लक्ष्य की रक्षा / शरद जोशी
एक था कछुआ, एक था खरगोश जैसा कि सब जानते हैं। खरगोश ने कछुए को संसद, राजनीतिक मंच और प्रेस के बयानों में चुनौती दी - अगर आगे बढ़ने का इतना ही दम है, तो हमसे पहले मंजिल पर पहुँचकर दिखाओ। रेस आरंभ हुई। खरगोश दौड़ा, कछुआ चला धीरे-धीरे अपनी चाल।
जैसा कि सब जानते हैं आगे जाकर खरगोश एक वृक्ष के नीचे आराम करने लगा। उसने संवाददाताओं को बताया कि वह राष्ट्र की समस्याओं पर गंभीर चिंतन कर रहा है, क्योंकि उसे जल्दी ही लक्ष्य तक पहुँचना है। यह कहकर वह सो गया। कछुआ लक्ष्य तक धीरे-धीरे पहुँचने लगा।
जब खरगोश सो कर उठा, उसने देखा कि कछुआ आगे बढ़ गया है, उसके हारने और बदनामी के स्पष्ट आसार हैं। खरगोश ने तुरंत आपातकाल घोषित कर दिया। उसने अपने बयान में कहा कि प्रतिगामी पिछड़ी और कंजरवेटिव (रूढ़िवादी) ताकतें आगे बढ़ रही हैं, जिनसे देश को बचाना बहुत जरूरी है। और लक्ष्य छूने के पूर्व कछुआ गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया।