लघुकथा का वर्त्तमान परिदृश्य: संचेतना एवं अभिव्यक्ति / कविता भट्ट
द्रुतगति से युक्त आधुनिक युग में लघुकथा विधा पाठकों के लिए अति-उपयोगी है। कम समय में अधिक प्रसंगों का आनंद लेने के साथ ही पाठक समाज के आधुनिक प्रसंगों के सम्बन्ध में सचेत होकर समाज के प्रति अपने योगदान के प्रति जागरूक भी होता है। मुझे श्री रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ कृत लघुकथा का वर्त्तमान परिदृश्य (लघुकथा समालोचना) पुस्तक के अध्ययन का अवसर प्राप्त हुआ। मैंने पढने के स्थान पर अध्ययन शब्द उपयोग किया; क्योंकि इस पुस्तक को पढ़ लेना मात्र पर्याप्त नहीं; अपितु लघुकथा सम्बन्धी सूक्ष्मताओं को गहनता से समझने हेतु यह उल्लेखनीय कार्य है। लघुकथा लेखन विकासक्रम के भारतीय परिप्रेक्ष्य में यह कहना प्रासंगिक है कि 'हिमांशु' जी ने इस विधा को नवीनतम ऊँचाइयों तक ले जाने का अथक प्रयास किया; जो निरंतर जारी है। इसी शृंखला में यह समालोचनात्मक पुस्तक लघुकथा के विविध पक्षों का विशिष्ट विवेचन प्रस्तुत करने का सराहनीय प्रयास है। लघुकथा में समालोचना के भविष्य को स्पष्ट करते हुए समालोचनाकार ने एक अध्याय में राजशेखर को उद्धृत करते हुए आलोचक भावक की चार श्रेणियों का उल्लेख किया है-आरोचकी, सव्यतृणहारी, मत्सरी और तत्त्वाभिनिवेशी। किसी की अच्छी रचना भी अच्छी न लगना, सबकी अच्छी-बुरी सभी रचना अच्छी ही लगना, ईर्ष्यावश सभी की बुराई ही करना एवं न्यायपूर्ण आलोचना करना क्रमशः इन चारों प्रकार के आलोचकों के लक्षण हैं। मेरा मानना है कि समालोचनाकार चतुर्थ श्रेणी का यथोचित अनुपालन करते हैं। इस दृष्टि से पुस्तक पठनीय एवं संग्रहणीय है।
समीक्षा करते हुए तीन बिंदु महत्त्वपूर्ण हैं-प्रथम विषयवस्तु, द्वितीय भावपक्ष एवं तृतीय कलापक्ष। सर्वप्रथम हम विषयवस्तु की बात करेंगे। 22 विवेचनात्मक आलेखों को निबंधात्मक शैली में प्रस्तुत करते हुए समालोचनाकार ने प्रत्येक पक्ष को पैनी दृष्टि से विश्लेषित किया है। परिणामस्वरूप भारतीय विकासक्रम की ऐतिहासिक खोजबीन के साथ ही वैयक्तिक, सामाजिक, प्रायोगिक तथा आनुभविक सोपानों पर आरूढ़ होते हुए लघुकथा एक नायिका के समान प्रत्येक पक्ष को प्रस्तुत करती हुई प्रतीत होती है। भावों को भाषा एवं विषयगत उपयुक्तता में आप्लावित करते हुए लेखक ने पूरी सावधानी रखी है कि कोई भी पक्ष अनछुआ न रह जाए. इस प्रकार लघुकथा को परिभाषित करने के सम्बन्ध में प्रथम सोपान (अध्याय) लघुकथा: संचेतना एवं अभिव्यक्ति अति सशक्त दार्शनिक आयाम को स्वयं में समेटे हुए है। मैं पढकर आश्चर्यचकित थी कि विश्लेषक ने लघुकथा को किस प्रकार से साहित्य एवं दर्शन के अनुपम संगम के रूप में प्रस्तुत किया। भारतीय दर्शन की एक आस्तिक दर्शन शाखा है-सांख्य दर्शन; जिसको आधार बनाकर श्रीकृष्ण ने गीताज्ञान भी उपदिष्ट किया। इसके अनुसार सम्पूर्ण सृष्टि चेतन एवं जड़ के संयोग का परिणाम है। चैतन्य की संवाहक चेतना ही है, यह दिखाई नहीं देती; किन्तु जब यह जड़ के साथ संयुक्त होकर अभिव्यक्त होती है; तो अनेक उल्लेखनीय परिणामों से युक्त होती है तथा समस्त चराचर जगत इसी का दृश्य रूप है। लघुकथा में भी लाक्षणिक रूप से इन्हीं तत्त्वों को समाहित मानते हुए लेखक ने खलील जिब्रान, सुकेश साहनी, रमेश बतरा, जगदीश कश्यप, सतीश राज पुष्करणा, सुभाष नीरव, चित्रा मुद्गल, बलराम, बलराम अग्रवाल, श्याम सुन्दर अग्रवाल, श्याम सुन्दर 'दीप्ति' , कमल चोपड़ा, अशोक भाटिया, उपेन्द्र प्रसाद राय, सुदर्शन रत्नाकर, दीपक मशाल तथा, पवित्रा अग्रवाल आदि की लघुकथाओं की प्रासंगिकता को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। यह कहा जा सकता है कि भाव पक्ष किसी भी सर्जन का संचेतनात्मक पक्ष है एवं कलापक्ष अभिव्यक्त्यात्मक पक्ष है। समालोचनाकार ने दोनों पक्षों का निर्वाह यथोचित ढंग से किया है; यह वस्तुतः उल्लेखनीय है।
लेखक का मानना है ही लघुकथा मात्र शब्दजाल या घटना का चित्रण नहीं अपितु स्वयं में परिपूर्ण नैतिक कथ्य है। ये मानव के बहुआयामी जीवन को आकार एवं गति प्रदान करने की सामर्थ्य से युक्त होती हैं। जयशंकर प्रसाद की लघुकथाओं का सूक्ष्म विवेचन करने में लेखक सफल रहे हैं / लघुकथा और भाषिक प्रयोग को विवेचित करते हुए समालोचनाकार स्पष्ट करते हैं कि पात्र, पात्र की मनःस्थिति, परिवेश, स्तर तथा परिस्थिति आदि इस सन्दर्भ में भाषा के स्वरूप का निर्धारण करते हैं। इस अध्याय में सुकेश साहनी की लघुकथा खेल (रेनड्रॉप के चेटरूम से) को उद्धृत भी किया है। बालमनोविज्ञान की कसौटी के सन्दर्भ में राजस्थान के लघुकथाकार यादवेन्द्र शर्मा तथा डॉ. शकुंतला किरण आदि को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इन्टरनेट और लघुकथा के माध्यम से श्री काम्बोज ने विविध नेट पत्रिकाओं के इस क्षेत्र में योगदान को विवेचित किया है। उनका मानना है कि गद्यकोश, साहित्यकुंज डॉट नेट,लघुकथा डॉट कॉम,उदंती डॉट कॉम, रचनाकार डॉट कॉम, अमर उजाला डॉट कॉम एवं हिन्दी गौरव डॉट कॉम आदि का लघुकथा को प्रसारित करने के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान उल्लिखित किया है। लघुकथा में समालोचना के भविष्य पर भी श्री काम्बोज गंभीरता से विचार करते हैं एवं इस क्षेत्र में परिचर्चाओं एवं अन्य गतिविधियों द्वारा आगामी पीढ़ी के ज्ञानवर्धन को आवश्यक मानते हैं। कथ्य की नवीनता एवं प्रस्तुति की सजगता की लघुकथाओं पर भी यथोचित प्रकाश डाला गया है। शोषित नारी की कथाओं में सुकेश साहनी के 'देह-व्यापार की लघुकथाएँ' नामक लघुकथा संग्रह को उद्धृत किया गया है। इसके अतिरिक्त साझा संस्कृति, अनुभव सृजित, समस्याओं पर केन्द्रित, परिवेश के प्रति लेखकीय ईमानदारी, विवादित लेखकों का अविवादित लेखन, जीवन के अच्छे-बुरे अनुभवों पर केन्द्रित, सामाजिक मुद्दों, शोषितों, मानवीय संवेदनाओं, व्यापक फलक, सामान्य जीवन से राजनीतिक पद-प्रतिष्ठा तक की यात्रा आदि प्रासंगिक विषयों पर केन्द्रित लघुकथाओं के विन्यास एवं उपयोगिता को समालोचनाकार ने यथाविधि यथोचित ढंग से विवेचित किया।
विषयवस्तु के उपरान्त अब हमें पुस्तक के भावपक्ष पर विचार करना चाहिए. इस दृष्टि से पुस्तक का महत्त्व इसलिए है; क्योंकि लघुकथा की शिल्पगत विशेषताओं को एक ही पुस्तक में समेटना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। इस चुनौती को समालोचनाकार ने बड़े ही सहज भाव से स्वीकार किया तथा लघुकथाओं को विविध खाँचों में व्यवस्थित करके उनके सार को उपयुक्तता एवं प्रासंगिकता के आधार पर विवेचित करने में पूर्ण तन्मयता दिखाई है। इसमें वे सफल भी रहे। स्पष्ट करना है कि विभिन्न देश, काल एवं परिस्थिति की लघुकथाओं को नियत एवं सुव्यवस्थित ढाँचे-खाँचे में रखकर लघुकथा लेखन के तकनिकीय पक्ष की बारीकियों को बहुत सुन्दर ढंग से समझाया गया है। उपर्युक्त विशेषता के अतिरिक्त पुस्तक की भाषागत सुन्दरता देखते ही बनती है। भाषा प्रवाहपूर्ण, सुगढ़, सर्वग्राह्य एवं सुन्दर है।
कुल मिलाकर समालोचनाकार श्री 'हिमांशु' ने लघुकथा समालोचना के क्षेत्र में एक उपयोगी, अभूतपूर्व एवं ऐतिहासिक कार्य किया है। इन अध्यायों के द्वारा स्थापित लेखकों के साथ ही नए लेखकों को भी लघुकथा विधा को सांगोपांग समझने का सुअवसर प्राप्त होगा। आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि पाठक इस पुस्तक को पढ़ने के साथ ही व्यक्तिगत एवं संस्थागत पुस्तकालयों में संगृहीत भी करेंगे; जिससे समालोचनाकार द्वारा किये गए इस श्रमसाध्य लेखन का लाभ अधिक से अधिक पाठकों एवं लेखकों को मिल सके और लघुकथा के सम्बद्न्ध में अधिकाधिक ज्ञानवर्धन होने के साथ ही इस सम्बन्ध में निराधार भ्रान्तियों, संदेहों एवं अज्ञानतावश लेखन में हो रही अवांछनीय त्रुटियों का भी समाधान हो सके. श्री हिमांशु जी को मेरी अनंत शुभेच्छाएँ उनको लेखन एवं सर्जन हेतु नित्य नवीन ऊर्जा प्राप्त हो एवं उनका साहित्यिक योगदान मील का पत्थर सिद्ध हो, ऐसी शुभेच्छा है।
लघुकथा का वर्त्तमान परिदृश्य (लघुकथा समालोचना) , लेखक श्री रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' , अयन प्रकाशन, 1 / 20 महरौली, नई दिल्ली-110030 प्रथम संस्करण, 2018, मूल्य रु0 280 / -पृष्ठ: 136