लघुकथाएँ / भाग 1 / मुस्तकीम खान

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खुदा का शुक्रिया

मस्जिद में से निकलते एक 'शख्स' ने दस साल की एक लड़की को खुदा के नाम पर भीख मांगते हुए देखा। उसे बड़ी मायूसी हुई। उस लड़की के पास चुप बैठी एक औरत के पास जा कर उस शख्स ने खूब लानत बरसाई, "शर्म आनी चाहिये तुझे, हाथ पैर महफूज़ होने के बावजूद, खुदा का शुक्रिया अदा कर के मेहनत करने की बजाये, इक मासूम लड़की को तु भीख की आदत डाल रही है।" फिर वह वहां से अपने दफ्तर की और चल पड़ा।

हवालदार एक चोर को गिरफ्तार करके लाया।

चोर ने 'शख्स' से कहा, "इंस्पेक्टर साब, क्यूँ मुझ गरीब को उलझन में डाल रहे हो? सौ रूपए में मामला निपटा दो तो मेहरबानी।" उस शख्स ने सौ रुपये जेब में रखे और चोर को छोड़ दिया।

सब ने तहे-दिल से खुदा का शुक्रिया अदा किया।


रूह

पुलिस ने बताया की हादसा इतना बुरा था कि लाश को पहचानना मुश्किल था। मगर जले कपडे और दूसरी एक दो निशानियों से साफ़ ज़ाहिर था कि लाश कासिम की ही है।

घर में मातम का माहौल छाया हुआ था। ज़नाज़े की नमाज़ के बाद लाश को दफना कर जब सब लोग लौट रहे थे तो दूर से किसी स्कूटर की आवाज़ सुनाई दी जिसका साइलेंसर फटा हुआ था।

नज़दीक आया तो पता चला की यह तो कासिम की रूह है। हर जगह भगदड़ मच गयी।

लेकिन कासिम ने मुश्किल से सबको यकीन दिलाया कि वह सही सलामत और जिंदा है।

जैसे ही सबको यकीन हो गया कि यह तो वाकई में कासिम है, जिंदा, तो कई लोगों ने उस को धमकी दी कि उनका उधार सूद समेत लौटा दे वरना उसकी खैर नहीं।

कुछ दिनों बाद कासिम ने खुद को जला कर खुदखुशी करली तो सबने उसकी रूह को जन्नत नसीब हो वैसी दुआ मांगी।


जादू और मौत

दो बहुत ही अच्छे दोस्त मेले में गए। थोड़ी देर के बाद दोनों में बहस हो गयी कि बचे हुए चंद पैसो से जादू का खेल देखें या मौत का कुंआ।

आखिर एक ने समझौता किया और मौत का कूँआ देखने के लिए राज़ी हो गया।

कूँए की लकड़ी की दीवारों पर घूमती मोटर कार और ड्राईवर के हैरतंगेज़ कर्तब देख कर दोनों बहुत ही उत्सुक हो गए।

जैसे ही घूमती हुई कार ऊपर की तरफ आई तो एक ने ड्राईवर को ताली देने की कोशिश की, इतने में ही कार के बोनट से टकराकर उसका सर धड से गायब हो गया।

दुसरे को यह जादू का खेल देख कर बड़ा मज़ा आया।