लाडू / नीरज दइया
जिण बस सूं म्हनैं मुसाफिरी करणी ही सेवट उडीकतां-उडीकतां बा आई। संजोग कै बस भरियोड़ी ही। म्हैं बस में चढियां खाली सीट खातर निजर दौड़ाई। सीटो-सीट लोग बैठा हा अर केई जणा ऊभा हा। म्हैं सोच्यो इण भरी बस मांय लारै कोई आधी-पड़दी सीट खाली मिल जावैला। मारग ऊभी भीड मांय पजतो म्हैं लारै पासी निकळयो। म्हारो अंदाजो ठीक निकळियो, लारै एक सीट खाली दीसगी। म्हैं पूग’र उण सीट माथै कबजो करूं कै पाडौसी बोल्यो- “रुध्योड़ी है, आवै।“ अर उण सीट माथै राख्योड़ै रूमाल कानी आंगळी करी।
म्हैं बोल्यो- “वा सा..” अर पसवाड़ै ऊभग्यो। सोच्यो फालतू फोडा देख्या। ऊभण नै तो आगै ई सावळ जागा ही। उण सीट खातर एक-दो बीजा जातरियां रै ई राळा पड़ी, पण बो मिनख पोरैदार पक्को हो। कैवतो रैयो- “रुध्योड़ी है, आवै।“ इत्तै म्हैं देख्यो कै एक रूपाळी छोरी उणी सीट खातर उणी मिनख नै पूछियो- “सीट खाली है क्या?” बो उण नै देखतां मधरो मधरो मुळतां कैयो- “हां, आओ रा...। खाली है।“ बा छोरी आपरै बाबोसा नै हेलो करियो- “बाबोसा ! लारै आओ रा, सीट मिलगी।“ बो मिनख बाको फाड़िया बस में सवार ऊपराथळी रै असवारियां मांय उण छोरी रै बाबोसा नै ओळखण री कोसीस करण लाग्यो।
म्हनै लाग्यो उण मिनख रा सुपना तूटण सूं उण रो बाको फाटियो अर जाणै कोई लाडू बाकै में आवतो-आवतो रैयग्यो हुवै। बो बाको फाडियां उण छोरी रै बाबोसा नै देखतो-देखतो जियां ई म्हारै पासी देख्यो तो तुरत बाको बंद कर लियो। म्हैं मन ई मन कैयो- “लाडी, लेले लाडू।“