लहरों का कोई घर नहीं होता / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
हाइकु, ताँका सेदोका चोका जापानी काव्य की शैलियाँ हैं, तो हाइबन गद्य और काव्य दोनों की। काव्य के लिए सबसे पहले इस बात पर बल दूँगा कि हाइकु आदि की संरचना बाह्य आवरण है, मूल तो गहन अनूभूति से सिंचित काव्य ही है, विभिन्न भाव-भंगिमा से परिपूरित। संवेदना–शून्य भीड़ ने इसके वर्ण निर्धारित फ़्रेम में ज्ञान-विज्ञान सब कुछ उड़ेलने का जो प्रयास किया, वह अत्याचार ही कहा जाएगा। चिड़िया किसी फुनगी पर झूलती हो और उड़ जाए, कुछ पल में फुनगी फिर स्थिर हो जाएगी। यह क्षणिक कम्पन आनन्दप्रद होता है। तितली किसी पुष्प की पंखुड़ी पर आकर बैठे, तो पुष्प उद्वेलित नहीं होता। दोनों की स्थिति विश्रान्ति और अनिर्वचनीय आनन्द की होती है। तितली पुष्प की नाज़ुक पंखुड़ी पर किसी तरह का भार नहीं बनती। ठीक ऐसे ही सत्या शर्मा के हाइकु हैं।
सत्या शर्मा के हाइकु सर्जन की यात्रा का आरम्भ हिन्दी हाइकु के 13 मई 2017 के अंक से हुआ और त्रिवेणी 18 मई 1918 के अंक से हाइबन के माध्यम से हुआ। कल्पना का सौन्दर्य इनके हाइकु का मूल धर्म बनकर उभरा है-सूरज रोपे / रोशनी वाले बीज / उगे प्रभात।
हाइकुकार का शब्द सामर्थ्य आवेशित होना चाहिए। कम से कम शब्दों में अधिकाधिक भाव संवेदना एवं अर्थ-गाम्भीर्य समाहित होना चाहिए। इस हाइकु में बहुत तड़के के लिए 'मुँह अँधेरे' और 'ढारके' का प्रयोग देखिए-
मुँह अँधेरे / ढारके गंगा-जल / सूर्य को न्योता
शहरीकरण ने वे आँगन ख़त्म कर दिए, जहाँ बच्चे खेलते नज़र आते थे। इस हाइकु में वह टीस भरी है, जिसे चाँद के माध्यम से अल्पतम शब्दों में अभिव्यक्त किया है-
चाँद उदास / खेले कहाँ चाँदनी? / गुम आँगन!
गर्मी की भीषणता को 'दहकना' शब्द से कितना मुखर कर दिया है! तीनों पंक्तियाँ उससे प्रभावित हैं। घाट पर चुप्पी छा जाने का प्रभाव है-सबका घरों में सिमट जाना, नदियों का निर्जल होना और भी पीड़ित करता है-
दहका जून / घाट-घाट चुप्पियाँ / सूखी नदियाँ।
प्रकृति के मनोरम चित्र आँकने में सत्या शर्मा की लेखनी नए बिम्ब निर्मित करती है-
चाँदनी रात / पग-पग उतरती / ओस की नदी।
चोका और हाइबन में भी इनका भावपूर्ण सृजन, मन्त्र-मुग्ध करता है। इनकी रचनाओं का बाँकपन इस संग्रह को पठनीय बनाता है।
4 दिसम्बर 2024