लड़ाई / राजनारायण बोहरे
अगले दिन सुबह अंगद ने अपनी यात्रा क पूरे समाचार राम को सुनाये।
लक्ष्मण बोले "भ्राता, मैंने आपसे पहले ही कहा था कि उस दुश्ट को समझाने से कोई फायदा नहीं है।"
सुग्रीव बोले "लेकिन कुत्ते की पूछ सदा ही टेड़ी रहती है।"
हनुमान कहने लगे "प्रभू हमारे, दल के लोग पूरी तरह से तैयार हैं। हमे कोई डर नहीं है। आपको अभी युद्ध में भाग नहीं लेना, आप तो पीछे बैठ कर हमे निर्देश देते रहें।"
"हमारा अनुमान है कि पहले लंकेश ख़ुद नहीं आयेंगे, वे अपने किसी बेटे को भेजेंगे। हमारा निवेदन है कि जैसा व्यक्ति आये सेनापति वैसा ही व्यक्ति बने। अगर रावण का कोई दूसरा बेटा आता है तो राजकुूमार अंगद सेनापति रहें और अगर मेघनाद आये तो लक्ष्मण जी हमारा नेतृत्व करें।" जामवंत ने पुराने अनुभव से कहा।
"ठीक है, जामवंत जी। आपका प्रस्ताव ठीक है।" राम ने सहमति प्रदान कर दी।
दिन भर जामवंत और दूसरे बुज़ुर्ग लोगों ने आसपास के मैदान में मिलने वाली जड़ी-बूटियों में से वे ढूढ़ निकालीं जिनके लगाने से एक ही रात में घाव ठीक हो जाते हैं। एसी जड़ी-बूटियों का बहुत बड़ा संग्रह भी कर लिया गया।
अगले दिन सुबह सचमुच युद्ध आरंभ हो गया।
लंका का बड़ा द्वार खुला और शोर मचाती लंका के सैनिकों की सेना बानरों की तरफ़ दौड़ी। सैनिकों के हाथ में तलवार, भाला, परिघ और गदा जैसे हथियार मौजूद थे।
बानर तैयार थे। उन्होंनेगदा के अलावा कोई हथियार नहीं ले रखे थे। हाँ, कई लोग अपने हाथों में पेड़ का तना और चट्टान उठाये हुए थे।
जल्दी ही पता लग गया कि लका की ओर से आज मेघनाद सेनापति हैं।
लक्ष्मण तैयार होने लगे। राम ने समझाया "लक्ष्मण, ध्यान रखना। मेघनाद ऐसा योद्धा है जो लंका में अपनी श्रेणी का सबसे बड़ा योद्धा माना जाता है-दारूण भट। थोड़ा संभल कर युद्ध करना। यदि किसी बाण को झुक कर बचाना पड़े तो झुक जाना।"
"जैसी आज्ञा!" कह कर लक्ष्ूमण चल दिये।
दोनों तरफ़ अपने सेनापतियों के जयकारे के साथ लड़ाई आरंभ हुई। बानरों ने चट्टान ओर पेड़ों का जो ढेर इकट्ठा कर रखा था वह बहुत काम आया। लंका के सैनिकों के झुण्ड के झुण्ड चट्टानों के नीचे दबने लगे तो पीछे हटने लगे। बानर उत्साह में आ गये। वे आगे बढ़े।
अपनी सेना को पीछे हटते देखा तो मेघनाद अपना रथ लेकर आगे आ गया। उसने देखा कि सामने की सेना के पास न तो लड़ाई के अच्छे हथियार हैं, न उनके पास हथियारों का वार झेलने के लिए शरीर पर कोई भारी अंग वस्त्र है। उनके सेनापति लक्ष्मण ज़मीन पर खड़े थे।
मेघनाद ने लक्ष्मण पर व्यंग्य किया "क्यों सेनापति, तुम्हारे पास एक रथ तक नहीं है।"
"मेघनाद, लड़ाइयाँ रथ से नहीं लड़ी जातीं, मन के हौसले से लड़ी जाती है और जीत न्याय के पक्ष के साथ ही होती है।" लक्ष्मण ने उत्तर दिया।
दोनों ने धनुषबाण के अच्छे निशानेबाज थे। उन्होंनेएक दूसरेपर बाणों की बौछार करना शुरू कर दिया। मेघनाद तो अपनी ढाल पर लक्ष्मण के तीर बचा लेता लेकिन लक्ष्मण का ज़्यादा अनुभव न था सो वे न तो झुक कर अपने सामने आता तीर बचाते थे और न ही दूसरे हाथ में कोई बचाव का साधन लिए थे।
मेघनाद के रथ में एक से बढ़कर एक अच्छे तीर भरे रखे थे, पर लक्ष्मण के पास गिने चुने तीर थे, हालांकि सबके सब तीखे और खतरनाक थे।
लक्ष्मण ने सोचा कि ब खतरनाक तीन बाद के लिए बचाकर रखेजायें इसलिए वे साधारण बाण चलाते रहे, पर मेघनाद से बहुत खतरनाक बाण चलाता रहा। उसने देखा कि लक्ष्मण का तरकश साधारण बाणों लगभगखाली हो चुका है। वे दूसरा तरकश मांग रहे हैं कि उसने खतरनाक विश से बुझा एक बाण उठाया और असावधान लक्ष्मण को निशाना बना कर चला दिया।
धोखा खा गये लक्ष्मण। जब तक वे संभलें तब तक तो मेघनाद का तीर लक्ष्मण की पसली में जा धंसा था और लक्ष्मण ने ज़ोर की चीख मारी थी।
ळनुमान ने देखा तो वे लक्ष्मण के पास पहुँचने के लिए दौड़ पड़े।
उधर मेघनाद ने अपना रथ लक्ष्मण के पास ले जाकर खड़ा कर दिया था। जामवंत चीखे, "हनुमानजी, जाओ लक्ष्मण को बचाओ। उन्हे खतरनाक विश बुझा बाण लगा है यदि आज की रात वे मूर्छित रहे तो ज़्यादा नुक़सान हो जायगा। मेघनाद उन्हे लंका ले जाना चाहता है, यह न होने पाये।"
हनुमान और तेजी दौड़े। उधर मेघनाद लक्ष्मणको उठाने के लिए झुका ही था कि हनुमान जी ने अपनी गदा फेंक कर उसे मारी जो ठीक अपने निशाने पर यानी िक मेघनाद के सिर पर जाकर लगी और मेघनाद अपना सिर पकड़ कर बैठ गया। कुद ही देर में वह भी मूर्छित हो गया था।
मेघनाद के सेवकों ने मेघनाद को उठाकर अपने रथ में रखा और वापस लंका चले गये। इधर हनुमान ने अपने हाथों में लक्ष्मण को उठाया और तेजी से श्रीराम की ओर ले चले।
सूरज अस्त हो चुका था, युद्ध बन्द हो रहा था।
राम ने देखा कि लक्ष्मण विकट मूर्छा में है, वे व्याकुल हो उठे। अब क्या होगा?
जामवंत ने अपनी सारी जड़ी-बूटी लगा के देखीं लेकिन सब बेकार थीैं। आख़िर हार के वे बोले "हनुमान, इस विश का नाशकरने वाली दवाई लंका के वैद्य सुशेन के पास मिलेगी, अब अपने लिए सबसे ज़रूरी है कि सुशेन का ेयहाँ लाया जाय।"
विभीषण ने बताया कि सुशेन का घर उनके घर से लगा हुआ है।
हनुमान का तो लंका का क़िला और नगर ठीक ढंग से देखा भाला था। वे हाल ही दौड़ लगा कर लंका नगर के प्रमुख द्वार के पास की चहारदिवारी की दिशा में चल ेगये। सेना अपने घायल सैनिकों के इलाज़ में लगी थी सो कोट के ऊपर पहरा न था सो हनुमान ने एक जगह से अपने लिए भीतर जाना सरल समझा और वे छलांग लगाकर चहार दिवारी पर जा पहुँचे। फिर सुशेन के घर तक जाना और उसे डरा-धमका कर लाना बहुत सरल था, क्योंकि लंका में हनुमान और अंगद दोनों का ही भारी भय बैठ गया था।
सुशेन ने सकुचाते हुए कहा "हे तपस्वी, मैं रावण महाराज का वैद्य हूँ इसलिए उनके दुश्मन को दवाई देना उचित नहीं है, फिॅर भी वैद्य और पंडित को अपने-पराये का भेद नहीं करना चाहिए इसलिए आपको बताता हूँ। आपके छोटे भाई को जिस विश का असर पैदा हआ है वह बहुत खतरनाक है, यदि कल के सूर्योदय के पहले इन्हे संजीवनी बूटी का रस नहीं पिलाया गया तो इनका बचना बहुत कठिन होगा।"
हनुमान गुस्से से बोले "आप तो यह बताओ वह कहाँ मिलेगी?"
सुशेन ने जिस द्रोणाचल पर्वत पर वह बूटी बताई थी वह अयोध्या के उस पार था वहाँ रात में पहुँचना बहुत कठिन था फिर भी हनुमान ने हार नहीं मानी। वे तेजी से चले और समुद्र के पुल पर दौड़ने लगे और उस जगह जा पहुँचे जहाँ मेैनाक की नाव रखी थी। मैनाक को जगा कर उन्होंनेद्रोणाचल तक जाने का साधन पूछा तो मैनाक बोला मेरी यह नाव आसमान में पक्षी की तरह उड़ कर भी जा सकती है, चलो हम लोग चलते हैं।
कुछ ही देर में मैनाक के टापू पर बैठ कर हनुमान द्रोणाचल की ओर जा रहे थे। मैनाक की तेज गति देख कर हनुमान हैरान थे, वे बार-बार रट रहे थे संजीवनी बूटी की झाड़ी रात का अंधेरे में जगमगाती है। वही झाड़ी लाना है।
बात की बात में वे लोग द्रोणाचल जा पहुँचे।
नीचे उतरे तो वे परेशान हो गये। वहाँ की अनेक झाड़ियाँ रात का चमक रही थीं। हनुमान ने कई झाड़िया तोड़ी और अपने साथ लेकर मैनाक के टापू पर जा बैठे।
लौटते वक़्त मैनाक का विमान और तेज गति से आया।
वे लोग समुद्र में अपनी जगह जाकर उतरे तो हनुमान ने अपनी सामग्री समेटी और अपने दल के शिविर की ओर दौड़ लगा दी।
रात समाप्त हो रही थी कि हनुमान आ पहुँचे। सारा दल रात भर से जाग रहा था। हनुमान का देख कर सब प्रसन्न हुए।
सुबह हुई तो लंका की ओरसे कोई हलचल नहीं दिख रही थी।
उस दिन युद्ध का बिश्राम रहा।
अगले दिन रावण और विभीषण का तीसरा भाइ्र कुंभकरन अकेला ही राम से लड़ाई करनेे चला आया। राम भी अकेले उठ कर उसकी तरफ़ बढ़ गये।
उसने दूर से ही राम पर कइ्र तरह के हथियार फेंकना शुरू कर दिया। राम सावधान थे, वे हर वार झुक कर या दांये बांये होकर बचाते चले गये लेकिन कुंभकरण माना नहीं। वह लगातार हथियार फेंकता रहा। अंततः राम ने अपना एक विश बुंझा बाण उठाया और कुंभकरण के गले का निशाना साध कर छोड़ दिया।
राम का तीर निशाने पर लगा, कुूंभकरण की गर्दन कट कर दूर जा गिरी। बानरों ने श्रीराम का जय-जय कार की।
वह रात रामादल में ख़ुशी की रात थी।
अगले दिन फिर मेघनाद लड़ाई के मैदान में गरज रहा था। लक्ष्मण ने आज रामादल के सेनापति का पद संभाला था।
आज उन्होंनेमेघनाद को संभलने का मौका नहीं दिया। अपने साधारण बाणों से उनहोने मेघनाद के घोड़े ओर रथ चलाने वाले सारथी का घायल किया फिर अपने सबसे खतरनाक विश बुझे बाण को धनुष पर चढ़ाया और मेघनाद की ओर छोड़ दिया। लक्ष्मण का बाण मेघनाद के शरीर पर पहने गये कवच को बेधता हुआ सीधा सीने में जाकर धंस गया। वह ऐसा तीखा बाण था कि मेघनाद तुरंत ही मूर्छित हो गया।
युद्ध दोपहर में ही बंद हो गया। मेघनाद को लंका ले जाया गया।
रात को विभीषण को सूचना मिली िकमेघनाद की मृत्यू हो गई।
लंका का एक बहुत बड़ा वीर मारा गया था।
जामवंत समझ रहे थे कि अब रावण को ठीक रास्ता समझ में आ जायेगा और वह लड़ाई छोड़ कर आत्मसमर्पण कर देगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
अगले दिन रावण ख़ुद सेनापति बन कर युद्ध के मैदान में हाज़िर था।
रामादल की ओर से राम सेनापति थे।
दोनों की अच्छे धनुर्धारी और बहादुर योद्धा थे। शाम तक लड़ाई चलती रही। न तो रावण का कोई नुक़सान हुआ न ही रामादल की कोई हानि हुइ्र।
रात को विभीषण ने बताया कि रावण ने अपने सिपहसालारों से लोहेका एक ऐसाकवच बनाया है जो गरदन से पेट तक और कमर से घुटनों तक पहना जाता है। अतः उसका यह हिस्सा बहुत सुरक्षित है। यदि रावण को नुक़सान पहुँचाना हे तो उसके कवच के ऊपरी व निचले हिस्से के बीच यानी कि नाभि में तीर मारना होगा।
राम ने यह बात अच्छी तरह गांठ बाँध ली।
अगली सुबह ज्यो ही लड़ाइ्र आरंभ हुई राम ने अपने नाराच नाम के बाणों से भरा तरकश उठाया। ये बाण सबसे खतरनाक विश में डुबा कर बनाये गये थे। रावण की तरफ़ सेपहला बाण ही आया था कि राम ने रावण की नाभि में निशाना लगा कर अपना एक बाण छोड़ दिया। वह बाण इतनी तेजीसे गया कि रावण संभल ही नहीं पाया और तीर ने अपना काम कर डाला। रावण ज़ोर की चीख मार कर अपने रथ से नीचे आ गिरा।
रावण के गिरते ही दोनों ओर से युद्ध बंद हो गया।
लंका में बचे आखिरी सिपहसालार विभीषण के बेटे तरूण सेन ने सुलह का प्रतीक सफेद झण्डा लंका पर फहरा दिया।
जैसा कि बाली के साथ किया था राम ने विभीषण को आदेश दिया कि उनके शरीर को पूरे सम्मान के साथ लंका लेजाकर अंतिम संस्कार किया जाय।
उधर विभीषण जाकर रावण के अंतिम संसकार में व्यस्त हुए इधर राम के सुझाव पर जामवंत और सुशेन ने मिल कर दोनों ंपक्षों के घायल लोगों का इलाज़ आरंभ कर दिया।
अगले दिन लक्ष्मण अपने सारे मित्रो के साथ लंका नगरी पहुचे और राजा के सिंहासन पर विभीषण को बैठा कर उनका राजतिलक कर दिया। फिर वे तुरंत ही लौट आये।
विभीषण ने राजाबनते ही पुराने अत्याचारी और बुरे मंत्रियों को हटा कर नये लोगों को मंत्री बनाया और सबसे पहला आदेश यह दिया कि सीताजी को पूरे सम्मान के साथ एक डोली में बेठा कर श्रीरामको सोंप दिया जाये।
सीताजी का डोला रामादल में पहुँचा तो सब लोग प्रसन्न हो उठे।
अंगद ने पहली बार सीताजी को देखा उन्हे लगा कि उनकी शक्ल-सूरत अपनी मांँ की सूरजसे बहुत मिलती जुलती है। उनहोने झुककर सीताजी के पंाव छू लिये।
रामादल के अनेक वीर उस रात लंका में गये और विभीषण द्वारा किये गये संधि प्रस्ताव के अवसर पर दिये गये भोज में शामिल हुए।