लतिका बत्रा / परिचय
लतिका बत्रा की रचनाएँ |
दरके हुये सवालों को ले कर जब भी सामने आ खड़ा हुआ, लतिका बत्रा ने जीजिविषा कि नईपरिभाषाये गढ़ी हैं। आर्थिक चुनौतियों ने जब जीवन में डेरा डाला तो साथ ही, 2006 में कैंसर जैसे रोग नेभी देह में घुसपैठ कर ली। अज्ञेय की एक पंक्ति सदा प्रकाश स्तंभ बनी रही "दुख माँझता है।" असाध्य रोग ने क़लम को माँजा और कीमो जैसी लम्बी व दुरूह चिकित्सा के दौरानकाग़ज़ पर उतरे कुछ भोगे हुये अपने-पराये सच, उपन्यास "तिलांजलि" के रूप में। इसी दौरान दिल्लीप्रेस से संपर्क हुआ और भीतर छिपी पाक कला व व्यंजनों को कलात्मक रूप से पेश करने के हुनर कोपहचान मिली गृहशोभा पत्रिका के माध्यम से, जहाँ इन की बनाई व्यंजन विधियाँ प्रकाशित होने लगी, औरये सिलसिला आज भी जारी है। इस के साथ ही साथ जारी रहा, विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में लेख, कवितायें व कहानियाँ छपने का सिलसिला। अनेक साहित्यिक मंचों व कार्यशालाओं में सक्रिय भागीदारीभी बनी रही।
अस्तित्व के संघर्ष में उम्मीदों के अनुबंधों ने निराशा व अवसाद को सदैव जीवन प्रवाह के हाशिये पर रखा, जिस की चौंध इन की कहानियों व कविताओं में भी झलकती है।