लगाया गले / मनोहर चमोली 'मनु'
एक नदी को अपनी ओर आते हुए समुद्र ने कहा,‘‘रुको। जान न पहचान। मैं तेरा मेहमान!’’ नदी चौंक गई। बोली,‘‘मैं आपकी बेटी हूँ।’’ समुद्र हँसते हुए बोला,‘‘कहाँ से आ रही हो?’’ नदी ने बताया,‘‘गोमुख से।’’ समुद्र समझ नहीं पाया। नदी बोली,‘‘किसी आदमी को यहाँ से लगभग इक्कीस लाख क़दम चलने होंगे। तब जाकर वह गोमुख पहुँचेगा।’’ समुद्र चौंका। पूछा,‘‘मेरी बेटी इतनी दूर भला क्यों जाएगी?’’
नदी ने बताया,‘‘यह लम्बी कहानी है। आप बहुत दूर तक फैले हुए हैं। विशाल हैं। सूरज की गरमी से भाप बनती है। यह आपकी सांसें हैं। यह भाप ऊपर की ओर उठती है। भाप से बादल बनते हैं। बादल जब भारी हो जाते हैं तब बूंदें बरसाते हैं। यही बारिश है। बारिश से नदी, झरने और जल धाराएँ भर जाती हैं। नदियों को बहते-बहते आखिरकार सागर में ही मिलना होता है। अब आप ही बताइए। हम नदियाँ कहाँ जाएँ?’’ समुद्र ने अपनी बाँहें फैलाई। नदी समुद्र के गले लग गई।