लघुकथाओं की अंतर्यात्रा / कविता भट्ट

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[लघुकथा: मेरी पसंद- 2, सम्पादक: सुकेश साहनी एवं रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’, संस्करण: 2018, पृष्ठ: 121, मूल्य : 240/- , प्रकाशन: अयन प्रकाशन, महरौली, नयी दिल्ली-110030]

प्रसिद्ध लघुकथाकार एवं इस क्षेत्र में अभूतपूर्व ऐतिहासिक समर्पण के साथ कार्य करने वाले संपादकद्वय सुकेश साहनी एवं रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ द्वारा सम्पादित ‘लघुकथाएँ : मेरी पसंद-2’ पढ़ने का मुझे सुअवसर प्राप्त हुआ। यह पुस्तक ख्यातिप्राप्त लेखकों द्वारा विभिन्न लघुकथाकारों की लघुकथाओं की समीक्षा का रंग-बिरंगा गुलदस्ता है; जिसमें मनभावन रंगों के साथ ही आनंदित और भावमुग्ध करने वाली सुगंध भी है। यह पुस्तक वैयक्तिक-सामाजिक ताने-बाने से तैयार लघुकथाओं की यथोचित समीक्षाओं को प्रस्तुत करने के साथ ही उन लघुकथाओं का रसास्वादन भी करवाती है। अनेक विशेषताओं को समेटे हुए ‘लघुकथाएँ : मेरी पसंद-2' पठनीय एवं संग्रहणीय है; इसकी संक्षिप्त विवेचना करेंगे; किन्तु उससे पूर्व लघुकथा-विधा की वर्तमान प्रासंगिकता को संक्षेप में स्पष्ट करेंगे।

कभी-कभी एक ‘अक्षर’ अथवा अनेकशः ‘अक्षर’ समूह से शब्द की व्युत्पत्ति होती है। ‘अक्षर’ ‘अ’ एवं ‘क्षर’ से निर्मित है; जिनका अर्थ क्रमश: ‘नहीं’ एवं ‘नाश’ है; इस प्रकार पूरे शब्द का अर्थ है- ‘जिसका नाश न हो’। साररूपेण कहा जा सकता है कि अक्षर वह है; जिसका नाश न हो। इस प्रकार यदि अक्षर अविनाशी है ,तो ‘शब्द’ भी अविनाशी हुआ। साथ ही ध्यातव्य है कि इसी दृष्टि से भारतीय वांग्मय में ‘शब्द’ को ब्रह्म की संज्ञा प्रदान की गई है।

स्पष्ट यह करना है कि यह अकारण नहीं है; अपितु जब भी वक्ता किसी शब्द को बोलता है या लेखक किसी शब्द को लिखता है; तो वह ब्रह्म का साक्षात्कार करता है; इसीलिए सत्यनिष्ठ शब्द-साधक या रचनाकार ब्रह्म के निकट होता है। इस दृष्टि से देखा जाए, तो शब्द में भी आत्मभाव हुआ और शब्द साधक तो चैतन्य होने के कारण आत्मभाव युक्त होता ही है। इस प्रकार शब्द साधना में निरत रचनाकार एवं शब्द; इन दोनों का आत्मभाव से युक्त होने के कारण इन को एक दूसरे का प्रतिबिम्ब भी माना जा सकता है। इसीलिए रचनाकार शब्दों में प्रतिबिंबित होता है। इस दृष्टि से शब्दों का समूह या वाक्य मात्र एक वाग्जाल नहीं ,अपितु सृष्टि है।अच्छा लघुकथाकार वही हैं , जिसकी पकड़ शब्द की विभिन्न मुद्राओं और अर्थ -छटाओं पर होती है।

ऐसी ही एक सृष्टि का प्रकारांतर है- लघुकथा; जो आकार में तो छोटी होती है; किन्तु भाव एवं अभिव्यक्ति की दृष्टि से स्वयं में विराट होती है। यहाँ पर लघुकथाओं के सम्बन्ध में भारतीय कथाओं में प्राप्त एक प्रसंग प्रासंगिक है; एक बार पार्वती-शिव ने अपने दोनों पुत्रों गणेश एवं कार्तिकेय को कहा कि जो सभी लोकों की परिक्रमा पहले कर आएगा; वह अधिक बुद्धिमान कहलाएगा। कार्तिकेय परिक्रमण हेतु शीघ्रता से निकल गए। गणेश ने अपने माता-पिता की एक परिक्रमा पूर्ण की और उनके सम्मुख खड़े हो गए और बोले कि मैंने समग्र ब्रह्माण्ड की परिक्रमा पूर्ण कर ली। पार्वती-शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने वरदान दिया कि गणेश को प्रत्येक शुभकार्य में सर्वप्रथम पूजा जाएगा। यह प्रसंग यहाँ इसलिए उद्धृत किया; क्योंकि लघुकथा भी इस प्रकार की एक परिक्रमा है; जीवन के विविध पक्षों की अन्तर्यात्रा है। यदि अत्यन्त अल्प शब्दों में कुछ सारगर्भित कहना हो, तो इससे सुन्दर और सार्थक विधा कोई भी नहीं। लघुकथा के प्रारम्भिक काल में इसके महत्त्व को समझे बिना या रचना-विधान की दृष्टि को गहराई से जाने बिना इसकी बहुत आलोचना की गई; किन्तु पाठकीयता,लोकप्रियता तथा उपयोगिता को दृष्टिगत रखते हुए; आधुनिक अतितीव्र गत्यात्मक समय में इससे अच्छी सक्रिय त्वरित प्रभाव छोड़ने वाली विधा अन्य नहीं। पाठक और लेखक दोनों के साथ ही साहित्य एवं समाज की दृष्टि से भी यह अति उपयोगी है; क्योंकि यह समाज को कम शब्दों में दर्पण दिखाने तथा यथोचित दिशा में ले जाने में सक्षम है। इसलिए इस विधा का लेखन, पठन-पाठन तथा लोकप्रियता दिनों-दिन बढ़ते जा रहे हैं।

इस संग्रह में रचनाकार , समीक्षक और पाठक अपनी-अपनी पसन्द के साथ एक ही मंच पर विद्यमान हैं। ‘मेरी पसन्द’ का उद्देश्य ही रहा है-लेखक, समीक्षक और पाठक को जोड़ना। इस संग्रह में रचना श्रीवास्तव, डॉ. सुधा गुप्ता, सुमन कुमार घई, जया नर्गिस, हरि मृदुल, स्व० डॉ. मिथिलेश कुमारी मिश्र, निरंजन बोहा, डॉ.भावना कुँअर, डॉ.सुधा ओम ढींगरा,, गिरीश पंकज, निशान्तर , मधुदीप, डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा, अनिता ललित तथा डॉ.जेन्नी शबनम आदि प्रतिष्ठित लेखकों ने विभिन्न लघुकथाओं पर अपनी लेखनी समीक्षक के रूप में चलाई है। लघुकथा डॉट कॉम के इस महत्त्वपूर्ण कॉलम से माध्यम से लघुकथा की तह तक पहुँचने का सफल प्रयास किया गया है

सुकेश साहनी कृत धुएँ की दीवार, गोश्त की गंध आदि लघुकथाएँ प्रशंसनीय हैं एवं उनकी यथोचित समीक्षा की गई है,लेखक ‘गोश्त की गन्ध’ के बिम्ब को पकड़ने में सफल रहा है, जो उक्त लघुकथा का प्राण है। उसे समझे बिना प्रतीकात्मक अर्थ तक पहुँच सम्भव नहीं। रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ कृत ऊँचाई, छोटे-बड़े सपने, भग्नमूर्ति, नवजन्मा, खुशबू, धर्म-निरपेक्ष; चित्रा मुद्गल कृत रिश्ता की समीक्षा यथोचित सारगर्भित एवं सुन्दर है। डॉ. किशोर काबरा कृत पेड़ और बच्चा तथा खलील जिब्रान कृत एवं सुकेश साहनी द्वारा अनूदित आँख, महत्त्वाकांक्षा आदि लघुकथाओं की समीक्षा भी समीचीन है। डॉ. कुलदीप सिंह की लघुकथा सब ठीक है; आनंद मोहन अवस्थी कृत अन्नअप्पा, जोगिन्दर पाल कृत उपस्थित, उदय प्रकाश कृत डर, राजेन्द्र पाण्डेय कृत माटी का मोल, डॉ. शंकर पुणताम्बेकर लिखित अवैध संतान, डॉ. श्याम सुन्दर दीप्ति की स्वागत, श्याम सुन्दर अग्रवाल कृत माँ का कमरा, आँगन की धूप, सुभाष नीरव कृत बीमार, एक और कस्बा, सतीश दुबे कृत बर्थ डे गिफ्ट, विष्णु प्रभाकर कृत फर्क, डॉ. सतीशराज पुष्करणा की अँधेरा, जीवन-संघर्ष, अन्तश्चेतना, अखिल रायजादा की पहला संगीत, एन उन्नी कृत कबूतरों से भी खतरा है, अरुण कुमार कृत सीख, विवेक की साँझ, प्रद्युम्न भल्ला की बड़े साहब, सतिपाल खुल्लर कृत बंधन, प्रबोध कुमार की ‘माँ’ तथा रमेश बतरा कृत सूअर, लड़ाई आदि मार्मिक लघुकथाओं को पढ़ने का आनंद पाठक ले सकते हैं। ‘मेरी पसन्द’ के अन्तर्गत किया गया इन लघुकथाओं का चयन इस बात की स्थापना करता है कि अच्छी लघुकथा का गन्तव्य है-मानव मन की परख, उसमें उठती छोटी-बड़ी लहरें और उन तक पहुँचती गहन दृष्टि।

इन सभी लेखकों ने रचनाधर्मिता एवं सामाजिक उत्तरदायित्त्व का निर्वहन उत्कृष्टता के साथ किया है। सम्पादन की विशिष्टता यह है कि विविध लघुकथाओं की समीक्षा भी उसके साथ ही होने से पाठक को उसका विवेचन एवं विश्लेषण भी साथ ही पढ़ने को मिलता है। यह कार्य अत्यंत सराहनीय एवं उपयोगी है। यह पुस्तक सामान्य पाठक से लेकर ,अनुसन्धान करने वाले, लघुकथा की सृजन-प्रक्रिया को समझने की जिज्ञासा रखने वाले सभी लघुकथा -प्रेमियों को जोड़ने के लिए सेतु का काम करेगी। ‘मेरी पसन्द’ का यह कार्य हिन्दी विश्व के प्रसिद्ध अन्तर्जाल के द्वारा पहले ही पाठकों तक पहुँच चुका है। प्रकाशन के माध्यम से अब पुस्तक रूप में भी उपलब्ध है। इस कार्य के सम्पादकद्वय को साधुवाद एवं भविष्यकालीन साहित्यिक यात्रा हेतु शुभकामनाएँ ।