लहू पुकारे आदमी / मधुकर सिंह
तिरपाठी जी का लड़का भैरवनाथ इस दुनिया में भी कालेज पैदल जाता है। जिनकी हैसियत है वे तो शहर में ही रहते हैं। - बाकी सिरीपुर के लड़कों के पास साइकिल है। गांव से निकलते ही अकसरहां भैरव की सड़क पर या कुछ दूर आगे निकल आने पर नगीना से मुलाकात होती है। साइकिल सवार लड़के भैरव तिरपाठी से मजाक करते हैं- पंडिज्जी के करम में नगीना मुसहर है। स्न 1971 की आखिरी तारीख तक जिले भर में एक ही मुसहर कालेज में दाखिल है और बी.ए. फाइनल ईयर का छात्र है। अपने सहपाठियों से बच कर चलना ही उसे अच्छा लगता है। उन्हें देख कर पेड़ के पीछे या झाड़ियों में, खेतों में उतर जाता है। जब उनकी साइकिल दूर निकल जाती है तब नगीना सड़क पर आता है। हालांकि, उनके छेड़-छाड़ का असर अब उसके ऊपर नहीं होता। शुरू-शुरू स्कूल के दिनों में भारी विपत्ति का सामना करना पड़ा था। बर्दास्त के बाहर खिलाफत हुई थी। गांव का स्कूल छोड़ कर शहर जाना पड़ गया था। आवारागर्दी, लूट, राहजनी, चोरी जैसी वारदातें आमतौर पर होती रहती हैं-- नगीना हो हर बार उसमें फंसाने की कोशिश होती है। नगीना बाल-बाल बच जाता है और डर के कांपने लगता है। भैरवनाथ तिरपाठी के साथ जब से उसकी दोस्ती हुई है, मनोबल बराबर ऊंचा रहता है - ब्राह्मण के लड़के के साथ उसकी दोस्ती है। - ब्राह्मण और मुसहर की दोस्ती अजूबा बात हो गयी है। भैरव कहता है, साइकिल दोनों के पास नहीं है, पुरखों के पास साइकिल खरीदने का दाम नहीं हंै-- इसलिए नगीनाराम मुहसर और भैरवनाथ तिरपाठी एक साथ चलने के लिए मजबूर है और छह मील की दूरी साथ में कट जाती है। अब तो सब लोग हंसते हैं, मुसहर के साथ रहते-रहते ब्राह्मण की बुद्धि भी मुसहर हो गयी है। मगर भैरव पंडित की चिंता कुछ दूसरी है। फस्र्ट क्लास आना भी होगा तो नहीं आयेगा। यूनिवर्सिटी में हेड की जाति का ही लड़का फस्र्ट होता है, पढ़ कर फस्र्ट क्लास आने वाले का जमाना नहीं है। नगीना के लिए तो ये सारी घटनाएं और भी अजीब है। अपनी जाति का हेड तो कभी हो ही नहीं सकता है। अपने बारे में भैरव की तरह कल्पना करने का युग कब आयेगा? अपने यहां मुसहर से छोटी कोई जाति नहीं होती है-- सूअर को और मुसहर को कोई ऐसा जंतु नहीं समझा जाता, जिस पर दया की जाये। तमाम जातियों को उस पर रोब गांठने का हक है। दोनों की काठी एक तरह की है। गांव में लोग सामान ढोने का काम बैल और मुसहर से लेते है। नगीना का कालेज जाना सबके लिए उतनी ही आश्चर्यजनक घटना है जितना एक जानवर का आदमी बन जाना। तिरपाठी जी को लोगों ने बहुत समझाया-बुझाया, पंडितजी भैरव को समझा दो, मुसहर-चमार की संगत छोड़ दे। ब्राह्मण के गांव में अगर ऐसी बात हो तो सबकी बदनामी होती है। तिरपाठी ने साफ सुना दिया -- खान-पान में जात उठ गयी तो बाकी क्या रहा? अब तो शादी-ब्याह में भी कोई नहीं पूछता, मेरा लड़का घर से पैदल जाता है। तुम्हारे लड़के उसके साथ पैदल जाने के लिए तैयार हैं? मेरे पास साइकिल खरीदने का दाम नहीं है तो खरीद दोगे क्या? लोगों ने गौर किया - ब्राह्मणों की इज्जत का सवाल है। इस साल होली में दरवाजे पर लौंडे का नाच नहीं होगा, तिरपाठी जी के लड़के के लिए चंदा उगाह कर साइकिल खरीद दी जायेगी। ब्राह्मण और भुक्खड़ को दान करने से पुण्य ही होता है। उस पुण्य में गांव भर का हिस्सा रहेगा-सबकी छाती जुड़ायेगी। नयी साइकिल पर चढ़ कर जाते समय भैरव को नगीना दूर से दिखलायी पड़ा तो वह उतर गया और बोला-आओ - नगीना, तुम आगे बैठ जाओ। - नहीं भैरव बाबा, लोग देखेंगे, तो क्या कहेंगे? मैं साइकिल चलाना जान जाता तो तुम आगे बैठते और मैं चलाता इसका असर मेरे बाप पर पड़ेगा। कहीं मुसहर टोली पर आफत न आ जाये! भैरव का माथा झनझना गया। उसने कहा-तुम्हारे लिए कालेज में मैं चंदा करूंगा। - मगर उस साइकिल पर मैं गांव कैसे आ सकता हूं? - गांव वालों से हम दोनों निपट लेंगे। खाली अपने मन से ही भावना निकाल दो। - चंदा कोई देगा? - यूनियन से अभी तुम्हारा संपर्क नहीं है। हम लोग 30 मार्च से हड़ताल पर जा रहे है। एक गलत और निकम्मे लड़के को इम्तहान में चोरी करा कर फस्र्टक्लास दे दिया गया है। उपकुलपति के घेराव में तुम भी रहना। नगीना को साइकिल और गांव जैसे प्रसंगों से अलग भैरव के साथ ऐसी बातों से कुछ बल महसूस होता है। - यूनियन का मेंबर मैं भी बनूंगा, भैरव बाबा। - तुम्हें अपने मंत्री से मिलाऊंगा अजय सिंह हीरा आदमी है। - हमारे साथ पढ़ता है? -अभी तो दूसरे वर्ष का छात्र है। कभी उसका भाषण सुना? आग उगलता है, आग। -तुम चलो। में पैदल दौड़ कर आ जाता हूं। भैरव को नगीना के ऐसे उत्साह से बड़ी खुशी होती है। साइकिल चलाते समय लगता है, लोहे की शलाखों पर बैठा है। अगर लड़के साइकिल के बारे में पूछते है तो क्या बतायेगा। उनसे कहेगा कि गांव वालों ने मिल-जुल कर खरीदी है? मुसहर के साथ दोस्ती का यही दंड है? वह अपने क्लास में न जा कर सीधे अजय सिंह के क्लास में गया। उसने कहा--अजय सिंह! गांव की रूढ़िया मेरी हत्या करना चाहती हैं। उसने अजय को सारी बातें बता दी। अजय बोला-तुम मूर्ख हो भैरव भाई, उनसे कहो, नगीना साइकिल से चलने पर दीख जाता है। मोटर साइकिल खरीद दो तो खूब तेज चलाऊंगा कि नगीना पर कहीं नजर न पड़े। भैरव को हंसी आ गयी - सिरीपुर के लोग बड़े विचित्र है। -हर गांव के लोग विचित्र है। छुट्टी में तुम्हें नगीना से मिलाऊंगा। ग्यारह चालीस से हमारी क्लास है। तब तक जरूर आ जायेगा। -शाम को तुम दोनों मीटिंग में जरूर आना। भैरव अपने गांव के हर लड़के को मीटिंग में लाना चाहता है। शायद उनका दिमाग बदल जाये- बड़े-छोटे का जहर ज्यादा दूर तक नहीं घुसे। रास्ते भर आवारागर्दी करते हैं, कोई भी इन्हें छात्र कह सकता है? भैरव की बातें सुन कर साथियों ने मजाक उड़ाया - यह भैरवनाथ तिरपाठी गान्ही महात्मा का अवतार है। एक बार बोल, गान्ही महात्मा की जय। भैरव ने जागा पांडे से पूछा-पढ़-लिख कर क्या करोगे? - मुझे अच्छी तरह मालूम है कि उस मीटिंग में राजनीति होगी। - कैसी राजनीति? - अजय सिंह को इम्तहान में फस्र्टक्लास दिलाना होगा - यूनिवर्सिटी में जात-पात ठीक है? - मगर छोटे को माथे पर चढ़ाना भी तो ठीक नहीं है। - कैसी बात करते हो! - हड़ताल के दिन हम मजे उड़ायेंगे--कालेज नहीं आयेंगे। बाजार में अपनी पंसद की चीजें लूटेंगे। भैरवानाथ तिरपाठी जिंदाबाद! कोई परवाह नही, गांव से नगीना और भैरव ही रहेंगे। उसने नगीना से राय की--हम लोग गांव में युवकों की एक संस्था बनायेंगे कम्युनिस्ट, सोशलिस्ट, लेखक, विद्वान-तमाम सही समझ वाले लोगों से भाषण करायेंगे। पढ़ाई कितनी खोखली है, भैरव बाबा! हम कैसे बर्दास्त कर रहे हैं? -इस गलीज हालत के खिलाफ कहां युवक तैयार है? -दिल्ली, इलाहाबाद-तमाम बड़े विश्वविद्यालयों में शुरूआत सही ही होती है, मगर इस लड़ाई को बहुत गलत मोड़ दिया जाता है। आगे चल कर यूनियन उनसे मिल जाती है या आत्म-समर्पण कर देती है। अजय से मुलाकात के बाद नगीना को बहुत लाभ हुआ है। उसने नगीना को कुछ किताबें दी है। नगीना ने इनका नाम भी नहीं सुना था। यह कैसी पढ़ाई है? प्राध्यापक भी या तो इन किताबों का नाम तक नहीं जानते या कि लड़कों को बतलाना नहीं चाहते। लौटते समय रास्ते भर दोनों की योजनाएं बनीं। नगीना साइकिल पर आगे बैठा है। अंधेरे की वजह से सड़क साफ नजर नहीं आती। मगर ट्रकों के लगातार आते-जाते रहने से उनकी बातें छूट जाती हैं और दिमाग को झटका लगता है। इन दिनों गांवों में राजनीतिक पार्टियों की ओर से भूमि-आंदोलन चल रहे हैं, जहां भूमिहीन जागरूक हैं वहां कब्जा ही कर रहे हैं। सिरीपुर में ब्राह्मण, चमार, मुसहर, अहीर, कुर्मी, एकाध घर लुहार और जुलाहे हैं। ब्राह्मण के अलावा दो-चार घर चमारों के पास भी खेती है। मगर ऐसा कोई भी आदमी नहीं है, जिसके पास पचास एकड़ से ज्यादा हो। जागा पांडे के बाप की केवल पच्चीस एकड़ धरती है, मगर तिरपाठी जी के पास एक इंच भी नहीं है। दादा के जमाने का मिट्टी का एक घर है। भैरव का उस मकान में रहते-रहते जी ऊब गया है। वह परिवर्तन जरूर चाहता है, परंतु ऐसा संभव कैसे है? तिरपाठी की आंख सामने के गड्ढे पर है- दो-तीन एकड़ से कम नहीं है। भूमिहीन होने के कारण शायद उन्हें भी मिले। तब जम कर खेती भी होगी और मिट्टी की जगह ईंट का मकान भी बन जायेगा। तब तिरपाठी जी खुद हल चलायेंगे। देखते है, कौन माई का लाल है, जो कहता है कि ब्राह्मण हो कर हल मत चलाओ। ऐसा विरोध करने वाले से लड़ाई होगी। जागा पांडे के पास तो बड़ी-बड़ी सुविधाएं हैं। लोग अच्छी तरह जानते हैं कि पांडेजी की जमीन कैसे बढ़ी है। इधर-उधर और बेईमानी-सैतानी के बाद कुछ हैसियत वाले और मालदार बने है। गोविन्द चमार और बेईमानी के बाद देवलाल अहीर का सारा खेत हड़प लिया है। गांव का खोभाड़ीलाल वर्षों से सरकारी मंत्री है, जागा की नौकरी के लिए पांडेजी को कोई चिंता नहीं है। इम्तहान नहीं भी देगा तो पास कर जायेगा और नौकरी लगेगी। वे खोभाड़ीलाल को हरिजन मानने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं हैं उनकी राय में जात-पात शास्त्र-धर्म की चीज है, मगर खोभाड़ी बाबू को ईश्वर से नया जन्म दे दिया है। पांडेजी चमारों के कान खड़े किये रहते हैं कि तेतर मुसहर का लौंडा नगीना कुछ हो गया तो खोभाड़ी बाबू को कोई नहीं पूछेगा। भीतर-भीतर अपनी लड़ाई मुसहर टोली के खिलाफ तेज रखो-मुसहर तुमसे छोटी जाति का है। तिरपाठी को अपने लड़के को लेकर बड़ी चिंता है। लड़का ही क्यों, पूरे परिवार को ही लेकर चिंता हैं। पर साल उन्होंने बेटी का ब्याह किया तो पांडेजी हंस रहे थे, बढ़िया लड़का नहीं मिला तो पुरोहित का काम करने वाले से कर दिया। यजमानी भी कोई नौकरी है? तिरपाठी जी ने गुस्से में गाली दे दी थी - सरऊ को धन का घमंड है, आने दो समाजवाद। आंख काढ़ लूंगा, हंसी उड़ाओगे तो सबने पांडेजी को समझाया-तिरपाठीजी बुजुर्ग आदमी हैं-माफ कर दीजिए। गांव-जवार के पुरोहित हैं और बाप-दादा के दािखल हैं। मगर पांडेजी ने दोबारा गाली दे ही दी थी-साले को दम नहीं, गुमान सिंह नाम! भैरव जागा पांडे से ज्यादा उलझना नहीं चाहता है। परंतु इस पक्ष में है कि गांव के युवकों की मीटिंग में जागा भी अपनी राय रखे। खोभाड़ीलाल हाई स्कूल उसी के बाप का है। क्या जागा वहां मीटिंग करने देगा? नगीना को गांव का स्कूल छोड़ कर शहर में पढ़ना पड़ा है। पांडेजी चाहते तो क्या नगीना गांव का स्कूल छोड़ कर बाहर जा सकता था? तेतर मुसहर हरामजादा है। फीस माफ, स्कूल की किताबें मिल ही जाती है। सरकार छात्रवृत्ति देती ही है। अब क्या चाहिए--घंटा? तेतर मुसहर बोला था-घंटा नहीं, बाबा, मालिक लोग कभी नगीना को गाली देते हैं। कभी मार देते हैं। पांडेजी झुंझला गये थे-गाली नहीं दें तो क्या नगीना चंदन है कि माथे पर लगाये फिरें? -पांडेजी को हम लोग अपनी संस्था का अध्यक्ष बना दें। बहुत विचार करने के बाद भैरव से नगीना ने कहा। -धत्! शेसा पोंगा और बूढ़ा हमारा अध्यक्ष बनेगा? छिः! भैरव हंसने लगा- हम जागा को भले अध्यक्ष मान लंे, मगर उसका बाप तो तमाम युवकों को हजम कर जायेगा। -संस्था का नाम सोचा है? -मैंने तो सोचा है, अजय सिंह से भी राय ली है - प्रगतिशील युवक मंच का समाजवादी युवक मंच कुछ भी हो सकता है। अगले रविवार को भैरव ने सिरीपुर खोभाड़ीलाल हाई स्कूल में छात्र, अनपढ़ बेरोजगार, जात, परजात -तमाम युवकों की एक बैठक बुलायी और ‘समाजवादी युवक मंच’ की घोषणा कर दी। जब इसके पदाधिकारियों के चुनाव की बात आयी तो अधिकांश युवकों की राय हुई कि इसका भार भैरवनाथ तिरपाठी पर सौंप दिया जाये। नगीना और हरिजन टोली के लड़के हर बात के समर्थन में खाली हाथ उठा देते थे। उन्हें गांव में एक साथ बैठ कर मीटिंग करने का पहली बार मौका मिला था। भैरव कहने लगा- पढ़े-लिखे और हमारी पीढ़ी के लोगों में जात-पात, लड़ाई-झगड़ा शर्म की बात है। हम गांव में ऐसा मंच चाहते हैं जहां से हमारी चेतना का विकास हो--हम नये विचार और इतिहास के साथ चल सकें, युवकों को उधर मुड़ कर बिल्कुल नहीं देखना है, जहां स्वार्थ, घृणा और द्वेष की चिनगारी सुलग रही हो बल्कि हम लोग मिल-जुल कर उसे हमेशा के लिए बुझा देंगे, हमने पदाधिकारियों का चयन कर लिया है। तुम लोग कहो तो नाम सुना दूं? --नाम जल्दी सुना दो, अधिकांश युवकों ने आवाज लगायी। भैरव ने नाम पढ़ना शुरू किया-जागा पांडे-अध्यक्ष; भैरवनाथ तिरपाठी-उपाध्यक्ष; नगीना राम मुसहर-महामंत्री; कैलाश तिरपाठी-सहायक मंत्री; सेवकराम विश्वकर्मी-कोषाध्यक्ष; इनके अलावा सात लोगों कीे एक कार्य-सामिति है। किसी को एतराज हो तो अभी हाथ उठा दो। हम हर तरह से रद्दोबदल करने के लिए तैयार हैं। तत्काल ऐसा सन्नाटा रहा, जैसे कहीं गलत काम हुआ है और अचानक विस्फोट होगा। --अगर तुम लोग कुछ नहीं बोल रहे हो तो मैं मान लेता हूं कि तुम सब राजी हो। मेरा अलग प्रस्ताव है कि हमारी दूसरी बैठक में वाद-विवाद का विषय रहेगा- बेरोजगारी और भूमि की केंद्रियता। प्रो. शुकदेव चैधरी अध्यक्षता करेंगे। उनके साथ अजय सिंह भी आयेगा। बोलो, किसी को एतराज है? जागा पांडे खड़ा हो गया और बोला-शुकदेव चैधरी हरिजन हैं सोच लो, यहां के लोग बर्दाश्त करेंगे? -जागा, तुम्हारा दिमाग खराब है, किसी का विचार भी नहीं सुन सकते, अच्छा नाम तुम्हीं क्यों नहीं सुझाते? भैरव गुस्से में था। -इसमें गड़बड़ी तो शुरू हो रही है। -चुनाव पर फिर से विचार किया जाये। अचानक जागा के प्रतिकार के साथ ही उसके समर्थन में दर्जनों स्वर आये यहां तक कि हरिजन युवकों ने भी मशीन की तरह हाथ उठाकर सिर हिला दिया। -‘समाजवादी युवक मंच’ से गीता का प्रवचन कराना चाहते हो-कराओ। मुझे कोई एतराज नहीं। मगर मकसद का भी ख्याल रखो। भैरव अपनी जगह पर बैठ गया। उसे इसकी समझ है कि मामला कहां से गड़बड़ है और उनका इशारा किधर है। मगर भैरव इस बात के लिए दृढ़ है कि वे जहां परिवर्तन करना चाहते है, वहां परिवर्तन बहुत मुश्किल है। तब तो यह युवक मंच कहां रहेगा-ब्राह्मण मंच हो जायेगा। -इसमें भैरव तिरपाठी ने अयोग्य आदमी को चुन दिया है, एक आवाज आयी। -नाम लेकर क्यों नहीं बताते कि वह कौन है? भैरव फिर खड़ा हो गया। सन्नाटा बढ़ने लगा परंतु उसे तोड़ते हुए नगीना बोला-साथियों! मैं अपना नाम वापस लेता हूं। -यह तुमसे किसने कहा? भैरव चिल्लाया। मगर इसका बाकी लोगों ने विरोध नहीं किया कि नगीना को अपना नाम वापस नहीं लेना चाहिए। -तब बोलो, इसका नाम ब्राह्मण मंच रहने दूं? भैरव ने पूछा। -ऐसे तो पहचान में आ जायेगा। भैरव अपना गुस्सा दबाने की बहुत कोशिश कर रहा था। काफी गंभीर हो कर सोचने लगा, लोगों में ऐसे बुरे विचार कब तक जिंदा रहेंगे? गांवों मे राजनीतिक शिक्षा कितनी जरूरी है, इसे देख कर कोई भी नेता नहीं समझ पा रहा। उसे तो चुनाव के लिए राजनीति की सार्थकता लगती है। छात्राओं को बराबर डराया-धमकाया कि राजनीति भले लोगों की चीज नहीं है। जिसे थोड़ी बहुत राजनीतिक समझदारी है, उसे जेल में डलवा दिया जाता है। गांव के बड़े-बुजुर्ग हंसते हैं कि लड़का आवारा हो गया है। स्वतंत्रता-आन्दोलन के दिनों में भी-पंद्रह अगस्त उन्नीस सौ सैंतालीस के पहले-- लोग इसी तरह हंसते होगें, मगर युवकों ने उनकी बिल्कुल परवाह नहीं की थी। इस गांव के युवक इतने काहिल क्यों हैं? उस दिन की मीटिंग उठ गयी। मगर दूसरे दिन से युवकों में यह जोरदार चर्चा रही की कि ब्राह्मण युवक मुसहर का सहायक कैसे हो सकता है- कैलास तिरपाठी सहायक मंत्री और नगीना राम महामंत्री? सयानों को बात मालूम हुई तो उन्होंने ब्राह्माण टोली को धिक्कारा। धीरे-धीरे सभी लड़के अलग होने लगे। जागा पांडे अध्यक्ष था इसलिए दोनों तरफ था। वह भैरव के सामने पहचान में भी नहीं आना चाहता था। जागा, भैरव, नगीना, सेवक राम और एक चमार सदस्य को छोड़ कर बाकी सबने ‘समाजवादी युवक मंच’ से इस्तीफा दे दिया। कैलाश तिरपाठी ने हल्ला किया कि बड़े पंडितजी का लड़का भैरव कम्युनिस्ट हो गया है। भैरव पूरी ब्राह्मण टोली का विनाश करने पर तुला हुआ है-- इंदिरा गांधी को भले समाजवाद से प्यार है, परंतु हम तो कम्युनिस्ट को देखना नहीं चाहते है। गांव-बाजार के भले लोग कम्यनिस्ट बन रहे हों, मगर ब्राह्मण टोली को अभी तक यह हवा नहीं लगी है। जागा पांडे के बाप ने ‘विद्रोही युवकों’ को समझाया कि नेहरूजी समाजवाद चाहते हुए चल बसे। इंदिराजी का समाजवाद बड़ा अहिंसक है, किसी का भी दिल दुखाने की बात नहीं है। सरकार किसी की जमीन नहीं लेगी, जो शास्त्र, परंपरा के अनुसार चलती रही है, वह चलती जायेगी। समाजवाद में वहीं सुविधा रहेगी, जो कांग्रेस के बंटने के पहले थी। कम्युनिस्ट की क्या जरूरत है? ‘समाजवादी युवक मंच’ बना कर भैरव गांव के लड़कों का नाश क्यों चाहता है? कैलाश तिरपाठी ने ‘समाजवादी युवक मंच’ के खिलाफ पूरा वातावरण तैयार कर लिया। बिपत चमार भी उसी के पक्ष मंे है। बिपत का बाप जमाने से कैलाश का हलवाहा है-- ससुर की क्या मजाल जो भैरव या नगीना की पार्टी में चले जायें। इसी तरह के दबाव-प्रभाव से दो-चार जुलाहे, लुहार भी उसके पक्ष में है। जागा के बाप पांडेजी भी कैलाश का ही पक्ष लेते है। कैलाश इधर नारा दिया कि जो ससुर भैरव के दल में गये, उनकी टांग काट ली जायेंगी। कैलाश हाथ-पांव से मजबूत आदमी है-- तमाम लड़के उससे भय खाते है। भैरव ने भारी अपमान की बात कर दी है कि नगीना मुसहर को उसके ऊपर महामंत्री बना दिया है। साला नगीना जहां भी अकेला मिल जाये, सिर न उतार लिया तो असल ब्राह्मण के बूंद से नहीं। जात के मुसहर, बनेंगे महामंत्री! मीटिंग की बात जब-जब कैलाश को याद आती है, मंुड गुस्से से नाचने लगता है। उसके बाप भी तो पांडेजी से हैसियत के कम नहीं हैं। चालिस एकड़ जमीन है। पांडेजी के खानदान में जागा हिसंक निकल रहा है। पांडेजी गांधीजी के पुजारी बने रहें, भैरव तो जागा को कम्युनिस्ट बना के छोड़ेगा। उन्होंने मिल-जुल कर यह तय किया कि गांव में शुकदेव चैधरी का भाषण नहीं होने दिया जायेगा। कैलाश को पांडेजी ने एक अच्छी सलाह दी - बेटा तुम दूसरा मंच खोल दो-- गांधीवादी युवक मंच। गांधीजी के नाक से सभी डरेंगे। कैलाश ने चिल्लाकर ऐलान किया-- अब सालांे को गांधीजी के नाम पर ही मिजाज खट्टा कर दूंगा। एक बार बोलो, महात्मा गांधी जी जय! उसने पांडेजी से कहा, ‘गांधीवादी युवक मंच’ में बड़ी जातियों का अपमान नहीं किया जायेगा। ब्राह्मण ही अध्यक्ष और मंत्री रहेगा। कैलाश तिरपाठी अध्यक्ष और बहोरन पांडे मंत्री। उसने सत्तरह लोगों की कार्यकारिणी बनायी--ग्यारह ब्राह्मण, दो हरिजन और चार पिछड़ी जाति से लिये। गांधीवादी युवक मंच- जिंदाबाद, समाजवादी युवक मंच-मुर्दाबाद। महात्मा गांधी की जय! वह बिपत चमार से बोला-- बिपता, नगीना को गांव नहीं छोड़वा दिया तो बेट्टा.... --मैं तो हर तरह से ब्राह्मण टोली के लिए तैयार हूं। खाली लालसा है कि मैट्रिक पास करा दीजिए। वचन देता हूं, आगे नहीं पढूंगा। आप लोगों की सेवा करता जाऊंगा। -तुम लोगों के करम में पढ़ाई ठूंस भी दी जाये तब भी अक्ल नहीं आ सकती। सारी सुविधाएं हैं, मगर ससुर तब भी कलप रहे हैं कैलाश तिरपाठी ताली पीट कर हंस रहा था। -मेरे हाथ में अभी से भाला दीजिए, मालिक! -काहे खातिर, ससुर? -नगीना राम को उसी पर टांग लेता हूं। -जिओ बेट्टा! बिपत चमार नगीना को अपना सबसे भारी दुश्मन बोलता है। जब कैलाश तिरपाठी का हाथ उसके सिर पर है तो कोई भी माई का लाल उसका गट्टा नहीं पकड़ सकता। उसने कहा-शुकदेव चैधरी गांव में आया तो खून हो जायेगा। मुझे कॉलेज में नहीं पढ़ना है कि डर लगेगा। मैं रहूंगा या नगीना मुसहर। भैरवनाथ तिरपाठी का नाम बिपत इसलिए नहीं लेता है कि कुछ भी हो, है तो ब्राह्मण! इतना साहस कहां है कि बड़ी जातिवालों का प्रतिकार कर सके। भीतर-भीतर तो भय लगता ही है कि इस गुटबाजी में भैरवनाथ तिरपाठी का नाम न मुंह से निकल जाये। नगीना के साथ दुश्मनी से तो कोई खतरा नहीं है। रविवार के दिन भैरव और नगीना कोशिश कर के थक गये हैं, मुश्किल से मीटिंग से सात-आठ युवा शामिल हुए हैं और प्रो. शुकदेव चैधरी की बातें सुन रहे हैं, बाहर से रोडे-पत्थर फेंके गये और कैलाश और उनके साथी ‘समाजवादी युवक मंच, मुर्दाबाद-गांधीवादी युवक मंच--जिंदाबाद!’ के चीख-चीख कर नारे लगा रहे थे। कैलाश ने बाहर माइक खड़ा किया था खुद चिल्ला रहा था, ये लोग गांधीवाद के, कांग्रेस के दुश्मन है। ये लोग अपने यार रूस, चीन के समर्थन में हम युवकों को गुमराह करना चाहते है। मगर ये याद रखें, हम अपनी संस्कृति को छोड़ने के लिए कदापि तैयार नहीं हैं। हमारी संस्कृति हमसे बड़ी है। भारतीय संस्कृति जिंदाबाद! भारतीय संस्कृति जिंदाबाद! भइयों! इस बात को याद रखें- नोट कर लें, असली युवक मंच, गांधीवादी युवक मंच है। जो असली है उसके निम्नलिखित पदाधिकारी है। आपको सूची पढ़ कर सुनाता हूंः श्री कैलाश त्रिपाठी-- अध्यक्ष; श्री बहोरन पांडे- मंत्री; श्री फेंका तिवारी-कोषाध्यक्ष। हमने हर जाति के प्रतिनिधि को मौका दिया है। ब्राह्मण ज्यादा हैं, इसलिए उन्हें ज्यादा मौका दिया है। हम गांव की इज्जत हैं। नारा लगाइए, गांव की इज्जत-जाने न पाये। गांधीवादी युवक मंच-जिंदाबाद! परंतु ‘समाजवादी युवक मंच’ की मीटिंग चलती रही। उनका निश्चय यह है कि इसमें कैलाश तिरपाठी की कोई गलती नहीं है। हम लोग धीरे-धीरे उन्हें सही रास्ते पर लायेंगे। सप्ताह में एक बार-हर रविवार को अपनी बैठक करते जायेंगे। जागा पांडे का मन दुविधा में फंस गया है- न अध्यक्ष का पद निगलते बना है, न उगलते। वह दिमागी उलझन में बुरी तरह फंसा रहा कि कैलाश को किस प्रकार समझाया जाये। चलो, और कुछ नहीं तो वह बाबूजी की इज्जत तो करता ही है। बाबूजी उसे बराबर प्रोत्साहित करते रहे है। उन्हीं की सलाह पर तो उसने ‘गांधीवादी युवक मंच’ खड़ा कर किया है। वह अच्छी तरह समझ रहा होगा कि उसकी मिली सहानुभूति उसी के साथ है। यही बहोरन पांडे भारी लंठ आदमी है। जरा उसी को समझाना पड़ेगा कि तुम्हारा दुश्मन मैं--जागा पांडे नहीं, भैरव और नगीना मुसहर है। हालांकि, जागा समझ रहा है कि भैरव और नगीना बड़े निश्च्छल हैं। ये युवकों के लिए जो भी बातें करतें हैं, अच्छी लगती है। इनके साथ धोखा कितना बड़ा विश्वास घात होगा! ये लोग भी जागा को अपनी तरफ खींच रहे हैं! ऐसे लोगों के साथ कोई दुष्टता का भाव रखे तो गलत बात है। जागा को एक भीतरी भय सता रहा है कि उसने कैलाश का साथ दिया तो खुद से विश्वास घात करेगा बिपत चमार, रामदेव लुहार, रहमतुल्ला जुलाहा सभी गुमराह लोग है। जिस दिन उन्हें असली बात का पता चल जाये, उस दिन वे भी कैलाश का साथ नहीं देंगे। कैलाश की वजह से किसी बेटी-बहिन की इज्जत मुश्किल है। नगीना छटपटा कर रह जाता है। कैलाश को नगीना इसलिए भी बर्दाश्त नहीं हो पाता कि नगीना उसका विरोध करता है। कैलाश का खून खौलता हैं कि उस मुसहर के बाप का क्या जाता है। बेटी-बहिन जिसकी खराब हुई, वह तो गरीब कुछ बोलता नहीं--इस नगीना को क्या हो जाता है? मुसहरिन वह छू सकता तो कोई मुसहर टोली में भी बचती क्या? उतने ही लड़कों ने संकल्प फिर लिया कि ‘समाजवादी युवक मंच’ की बैठक विरोध के बावजूद करते जाना है। प्रो. शुकदेव चैधरी उनकी सभा में बराबर आयेंगे। बाहर कैलाश और उनके साथी चिल्ला कर थक गये। उन पर कोई असर नहीं हो रहा था। कैलाश बिपत और साथियों से बोल रहा था--भैरव और नगीना को एक हफ्ते के अंदर मार कर खराब नहीं किया तो ब्राह्मण नहीं! तब से क्रोधी मिजाज में मौका तलाश रहा है, कोई तो मिल जाये। चाहे नगीना, चाहे भैरव - दोनों धरम के कातिल है। ज्यादा तर भैरव अकेले साइकिल से कालेज निकल जाता है और नगीना पीछे से पैदल पहुंचता है। मगर कालेज से लौटते समय भैरव कभी नगीना को नहीं छोड़ता। कैलाश ने बिपत चमार को ललकार दिया है कि नगीना राम को जहां कहीं भी देखो, सिर उतार लो। उसे यह चिंता फिर जोर मार रही है कि बाप ने बंदूक का लाइसेंस अभी तक नहीं करवाया। बंदूक होती तो चिंता की बात नहीं होती। सारी मुसहर टोली को उड़ा देता। कहीं कुछ नहीं होगा-- न थाना, न असेम्बली, कहीं नहीं। गांव में और भी कई बंदूकें हैं, पर कैलाश के पास नहीं है। कैलाश छोटी जाति वालों का-खास कर मुसहरों का कट्टर विरोधी है। मुसहरों को आदमी नहीं कहता है। मुसहर पालकी ढोते हैं, चार आदमियों की जगह एक मुसहर। तब कोई मुसहर आदमी कैसे है? नगीना आदमी नहीं है। मार दे तो क्या तकलीफ होगी? मुसहर मूस की ही उत्पति है, जैसे बंदर से आदमी की हुई है। कैलाश को तत्काल सूझ आयी है। अपने ‘गांधीवादी युवक मंच’ की भी बैठक बुलायी जाये और वाद-विवाद का विषय रहे--मुसहर आदमी होता है या जानवर? जो जानवर के पक्ष में हैं, वे हमारे हुए और जो उसके विपक्ष में हैं, वे भैरव के। -मगर नगीना ने आदमी के हमले का जानवर की तरह जवाब दिया तब क्या होगा? उसने बिपत चमार से पूछा। -मैं भी चमार हूं। -भाग, ससुर! कैलाश उसकी मूर्खता पर हंसा। उसके दिमाग में यह बात बराबर रही है कि अगर बिपत के हाथों भैरव को थोड़ी भी कहीं चोट आयी तो ब्राह्मण टाली में बदनामी होगी। लोग शस्त्र उठा-उठा कर कहने लगेंगे-कैलाश ने ब्राह्मण के लड़के को चमार से पिटवा दिया। इसलिए नगीना की खबर लेना जरूरी है। इसका असर भैरव पर पड़ेगा और डर जायेगा। फिर उसकी हिम्मत नहीं हो सकती है कि गांव में कोई दूसरी हरकत करे। बुजुर्ग कैलाश के कदम की सराहना ही करेंगे। --मैं तो जान ले लूंगा नगीना की, बिपत बोला। --महात्मा गांधी के खिलाफ मंच बना कर भी कोई जीत सकता है? -मैं आज अकेले दोनों को देख लूंगा। -अभी भैरव नहीं, नगीना। उसमें बदनामी का डर है। उन्होंने ने साइकिल आम के पेड़ से लगा दी और दोनों सड़क से उतर कर झाड़ियों के पीछे बैठा गये। -वे लोग आ रहे है। बिपत फुसफुसाया। -चुप, हरामी कहीं का! बिपत चुप से उठा। उसने भैरव की साइकिल पीछे से पकड़ कर उलट दी और नगीना के सीने पर बैठ कर खजूर की छड़ी से पीटने लगा। भैरव ने बिपत की गर्दन पकड़ ली और जूते की नाल से उसका जबड़ा दबा दिया। नगीना के शरीर से काफी लहू चल रहा था, मगर उसने लहू को संभाल कर कैलाश को पकड़ लिया और बेरहम हो कर इतना मारने लगा कि स्वयं थक गया। कैलाश के मार खाने से बिपत की हिम्मत एकदम टूट गयी। वह कैलाश को अपनी साइकिल पर बैठा कर गांव की ओर भागने लगा, --जाओ, साले। भाग रहे हो, वर्ना जान ले लेता। भैरव चीख कर बोला। --नगीना? ब्रह्म-हत्या लगेगी साले! तुमने हिंसा की है। भैरव तिरपाठी को ललकारा है। मैंने बिपता को कह दिया था कि भैरव को मत मारना। हिंसक और पशु भैरव को लाज नहीं आयी कि ब्राह्मण एक मुसहर के हाथों मार खा रहा है। उनके जाने के बाद नगीना ने पूछा, अब क्या होगा-भैरव बाबा? अब तो मुसहरों का गांव के पास रहना मुश्किल हो जायेगा। मेरे चलते सभी परेशानी बर्दाश्त करेंगे। -हिम्मत रखो, नगीना। -सो तो रखनी पड़ेगी। -तब क्या बात है? -कैलाश शैतान है-हमारा नंबर वन दुश्मन! -मगर गांव के सभी तो ऐसे नहीं है। - मुझे डर नहीं लगता। मगर चैबीस वर्षों की आजादी ने कितने सही लोगों को पैदा किया है? वे लोग जब गांव पहुंचे तो मुसहर टोली में आग लगी हुई थी और तमाम बच्चे, औरतें, मर्द चिल्लाते हुए गांव छोड़ कर भाग रहे थे। नगीना राम और भैरव तिरपाठी बहुत ऊंचे तूफान को सीने के अंदर रोक कर गांव के किनारे पर रूके हुए थे।