लद्‌दाख : शूटिंग के खतरे / जयप्रकाश चौकसे

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लद्‌दाख : शूटिंग के खतरे
प्रकाशन तिथि :04 अगस्त 2016


कबीर खान की सलमान खान अभिनीत फिल्म 'ट्यूबलाइट' की शूटिंग लद्‌दाख में शुरू होने जा रही है। फिल्म की पृष्ठभूमि 1962 में चीन का भारत पर आक्रमण है। इस पृष्ठभूमि पर चेतन आनंद ने 'हकीकत' नामक महान फिल्म की रचना की थी और तत्कालीन पंजाब सरकार ने उन्हें प्रारंभिक पूंजी प्रदान की थी। इसी फिल्म में चेतन आनंद ने प्रिया राजवंश को प्रस्तुत किया था और उनके बीच कुछ ऐसी अंतरंगता कायम हुई कि ताउम्र चेतन आनंद उनके साथ फिल्में बनाते रहे। बलराज साहनी और चेतन आनंद इंडियन पीपल्स थिएटर में साथ-साथ काम करते थे। यह वामपंथी विचारधारा मानने वालों की कला संस्था थी। खबर है कि कबीर की फिल्म में सलमान अभिनीत केंद्रीय पात्र का प्रेम एक चीनी युवती से हो जाता है। चेतन आनंद की 'हकीकत' में नायक का प्रेम लद्‌दाख निवासी कन्या से हो जाता है। इप्टा के संस्थापक ख्वाजा अहमद अब्बास की लिखी शांताराम की फिल्म 'डॉ. कोटनीस की अमर कहानी' में भी भारतीय डॉक्टर का प्रेम चीनी लड़की से हो जाता है। यह एक सत्यकथा से प्रेरित फिल्म थी।

शांताराम की फिल्म के अंतिम दृश्य में चीनी विधवा अपने पति को दिए वचन के अनुरूप भारत आती है। जब विधवा अपने पति के निवास स्थान पर पहुंचती है तब डॉ. कोटनीस की मां आरती का थाल लिए उसका इंतजार कर रही है और पूरे दृश्य में हम कोटनीस की वाणी सुनते हैं, जो अपनी पत्नी को सारी बातें समझा रहे हैं। उस समय यह विलक्षण प्रयोग था। चेतन आनंद ने अपने छोटे भाई देव आनंद और विजय आनंद के लिए फिल्म जगत में कदम रखा और आनंद परिवार दशकों तक सक्रिय रहा। मुंबई के पाली हिल में आनंद डबिंग और प्रीव्यू थिएटर अब भी सक्रिय है परंतु फिल्म निर्माण की परम्परा अवरुद्ध हो गई है। प्रेम इंद्रधनुष की तरह सरहदों के बावजूद सरहदों के परे, धरती पर जन्मे मनुष्यों द्वारा आकाश के पटल पर लिखी कविता है या पेंटिंग मान लीजिए। प्रेम ही भूगोल व इतिहास रचता है। शांताराम की डॉ. कोटनीस अौर रणधीर कपूर की 'हिना' सत्य घटनाओं से प्रेरित फिल्में थीं और चेतन आनंद की 'हकीकत' के पात्र काल्पनिक थे परंतु घटना सत्य थी। जब राज कपूर मनमोहन देसाई की 'छलिया' में अभिनय कर रहे थे तब उन्होंने स्टुडियो में रखे अखबार में पढ़ा कि एक भारतीय दुर्घटनावश नदी में गिरकर पाकिस्तान की सीमा तक बहता गया, जहां एक खानाबदोश दल उसका इलाज कराता है। ज्ञातव्य है कि प्रसिद्ध गायिका रेशमा भी खानाबदोश थीं। गौरतलब है कि आजीविका के लिए जगह-जगह भटकने वाले लोग गीत गाते हैं। यात्रा भी गीत की तरह ही होती है। तीर्थ यात्रा पर जाने वाले समूह भी भजन गाते हैं। गीतों के सहारे सफर कट जाते हैं। पंकज राग ने भारतीय फिल्म संगीत पर 'धुनों की यात्रा' नामक किताब लिखी है, जो इस क्षेत्र का श्रेष्ठ कार्य है।

'ट्यूबलाइट' बटन दबाते ही नहीं कार्य करती, उसमें कुछ क्षण लग जाते हैं। बात को देर से समझने के कारण ही संभवत: कबीर खान ने अपने नायक के चरित्र-चित्रण के अनुरूप फिल्म का नाम रखा है। वे अपनी फिल्मों के नाम बड़ी सूझबूझ से रखते हैं। 'बजरंगी भाईजान,' 'काबुल एक्सप्रेस,' 'न्यूयॉर्क न्यूयॉर्क' उन्हीं की फिल्मों के नाम हैं। इस फिल्म के द्वारा वे फिल्म निर्माण में आ रहे हैं और सलमान खान उनके भागीदार हैं। कबीर की निर्देशन क्षमता उसके लेखन के अधीन है। प्राय: फिल्मकार लेखक रहे हैं परंतु सभी लेखक फिल्मकार नहीं होते। गौरतलब है कि ख्वाजा अहमद अब्बास की कहानियों पर राज कपूर ने महान फिल्में बनाई परंतु बतौर फिल्मकार अब्बास साहब कभी बॉक्स ऑफिस पर सफल फिल्म नहीं बना पाए। राज कपूर ने तो इंदरराज आनंद, अर्जुनदेव 'अश्क,' अौर रामानंद सागर से भी कहानियां ली हैं और इन लेखकों में से कोई भी सफल फिल्म नहीं बना पाया। फ्रांस के फिल्म चिंतकों ने दिग्दर्शक को फिल्म का लेखक ही माना है। एक विधा में शब्द माध्यम है, दूसरी में छवियां व ध्वनियां। कुछ फिल्मकार ध्वनियों से प्रेरित बिम्ब रचते हैं, कुछ बिम्ब से प्रेरित ध्वनियां। सत्यजीत राय की पटकथाओं में हाशिये पर बिम्ब रचे होते थे। वे पेंटर भी थे और संगीतकार भी। राज कपूर की 'आवारा' से lt145राम तेरी गंगा मैली' तक सारी फिल्मों के कैमरामैन राधू करमरकर थे।

ऊंचाई के कारण लद्दाख में ऑक्सीजन कम होती है। प्राय: फिल्म यूनिट अपने साथ प्राथमिक चिकित्सा का सारा सामान ले जाती है। आजकल पोर्टेबल ऑक्सीजन सिलेंडर भी उपलब्ध हैं। शराब पीने का शौक रखने वालों को ऊंचे स्थानों पर शराब सेवन से बचना चाहिए, क्योंकि शराब सेवन वाले व्यक्ति को अधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। ज्ञातव्य है कि फिल्मकार जेपी दत्ता की 'एलअोसी' के यूनिट के एक सदस्य की लद्‌दाख में मृत्यु हो गई थी। बहरहाल, कबीर खान सुलझे हुए, सावधान रहने वाले व्यक्ति हैं।