लघुतम भूमिकाओं के गहरे प्रभाव / जयप्रकाश चौकसे

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लघुतम भूमिकाओं के गहरे प्रभाव
प्रकाशन तिथि : 22 जनवरी 2021


प्राय: फिल्मों में नायक, नायिका, खलनायक और चरित्र भूमिकाएं होती हैं। साथ ही कुछ भूमिकाएं इतनी छोटी होती हैं कि आप उन्हें पूरे लेख के बाद लिखे फुटनोट्स से तुलना कर सकते हैं। मसलन ‘टॉयलेट एक प्रेम कथा’ में नायक के छोटे भाई की भूमिका, ‘सांड की आंख’ में उम्र दराज दादियों की भूमिकाएं, विद्या बालन अभिनीत ‘कहानी’ में एक बच्चे की भूमिका, देवानंद की फिल्मों में रशीद खान अभिनीत भूमिकाएं, ‘नाम शबाना’ में तापसी पन्नू अभिनीत पात्र की मां की भूमिका और उसके प्रेमी की भूमिका। दिव्या दत्ता की ‘वीर-ज़ारा और ‘भाग मिल्खा भाग’ में नायक की बहन की भूमिका।

इन भूमिकाओं को हम अमावस्या की रात में जुगनू की तरह मान सकते हैं। बड़े आकार की मशीन में नन्हें से पुरजे के खराब होने के बाद मशीन काम करना बंद कर देती है। सुंदर चेहरे पर एक काला तिल सौंदर्य के समग्र प्रभाव का हिस्सा होता है। टी.एस.एलियट की कविता के छोटे से भाग का आशय है कि ‘बड़े पर चक्र पर घूमते हुए अहंकरा करने वाला व्यक्ति नहीं जानता है कि वह इसी चक्र का छोटा सा पुर्जा है।’ डोनाल्ड ट्रंप को यह एहसास हो चुका है।

बहरहाल हर योजना बनाते समय लघुतम चीज का भी ध्यान रखना होता है। पलक झपकते ही हादसे हो जाते हैं। पुराने कपड़े में रफू का काम बड़े ध्यान से किया जाता है और किसी को ज्ञात भी नहीं होता कि कहां रफू किया गया है।

इमारतों के निर्माण के समय ईंटो की चिनाई पर इमारत का लंबे समय तक टिकना निर्भर करता है। पुराने आई.आई.टी. शिक्षण संस्थान की बाहरी दीवारों पर एक ईंट नज़र आती है क्योंकि प्लास्टर नहीं किया गया है। यह कोई चूक नहीं वरन जानकर किया गया है। नया अधिकारी प्लास्टर चढ़ाकर उसके सौंदर्य को भंग करना चाहता है। इन ईंटो पर जितना अधिक पानी पड़ता है ईंटे, उतनी अधिक मजबूत होती जाती हैं।

हवाई जहाज में मात्र हैंडबैग लेकर सफर करने वाला यात्री, एयरपोर्ट से शीघ्र ही बाहर निकल जाता है। भारी सामान वाले यात्री को लगेज का इंतजार करना पड़ता है। हर व्यक्ति अपनी असुविधाएं स्वयं ही बनाता है।

महाकाव्य का अपना महत्व होता है परंतु बिहारी के छोटे दोहे गंभीर और गहरे प्रभाव छोड़ जाते हैं। कबीर की कठोती में तो सारा संसार ही समाया हुआ है। जानकारियां आवश्यक हैं परंतु ‘जो लोग ज्यादा जानते हैं, इंसान को कम पहचानते हैं।’ पानी के जहाज में कुछ रेत भरी बोरियां होती हैं, जिन्हें फ्लोटजैम कहते हैं। तूफान की आशंका होने पर इन बोरियों को बाहर फेंक दिया जाता है। इन बाहर फेंकी हुईं रेत की बोरियों का अपना महत्व है।

शंका ग्रस्त अतिरिक्त चिंताओं से घिरे मरीज को डॉक्टर कुछ दवाएं लिख कर देता है और इन दवाओं को लेकर मरीज को आराम भी हो जाता है। अतः इन दवाओं का भी महत्व है। सृष्टि में कुछ भी अनावश्यक नहीं है। आजकल तो कचरे से भी ईंधन बनाया जा रहा है। गुजरे दौर में पुराने अखबार की रद्दी को पानी में गलाकर लुगदी बनाई जाती थी, जिससे अनुभवी दादियां और नानियां कागदी खिलौने बनाया करती थीं। महानगरों में अनावश्यक फेंके हुए कचरे को शहर के बाहर एक स्थान पर फेंका जाता है। कालांतर में उसी स्थान पर कचरे का पहाड़ बन जाता है, जिससे कुछ कोंपले उभर आती हैं, कोई पौधा लहलहा उठता है। कभी-कभी खुली आंख कुछ देख नहीं पाती और बंद आंखें देख लेती हैं। नेत्रहीन सूरदास काव्य रचना करते हैं, नेत्रहीन मिल्टन, ‘पैराडाइज लॉस्ट’ और ‘पैराडाइज रिगेंड’ लिखता है। फिल्म अनुराधा में शैलेंद्र के गीत की पंक्ति है, ‘मैं तो जागी थी सो गईं मेरी अखियां’ विजय आनंद की ज्वैलथीफ के लिए शैलेंद्र का गीता था, ‘रुला के गया सपना तेरा, की थी कब हो सवेरा।’