लाइक / विजयानंद सिंह

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" तुम ह्वाट्सऐप, फेसबुक क्यों नहीं चलाते ? इतना कीमती टच स्क्रीन मोबाईल तो ले रखा है ? " गर्लफ्रेंड से चैटिंग करते हुए अनुराग ने अपने दोस्त रोहित से पूछा। " पता नहीं क्यों, सोशल मीडिया के ये .....ह्वाट्सऐप, फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम..... मुझे कतई अच्छे नहीं लगते। " रोहित ने अनुराग की ओर देखते हुए कहा। " क्यों ? क्या बुराई है इनमें ? " " पूछो, अच्छाई ही क्या है इनमें ? " " तुम्हीं बताओ....? " अनुराग अब उसका जवाब जानने को उत्सुक हो उठा था। " मैंने भी अपना फेसबुक एकाउंट बनाया था। ह्वाट्सऐप पर भी एक्टिव था। सबके पोस्ट पढ़ता था। लाइक करता था। शेयर करता था। मैसेजेज भेजता था.....। शुरु में तो अच्छा लगा। मगर जब मेरे पोस्ट को लाइक्स नहीं मिलते थे, तो कोफ्त होने लगती थी। जिसने लाइक नहीं किया या स्माईली नहीं भेजे, उन परिजनों और मित्रों से चिढ़ होने लगी। मुझे लगा कि इस अंतर्जालीय आभासी दुनिया में टेक्नॉलॉजी के माध्यम से भले ही हम एक-दूसरे के नजदीक आ गये हों, मगर इस लाइक-डिसलाइक के चक्कर में तो हमारे आपसी संबंध ही खराब हो रहे हैं। एक-दूसरे के प्रति हम गलत धारणाएँ पालने लगे हैं। इससे भले तो हम अपनी वास्तविक दुनिया में ही थे, जहाँ हम भले ही दूर थे, मगर दिल से जुड़े हुए तो थे ? आपसी प्रेम और विश्वास तो जिंदा था ? " अनुराग ने अपने मन में उमड़-घुमड़ रहे विचारों,भावों को तार्किक रूप से रख रोहित को समझाने की कोशिश की।

रोहित ने सहमति में सिर हिलाया और अपना मोबाइल चुपचाप जेब में रख लिया।