लड़ाई / ख़लील जिब्रान / सुकेश साहनी

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[अनुवाद: सुकेश साहनी]

उस रात महल में दावत थी। तभी एक आदमी वहाँ आया और राजा के सम्मुख दण्डवत् हो गया। दावत में उपस्थित सभी लोग उसकी ओर देखने लगे––उसकी एक आँख फूटी हुई थी और रिक्त स्थान से खून बह रहा था।

राजा ने पूछा, ‘‘यह सब कैसे हुआ?’’

उसने उत्तर दिया, ‘‘राजन मैं पेशेवर चोर हूँ। पिछली अँधेरी रात को मैं चोरी के इरादे से एक साहूकार की दुकान में गया था। खिड़की पर चढ़कर भीतर कूदते समय मुझसे भूल हो गई और मैं जुलाहे की दुकान में कूद पड़ा और लूम से टकराकर मेरी आंख निकल गई। राजन मैं आपसे न्याय की अपेक्षा रखता हूँ।’’

यह सुनकर राजा ने जुलाहे को पकड़ मँगवाया और उसकी एक आँख निकाल देने का आदेश दिया।

‘‘राजन!’’ जुलाहे ने कहा,‘‘आपका फैसला उचित है। मेरी एक आँख निकाल ली जानी चाहिए। लेकिन अफसोस! मुझे अपने हाथ से बुने कपड़े को दोनों ओर से देखने के लिए दोनों आँखों की जरुरत होती है। हुजूर, मेरे पड़ोस में एक मोची है, उसकी दो आँखें हैं उसे अपने काम के लिए दोनों आँखों की जरूरत नहीं पड़ती है।’’

सुनकर राजा ने मोची को तलब किया और उसके आते ही उसकी एक आँख निकालवा दी।

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