हैं।
ज्ञातव्य है कि भोपाल नवाब खानदान की सुलतान-जहां-बेगम ने अपने बहुमूल्य किताबों और दस्तावेजों के खजाने को मौलाना आजाद सेंट्रल लाइब्रेरी को दान में दिया था और इसमें स्वर्ण अक्षर में अंकित किताबें हैं, उर्दू, फारसी के साथ हिंदी की किताबें भी हैं, जिनमें शारदानामा भी शामिल है। रामेश्वर तिवारी वहां 18 वर्षो तक किताबें सहेजते रहे। तिवारीजी ने राजनीति शास्त्र में एमए करके नूतन हायर सेकंडरी स्कूल, इंदौर से कॅरिअर शुरू किया। वाचनालय की व्यवस्था के शास्त्र का अध्ययन उन्होंने डॉ. रंगनाथन की प्रेरणा से ग्वालियर और उज्जैन में किया। डॉ. रंगनाथन ने लंदन जाकर वाचनालय व्यवस्था की कला का गहन अध्ययन किया था और भारत में वे इस विधा के पुरोधा माने जाते हैं। रामेश्वर तिवारी ने अहिल्या केंद्रीय पुस्तकालय, इंदौर में अनेक वर्ष कार्य किया।
इस महान संस्था से युधिष्ठिर भार्गव, पद्मनाथन, चंदन सिंह भरकतिया, राहुल बारपुते और राजेंद्र माथुर जैसे विद्वान जुड़े थे। तिवारीजी का कहना है कि एक दौर में उच्च आला अफसर भी नियमित रूप से वाचनालय आते थे। श्री तिवारी मध्यप्रदेश के सारे वाचनालयों के अधिकारी भी अनेक वर्षो तक रहे और उनके कार्यकाल में अनेक जिला मुख्यालयों पर वाचनालयों की स्थापना हुई। कोलकाता में स्थित ‘नेशनल लाइब्रेरी’ देश का सबसे पुराना पुस्तकालय है और आईएएस श्रेणी का व्यक्तिउसका संचालक होता है। हिंदुस्तान के अनेक शहरों में वाचनालय स्थापित किए गए हैं, जिनमें ऐतिहासिक महत्व की किताबों का संग्रह है। बड़ौदा में सयाजी वाचनालय अत्यंत सुव्यवस्थित संस्था है।
ज्ञातव्य है कि बड़ौदा के कला भवन में ही हिंदुस्तान में कथा फिल्मों के जनक धुंडिराज गोविंद फाल्के ने कुछ समय नौकरी की और सिनेमा से संबंधित ‘बायस्कोप’ इत्यादि कई महत्वपूर्ण किताबों का अध्ययन किया। दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के वाचनालय में सर्वाधिक किताबें हैं। रामेश्वर तिवारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं और उनका कहना है कि हर प्रांत में पुस्तकालय अधिनियम बनना चाहिए और कुछ प्रांतों में यह कायम भी हो चुका है। हमारे देश में अनेक बहुमूल्य किताबें हैं और उनकी सुरक्षा राष्ट्र का दायित्व है। ऐतिहासिक महत्व की किताबों की माइक्रो फिल्म बनाकर उन्हें कालातीत किया जा सकता है।
भारत ने अपनी पांच हजार वर्ष पुरानी सांस्कृतिक धरोहर का स्वयं ही बहुत हद तक नाश किया है। जर्मनी के मैक्समुलर संस्थान ने कुछ भाग की रक्षा की है। यह कितने दु:ख की बात है कि लक्ष्मी के दौर में सरस्वती अनदेखी रह रही हैं।