लागा चुनरी में दाग छुपाऊं कैसे ? / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 28 नवम्बर 2012
आमिर खान के शो 'सत्यमेव जयते' में खाप की कूपमंडूकता और हिंसक तौर-तरीकों पर प्रकाश डालने उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर जिले के गांव अड़ौली के अब्दुल हकीम और उनकी पत्नी महविश प्रस्तुत हुए थे और कुछ समय दिल्ली में एक संस्था की मदद से रहने के बाद अपने गांव लौटे थे, जहां हकीम का कत्ल दिन-दहाड़े कर दिया गया और महविश तथा उनकी बेटी का जीवन खतरे में है। मेरठ जाकर आमिर खान ने पुलिस से गुजारिश की कि अब्दुल के कातिलों को दंडित किया जाए और महविश मुहाफिज रहे। पुलिस का कहना है कि अब्दुल गांव में पुश्तैनी दुश्मनी का शिकार है और इसका उसके प्रेम विवाह तथा खाप के फतवे से कोई संबंध नहीं है तथा महविश को कोई खतरा नहीं है, वह बेवजह शिकायत कर रही है। इस प्रकरण से स्पष्ट होता है कि पुलिस विभाग में संकीर्ण जातिवाद कब का घुसपैठ कर चुका है और उनके लिए खाप का हित साधना सरकारी आदेश से ज्यादा जरूरी है। यह सोच ही भयावह है। तमाम खाप पंचायतों का जाति की शुद्धता के प्रति घोर आग्रह है और दरअसल धर्म की आड़ में वे अपना प्रेम विरोध छुपा रही हैं और प्रेम से उन्हें डर इसलिए लगता है कि यह स्वतंत्र सोच देता है और उसके लिए लडऩे का साहस देता है। स्वतंत्र विचार-शक्ति से रेजीमेंटेशन अर्थात एक तरह की सोच की जिद ध्वस्त होती है। सारी संस्थाओं की रुचि मनुष्य को भेड़ के रूप में बदलना है कि सभी झुंड में रहें। राजनीतिक दल कत्ल के आरोपी अपने सदस्य को निष्कासित करने से पहले स्वतंत्र सोच वाले निर्भीक व्यक्ति को निष्कासित करते हैं। स्वतंत्र सोच बनाम संगठन सदियों पुरानी जंग है।
क्या आमिर खान को अपराधबोध तंग कर रहा है कि उनके शो में भाग लेने के कारण अब्दुल हकीम का कत्ल हुआ? दरअसल उनका दोष नहीं है, अगर अब्दुल उनके शो में नहीं भी आता तो भी वह देर-सवेर मार दिया जाता, क्योंकि उसने मोहब्बत करने का गुनाह किया था। ग्राम अड़ौली में कानून है, परंतु सबसे अधिक चिंता वाली बात यह है कि समाज की मूल बुनावट में ही संकीर्णता के रेशों की अधिकता है और आप इन रेशों को अलग करना चाहेंगे तो समाज की चदरिया ही झीनी हो जाएगी। कोई कानून, कोई नई व्यवस्था या कोई लोकपाल असर नहीं कर सकता, क्योंकि हर दूसरा रेशा संकीर्णता का है।
'सत्यमेव जयते' प्रसारित करने वाले चैनल ने भी अपना दुख जाहिर कर दिया है। हर सरकारी दफ्तर, न्यायालय और संसद में सत्यमेव जयते प्रमुखता से अंकित है, परंतु हृदय में ही झूठ और अंधकार है। सारी व्यवस्थाएं तथा संगठन प्रेम और सत्य से आतंकित हैं और यह आतंक उनकी ऊर्जा बन गया है। प्रेम नामक अनंत और सर्वव्यापी जीवनदान देने वाली ऊर्जा को दरकिनार करके भय और आतंक को जीवन की मुख्यधारा हम सबने बनने दिया है। हम सब सामूहिक रूप से इसके दोषी हैं और अब्दुल के खून के छींटों से अपना दामन बचा नहीं सकते। यह बात सिर्फ एक अब्दुल की नहीं है। अनेक शहरों की अदालतों में पुलिस सुरक्षा की दर्जनों फरियादें रोज आती हैं।
याद कीजिए कि २००७ में कोलकाता में रिजवान रहमान का कत्ल हो गया, क्योंकि उसने उद्योगपति अशोक तोड़ी की सुपुत्री प्रियंका से प्रेम विवाह किया था। उन दिनों इस घराने ने शाहरुख खान की 'कोलकाता नाइट राइडर्स' में कोई विज्ञापन समझौता किया था और इत्तफाक की बात है कि 'माय नेम इज खान' के नायक का नाम भी रिजवान ही था। उन दिनों संभवत: शाहरुख के लिए उस सौदे से बाहर आना कानूनी तौर पर मुमकिन नहीं था, परंतु विगत सप्ताह ही उन्होंने उसी घराने की अन्य कन्या के विवाह में शिरकत करने से इनकार कर दिया। दरअसल तमाम खाप कार्रवाइयों का सामाजिक एवं सार्वजनिक बहिष्कार भी असरकारक हो सकता है।
खाप पंचायत प्रमुख छाती ठोककर यह कहते हैं कि भारतीय संविधान को वे नहीं मानते, उनके लिए खाप का अलिखित संविधान ही सर्वोपरि है। मुंबई के उपनगर में दो कन्याओं को गिरफ्तार किया गया, क्योंकि उन्होंने सोशल नेटवर्किंग साइट पर अपने विचार प्रकट किए थे। तरह-तरह के खाप सभी जगह सक्रिय हैं और आम आदमी की मदद उन्हें प्राप्त है। आम आदमी के नाम पर राजनीतिक दल खड़ा करके सत्ता प्राप्त करने से भी क्या होगा, जब समाज की चादर में ही संकीर्णता के धागे मौजूद हैं। सफाई सबकी जवाबदारी है।