लघुकथाओं का आस्वाद / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
पाठक और साहित्य के कई वर्ग हो सकते हैं। कुछ का उद्देश्य केवल मनोरंजन, कुछ का मन-रंजन, कुछ का उद्देश्य प्रतिपल बदलते जीवन के विविध रंगों,को जानने, परखने और अवगाहन की जिज्ञासा। लघुकथा के सन्दर्भ में कहूँ, तो एक दृष्टि में समझ में आ जाए-हस्तामलक की तरह सीधी-सरल बोधगम्य रचना, कुछ ठहरकर सोचने के लिए बाध्य करे और बोध होने पर तृप्ति का अहसास कराए, कोई लघुकथा ऐसी भी हो कि अनुभव और चिन्तन को चुनौती दे और कभी -कभी लगे कि लेखक ने जो कहा है, वह पल्ले नहीं पड़ा; बल्कि सिर के ऊपर से गुज़र गया है। फिर से पढ़ने पर गहरे उतरने पर, रचना में आए प्रतीक, बिम्ब या मिथक के समझ में आने पर गहरी अनुभूति के साथ रचना का सौन्दर्य अभिभूत कर जाए। ये किसी लघुकथा की रचना के विभिन्न कथ्य हो सकते हैं, जिसे अभिधा, लक्षणा या व्यंजना से अभिव्यक्त किया जाता है। किसी विधा के विकासशील से विकसित की स्थिति में पहुँचने पर, रचना की प्रस्तुति में प्रबुद्ध लेखक लीक से हटकर कुछ नवीन प्रयोग करते हैं, जो सामान्य पाठक द्वारा सहज ग्राह्य और स्वीकृत नहीं होते। इस तरह की रचनाएँ विस्तृत अध्ययन, कल्पना और चिन्तन-मनन की अपेक्षा करती हैं।
इस संग्रह में उदयप्रकाश की लघुकथा दो वाक्यों की 16-17 शब्दों की है। प्रयोग को लपकने वाले लेखक यदि बिना सोचे-समझे ऐसी लघुकथाएँ लिखने लगे , तो यह विधा के लिए और उनके लिए भी घातक ही होगा। यहाँ यह बात महत्त्वपूर्ण और विचारणीय है कि लघुकथा में नवीन प्रयोग किया है या प्रयोग को सिद्ध करने और स्थापित करने के लिए लघुकथा गढ़ी है। ‘गहरे पानी पैठ’ की रचनाएँ पाठक से अतिरिक्त चिन्तन और धैर्य की माँग करती हैं। इन लघुकथाओं के अन्तर्हित मर्म को समझने के लिए यह ज़रूरी है। तपाक से लघुकथा को समझने की हड़बड़ी में कथ्य और शिल्प के मर्म से फिसलकर उसके अभिधेय रूप से चिपक जाने का खतरा बना रहता है। फ़रवरी 1989 के बरेली लघुकथा सम्मेलन में ‘गोश्त की गन्ध’ को कुछ लेखक नहीं समझ सके। आज 31 साल बाद भी ऐसे लेखक और पाठक मौजूद हैं। पिछले तीन दशक में लघुकथा ने जो सम्मानजनक स्थान बनाया है, इस संग्रह की लघुकथाएँ उसकी परिणति हैं। आशा है गहरे उतरने वालों को इन लघुकथाओं का आस्वाद सन्तुष्ट करेगा।