लघुकथा: विधा के जोखिम / सुकेश साहनी
सुकेश साहनी
वे कौन से कारण हैं ,जिनकी वजह से स्तरीय लेखन सामने नहीं आ रहा है? यह सर्वमान्य मत हैं कि लघुकथा जितनी लघु होती है उतनी ही अधिक वह दूरान्वयी और अर्थगर्भी होती है। उसके लेखन में उतनी गहरी अनुभूति और चुस्त शिल्प की जरूरत होती है। लघुकथा लेखन के अत्यधिक चुनौतीपूर्ण होने के बावजूद इसमें दूसरी विधाओं की तुलना में लेखक को राष्ट्रीय स्तर पर साहित्यिक पहचान मिलने की संभावना काफी कम रहती है। इस वजह से भी लघुकथा के प्रति समर्पित लेखकों की संख्या काफी कम है। पीछे मुड़कर देखें तो सभी वरिष्ठ साहित्यकारों ने लघु आकार की रचनाओं में अभिव्यक्ति की आवश्यकता महसूस की। आज इससे उलट स्थिति देखने को मिल रही है। अनेक समर्थ कहानीकार लघुकथा को दोयम दर्जे का लेखन मानते हैं। लघुकथा के लिए उपयुक्त कथ्य पर वे कहानी ही लिखना पसंद करते हैं। ऐसी कहानियों में से चर्बी (अनावश्यक विस्तार) छाँट दी जाए तो वे मुकम्मल लघुकथा ही नजर आएँगी। यहाँ स्वर्गीय रमेश बतरा की याद आना स्वाभाविक है। कहानियों के साथ–साथ मास्टर पीस लघुकथाओं का सर्जन उनकी लघुकथा के प्रति सच्ची प्रतिबद्धता को दर्शाता है। ऐसी प्रतिभाएँ लघुकथा के क्षेत्र में दिखाई नहीं देती।
सिरसा लघुकथा लेखक शिविर में हुई बातचीत याद आ रही है। लेखक मित्र ने जमीन से एक कंकड़ी उठाई और बोले, “इस पर भी लघुकथा लिखी जा सकती है।”
दूसरे ने कहा, “लघुकथा में यही तो हो रहा है, जहाँ जो देखा ,उसे चुभते हुए किस्से के रूप में लिख दिया, बस ।”
तीसरे मित्र ने उस कंकड़ी को अपनी हथेली पर रखा और कहा, “इस पर एक अच्छी लघुकथा जरूर लिखी जा सकती है ; लेकिन इसके लिए इसे रचनाकार को लम्बी सृजन प्रक्रिया से गुजरना होगा......तब यह कंकड़ी ऐसी निष्प्राण नहीं रहेगी। वह लेखक की सृजन –प्रक्रिया की आँच से पककर सजीव हो उठेगी। इसमें जीवन की धड़कन स्पष्ट रूप से महसूस की जा सकेगी। ......और तब लेखक को भी लगेगा कि उसने कुछ महत्त्वपूर्ण पा लिया है ,जिसे जल्दी से जल्दी पाठकों से शेयर किया जाना चाहिए।” देखा जाए तो उस निष्प्राण कंकड़ी जैसी गढ़ी हुई लघुकथाएँ ही अधिक देखने को मिल रही हैं । लम्बी साधना और मंथन के बाद रची गई रचनाएँ बहुत कम दिखाई देती है।
कुछ ऐसी लघुकथाएँ भी देखने को मिल रही हैं , जो व्यक्तिवादी एवं संकुचित दायरे में सिमटी हुई दिखाई देती हैं। ऐसी लघुकथाओं को देखकर ही कहा जाता है कि लघुकथा की सीमा बहुत छोटी है और यह हमारी जिंदगी की सच्चाई को पकड़ नहीं सकती। इस प्रकार की रचनाओं में लेखक व्यक्तिगत मधुर/कटु अनुभवों को लघुकथा के कलेवर में सायास एवं असहज रूप में प्रस्तुत कर देता है ; जो उसके लिए तो घटना से जुड़े होने के कारण महत्त्वपूर्ण हो सकती है, पर आम पाठक के लिए उद्देश्यहीन ,नीरस लघुकथा बन कर रह जाती है।
अब तक लघुकथा पर कितना कार्य हुआ है? कौन–कौन –सी चर्चित लघुकथाएँ हैं? किन–किन विषयों पर चर्चित लघुकथाएँ लिखी जा चुकी है? विश्व प्रसिद्ध लघुकथाओं के कथ्य क्या है? लघुकथा में आज सक्रिय नई पीढ़ी इन बातों से अनभिज्ञ है ।परिणाम स्वरूप एक
जैसे कथ्यों को दोहराती अनेक लघुकथाएँ प्रकाश में आती है और पाठक दो –तीन पंक्तियों को पढ़कर सोचता है कि यह रचना तो उसकी पढ़ी हुई है या फिर वही घिसी–पीटी बात। वर्षों पहले की बात है, मैंने कथादेश के संपादक को विचारार्थ दो लघुकथाएँ भेजी थी। एक रचना की स्वीकृति एवं दूसरी रचना लौटाते हुए सम्पादक ने टिप्पणी की- “कथादेश के अमुक अंक में प्रकाशित अमुक कहानी देखें।” यहाँ संम्पादक की टिप्पणी से स्पष्ट था कि मेरी दूसरी रचना का कथ्य कथादेश में प्रकाशित कहानी से मिलता जुलता था और संपादक को कथादेश में उसी विषयवस्तु पर मेरी लघुकथा को छापने का कोई औचित्य नजर नहीं आया। तात्पर्य यह कि लघुकथा लेखक को भी देश –विदेश के कथा साहित्य का भरपूर अध्ययन करना चाहिए ताकि रचना में विषयवस्तु के इस दोहराव से बचा जा सके।
बहुत –सी लघुकथाएँ कहानी के सार के रूप में लिखी जा रही हैं। लघुकथा के लिए कथ्य –चयन, कथ्य –विकास, भाषा –शैली का निरूपण कहानी की तुलना में अतिरिक्त अनुशासन की माँग करता है। यह कथ्य ही है; जो रचना प्रक्रिया के दौरान लेखक को बेहतर अभिव्यक्ति के लिए विधा (लघुकथा/कहानी/कविता) के चयन के लिए विवश करता है। रमेश बतरा के शब्दों में,”कथ्य बहुमुखी है ,तो उसे विस्तृत फलक पर (कहानी) लिख लिया जाए और कथ्य किसी एक मन:स्थिति अथवा क्षण के व्यवहार की तरफ संकेत करता है ,तो उसे थोड़े में (लघुकथा) लिख लिया जाए ।इसमें जोड़ना चाहूँगा कि लघुकथा के लिए एक या दो घटनाओं वाले कथानक आदर्श होते हैं। जहाँ लेखक बहुमुखी कथ्य वाले विषय पर लघुकथा लिखने का प्रयास करता है ,वहाँ वह किसी भी मुकम्मल कृति का सृजन नहीं कर पाता। लेखन कला और रचना –कौशल में तोलस्तोय इसे और अधिक स्पष्ट करते हुए कहते है......
‘लघुकथा एक अत्यन्त कठिन कलारूप है। लम्बे आख्यान में श्रेष्ठ वर्णन रहित वार्तालाप और तरह–तरह के उपायों से पाठक को सम्मोहित करना संभव होता है। परन्तु लघुकथा में आप चारों ओर से खुले होते हैं। आपको कुशल होना चाहिए। आप उतना ही संक्षिप्त हो सकते है ,जितना एक कवि एक सोनेट (चौदह पंक्तियों की कविता) में, परन्तु उसकी संक्षिप्तता सामग्री की सान्द्रता का, जो अति आवश्यक है, उसे चुन लेने का परिणाम होना चाहिए। लघुकथा को एक मुकम्मल कृति होना चाहिए........”