लता मंगेशकर और हिन्दी विश्वविद्यालय / जयप्रकाश चौकसे

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लता मंगेशकर और हिन्दी विश्वविद्यालय
प्रकाशन तिथि : 11 अप्रैल 2013


महाराष्ट्र के वर्धा में एक टीले पर स्थित है महात्मा गांधी हिंदी विश्वविद्यालय। यह केंद्र सरकार द्वारा संचालित संस्थान है। तमाम सड़कों और भवनों के नाम साहित्यकारों के नाम पर रखे गए हैं। उन्हें आदरांजलि दी गई है। किसी भवन या रास्ते का नाम लता मंगेशकर पर नहीं रखा गया है, जबकि हिंदी का सबसे अधिक प्रचार-प्रसार लताजी ने किया। उनके गीतों के माधुर्य के कारण अनगिनत गैर हिंदीभाषी लोगों ने हिंदी सीखी। इतना ही नहीं, रूस और चीन में लता के जादू ने असर दिखाया। खाड़ी देश में मंच से गाए लताजी के गीत 'सत्यम, शिवम, सुंदरम' को सुनकर हिंदी न समझने वालों की भी तालियां दसों दिशाओं में गूंजने लगीं। लंदन के वेंबले में आज भी लताजी के दशकों पूर्व गाए गए गीतों की ध्वनियां उसकी दर-ओ-दीवार पर गूंज रही हैं। पांचवें दशक में राजनीतिक स्वार्थवश हिंदी विरोधी आंदोलन चलाए जाने के समय भी लताजी के माधुर्य के कारण लोगों ने हिंदी सीखी। घर के दरवाजे-खिड़कियां बंद करके लताजी के गीत सुने। पिता ने पुत्र को नहीं बताया, पुत्र ने मां को नहीं बताया, परंतु सब एक-दूसरे के चोरी छुपे लताजी को ही सुन रहे थे।

आज हिंदुस्तान और पाकिस्तान में राजनीतिक स्वार्थ के कारण नफरत का वातावरण है, परंतु पाकिस्तान में भी दरवाजे-खिड़कियां बंद करके लताजी के गीत सुने जाते हैं। लता का माधुर्य सरहदों के ही पार नहीं जाता वरन् वह कालातीत भी है और वैश्विक भी। अनेक पाकिस्तानी संगीतप्रेमी इस अनहोनी पर यकीन करते रहे कि लताजी को लेकर पूरा कश्मीर हिंदुस्तान को दे दिया जाए। गोया कि 'धरती पर स्वर्ग' कश्मीर ले लो और लता के रूप में स्वर्ग की वाणी वे ले लें। हम गूंगा स्वर्ग कैसे स्वीकार करते। लताजी का अदृश्य रहने वाला सबसे बड़ा योगदान यह है कि अनगिनत मनुष्यों को अपने अवसाद के क्षणों में लताजी के गीतों से जीने का साहस मिला है। अनगिनत आहत आत्माओं पर उनके स्वरों ने मरहम का काम किया है और हमारे खुशी के क्षणों को भी उन्होंने अपनी आवाज से नई सार्थकता दी है। भारतीय जीवन सरिता में लता के स्वर प्रवाहित हैं। सतह पर और सतह के भीतर भी। अरसा पहले लंदन के एक अस्पताल में डॉक्टरों की दवाओं के बावजूद अनिद्रा और परिणामस्वरूप उच्च रक्तचाप से पीडि़त मेहबूब खान ने फोन पर लता से 'रसिक बलमा' गीत सुनाने को कहा और गीत ने दर्द हर लिया, दवाओं को मात दे दी। मेहबूब खान निश्चिंत सोए और रक्तचाप भी नियंत्रण में आ गया। यह तो एक प्रसिद्ध और सफल व्यक्ति का अनुभव है, परंतु अनगिनत आम आदमियों के अनअभिव्यक्त अनुभव हैं कि लता के गीतों ने उनको कितनी राहत दी है। लताजी ने जनता के समारोहों या स्वयं के सम्मान समारोह में हमेशा हिंदी में भाषण किया है या अपनी मातृभाषा मराठी में वे बोली हैं। कितने हिंदुस्तानी यह सगर्व कह सकते हैं कि उन्होंने हिंदी या मातृभाषा में ही सार्वजनिक वक्तव्य दिए हैं। इस महान भारत में गलत अंग्रेजी बोलने पर भी मनुष्य को सम्मान की निगाह से देखा जाता है। इस तरह के सोच वाले देश में लताजी ने हिंदी की कितनी सेवा की है। लताजी को उनके गायन के लिए राष्ट्र का सर्वोच्च सम्मान भारतरत्न दिया जा चुका है, परंतु हिंदी के प्रचार व प्रसार के लिए भी उन्हें सम्मान दिया जाना चाहिए। लताजी ने अनेक भारतीय भाषाओं में गीत गाए हैं और उनका उच्चारण सभी भाषाओं में शुद्ध रहा है। लता अखिल भारतीय आवाज है। लताजी में जैसे देश की सारी भाषाओं और क्षेत्रों की संस्कृतियों का संगम होता है। काश देश में भी वैसी ही एकता और अखंडता की भावना होती। इस तरह वे राष्ट्र का ही प्रतीक हैं। आज की लोकप्रिय नायिकाओं के पास पहले के किसी भी कालखंड की नायिकाओं से अधिक धन और शोहरत है, परंतु वे इस मायने में कंगाल हैं कि उनके लिए लताजी ने गीत नहीं गाए। लगभग पांच दशकों तक तमाम नायिकाओं की सफलता एवं लोकप्रियता में लताजी के माधुर्य का बड़ा भारी योगदान रहा है। रिकॉर्डिंग कंपनियों विशेषकर कभी एचएमवी कहलाने वाली कंपनी ने लताजी के कितने रिकॉर्ड और ीडी बेचीं तथा कितना धन कमाया इसका आकलन करना संभव नहीं है, परंतु इस साक्षात सरस्वती की कृपा से अनेक लोगों को लक्ष्मी का आशीर्वाद भी मिला है। लताजी के स्पर्श में पारस की ताकत है। इस समय वर्धा के महात्मा गांधी हिंदी विश्वविद्यालय के सर्वोच्च अधिकारी विभूति नारायण राय लेखक हैं और उनकी 'शहर में कफ्र्यू' एक श्रेष्ठ कृति है। साथ ही पुलिस संरचना पर भी उनका शोध महत्वपूर्ण है। उन्हें किसी मुख्य भवन का नाम लता मंगेशकर भवन कर देने की पहल करनी चाहिए। यही नहीं, उन्हें लताजी के हिंदी प्रचार-प्रसार पर शोध भी करवाना चाहिए। जिस तरह संस्था के वाचनालयों में ग्रंथ रखे जाते हैं, उसी तरह लता की ध्वनि का भी संग्रह होना चाहिए। सौ साल के कथा फिल्म इतिहास में लताजी का सहयोग साठ वर्ष से ऊपर रहा और आज भी उनके पास गीत गाने के निमंत्रण आते हैं। भोपाल के सुधीर एकबोटे ने यू-ट्यूब पर स्वरचित और गाया गीत जारी किया है। यह संगीतमय लता-स्तुति है और आज अपने व्यवसाय में सफलता के शिखर पर बैठे सुधीर की एकमात्र इच्छा अपना गीत लताजी को भेंट करने की है। विट्ठलभाई पटेल भी अगले पखवाड़े एक मुहिम चलाने वाले हैं कि इंदौर के सिख मोहल्ले में लताजी का जन्म-स्थान जनता के धन से खरीदकर लताजी को भेंट किया जाए या फिर उनका संग्रहालय बनाया जाए।