लातों के भूत / गोवर्धन यादव
सड़क के एक ओर कन्या महाविद्यालय तो दूसरी ओर पीजी कालेज था, दोनों के गेट सड़क पर खुलते थे, सीनियर छात्र अक्सर गेट के सामने खड़े रहते और जब लड़कियों की छुट्टी होती, उन पर फ़ब्तियाँ कसते, सीटियाँ बजाते, भद्दे-भद्दे शब्द उछालते, बेचारी लड़कियों को गर्दन झुकाकर चुपचाप निकल जाना ही श्रेयस्कर लगता, इसके अलवा और कोई चारा भी तो नहीं था उनके पास, उनकी बेबसी देखकर वे मिलकर ठहाके लगाते,
गाँव की एक दबंग छात्रा ने कालेज में दाखिला लिया, यह उसका प्रथम वर्ष था, उसने लड़कों की ओछी हरकतों को देखा और अन्य छात्राओं की ओर मुखतिब होकर कहा-" पता नहीं, आप सभी इनकी गंदी हरकतों को कैसे बरदाश्त कर लेती हो, इन्हें समय रहते उचित सबक सीखा दिया गया होता, तो आपको सड़क से शर्मसार होकर नहीं गुजरना पड़ता, उसने अन्य छात्राओं को परामर्श देते हुए एक योजना बनाई,
अगले दिन, वह जानबूझकर लड़कियों के ग्रुप से अलग होकर लड़कों के समीप से गुजरने लगी, उसे अपने समीप पा, लड़कों ने तरह-तरह के अश्लील फ़िकरे कसने शुरु कर दिए, उसने एक फ़्लाईकिस दिया और मस्तानी चाल चलते हुए आगे बढ़ने लगी, लड़कों का हौसका बढ़ा और वे उसके बिलकुल ही पास तक आ गए, ख़ुद को हीरो समझने वाले एक शोहदे ने उसकी बाँह पकड ली,
वह अचानक नीचे की ओर झुकी, जैसे ज़मीन पर गिरी हुई कोई वस्तु उठा रही हो, हीरो कुछ समझ पाता, उसने फ़ूर्ती के साथ अपने पैर में से सेंडिल निकाली और बिजली की-सी तेजी के साथ उसके सिर पर बरसाने लगी, इस नजारे को देखते ही अन्य लड़कियाँ का हौसला बढ़ा और वे भी अन्य लड़कों पर अपनी जूतियाँ बरसाने लगीं, छात्रों में भगदड़-सी मच गई थी इस समय, कुछ सड़क पर सरपट दौड़ लगाने लगे, तो कुछ कालेज के गेट की तरफ़ भाग खड़े हुए,
उस दबंग छात्रा का साहस और लाजवाब इलाज़ देखकर लड़कियों का झुंड पहली बार खुल कर हँसा था।