लाइमलाइट: चैपलिन कला का दिव्य प्रकाश / जयप्रकाश चौकसे

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लाइमलाइट: चैपलिन कला का दिव्य प्रकाश
प्रकाशन तिथि : 29 नवम्बर 2014


गोवा में चल रहे अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में चार्ली चैपलिन को आदरांजलि के रूप में उनकी श्रेष्ठ फिल्म 'लाइमलाइट' का प्रदर्शन किया गया आैर उनके इस भय को निर्मूल सिद्ध कर दिया गया कि क्या एक दिन उनकी कला काल कवलित हो जाएगी? यहां उनकी कला इस सीमित अर्थ में नहीं है कि उनकी फिल्में वरन् वह इस व्यापक अर्थ में है कि उनकी शैली का हास्य जिसमें विगत सदियों की लोक संस्कृति का प्रभाव है, कहीं विस्मृत हो जाए। इस तरह वे एक परम्परा के भविष्य के प्रति चिंतित थे। 1952 के कलर युग में बनी श्याम श्वेत फिल्म 2014 में गोवा में दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर रही हैं। यह काफी हद तक उनकी आत्मकथा है क्योंकि उनकी विचार प्रक्रिया को प्रस्तुत करती है। प्राय: सफलता मृत्यु तक घटनाआें का विवरण माना जाता है। इस तरह की आत्मकथाआें में झूठ का तड़का संभव है पर चैपलिन अपनी विचार प्रक्रिया, अपने भय, चिंताआें को अभिव्यक्त करने वाली फिल्म में सत्य के सिवा कुछ नहीं कह रहे हैं।

इस तरह के कलाकार की चिंताआें में हमेशा मानवता के लिए करुणा शामिल होती है। उन दिनों अपने से कम वय की युवती से विवाह की आलोचना की जा रही थी, दूसरे विश्व युद्ध के पश्चात अमेरिका की सरकार कम्युनिज्म के अपने काल्पनिक हव्वे से ग्रसित थी आैर वंचित वर्ग के लिए अपार करुणा रखने वाले कलाकारों आैर लेखकों को सताया जा रहा था। चैपलिन गिरफ्तारी से बचने के लिए समय रहते लंदन गए जहां उनका जन्म हुआ। उनकी कला पर भी प्रश्न पूछे जा रहे थे। एक निष्ठावान कलाकार की तरह उन्होंने सारे सवालों के जवाब "लाइमलाइट' में दिया आैर यह भी जानना चाहा कि क्या उनकी शैली मर चुकी है। उन्होंने "लाइमलाइट' में अपने समकालीन प्रतिद्वन्दी बस्टर कीटन की शैली का भी समावेश किया। अनुराग बसु ने भी रणबीर कपूर अभिनीत "बर्फी' में चैपलिन कीटन की शैलियों का समावेश कर आदर दिया। नायक को गूंगा-बहरा रखना मूक सिनेमा को आदरांजलि थी। सतही आलोचकों ने उनकी महान 'बर्फी' पर नकल जैसे थोथे आरोप लगाए। चैपलिन ने एक बार कहा था कि उनके पूर्वज भारत के जिप्सी थे जो यूरोप में अनेक देशों में रहे आैर उनमें से कुछ लंदन गए। इन जिप्सियों की लोक कला पर उन देशों की संस्कृति का प्रभाव पड़ा जहां-जहां वे रूके। चैपलिन के पिता भी ये कला म्यूजिक हॉल में प्रस्तुत करते थे। समय के साथ मनोरंजन का रूप बदला आैर प्रशंसकों ने अनदेखा किया। असफलता को शराब में डुबाते-डुबाते वे शराबनोशी का शिकार हो गए। चैपलिन की मां एक एक्ट को निभाते बेहोश हो गईं तो दस वर्षीय चैपलिन ने एक्ट ऐसे प्रस्तुत किया कि दर्शक तालियां पीटने लगे।

'लाइमलाइट' में अपने पिता की तरह नायक बूढ़ा, असफल शराबी है आैर एक युवती को आत्महत्या करने से रोकता है, उसकी सेवा करता है, मनोरंजन कला में प्रशिक्षित करके सितारा बनने में सहायता करता है परंतु उसकी सफलता के द्वारा अपनी 'वापसी' का प्रयास नहीं करता क्योंकि वह आत्मसम्मान नहीं खोना चाहता। उसके प्रशंसक उसकी वापसी के लिए शो आयोजित करते हैं जहां वह अपने माइम आैर पुराने एक्ट दोहरा खूब मनोरंजन करता है परंतु अंतिम एक्ट के बीच बेहोश हो गिर पड़ता है तब युवा सितारा नृत्य करके शो बचाती है। चैपलिन ने इस नृत्य का संयोजन वृताकार किया था, जीवन के वृत का प्रतीक आैर स्टेज लाइट के दायरे की परिधि पर नृत्य होता है। यह वृत निरंतरता का प्रतीक है। चैपलिन का विश्वास मनोरंजन परम्परा में था। समय के साथ बदलती दर्शक रुचियों के बावजूद उस पुरातन परम्परा की झलक या प्रेरणा मनोरंजन के वर्तमान स्वरूप को धार देती है। उन्होंने 'लाइमलाइट' में पुत्र सिडनी को भी भूमिका देकर परम्परा के भविष्य का संकेत किया था जैसे राजकपूर ने 'श्री 420' के गीत की पंक्ति "हम रहेंगे तुम रहोगे, फिर भी रहेंगी निशानियां' अपने तीन नन्हों द्वारा प्रस्तुत की। उनकी 'जोकर' आैर गुरुदत्त की 'कागज के फूल' भी इन महान रचनाकारों की 'लाइमलाइट' ही है।

अमेरिका के कवि हार्टकेन ने चार्ली के सम्मान में 'चैपलनिस्क' कविता लिखी। इसकी चार पंक्तियों के अनुवाद में मैं सक्षम नहीं परंतु उनका आशय इस तरह था, "तुम्हारा बार-बार गिरना कोई झूठ नहीं था, अपनी छड़ी के सहारे बैले नर्तक की तरह घूमना भी भ्रम नहीं था, हमारी चिंताआें को तुमने सजीव प्रस्तुत किया, हम तुम्हें भूलना चाहते हैं, परंतु दिल है कि माना नहीं।'